लोक-परंपरा और माटी की खूशबू…
सुनीता भट्ट पैन्यूली
रंग हैं, मौसम हैं, तालाब हैं पोखर हैं, मछली है, खेत हैं, खलिहान हैं, पुआल है, मवेशी, कुत्ता, गिलहरी हैं, ढिबरी है, बखरी है, बरगद है, पीपल हैं, पहाड़ हैं, पगडंडियां हैं, because आकाश है, ललछौंहा सूरज है, धूप है, बादल हैं, बुजुर्ग मा-बाबूजी हैं, बच्चे हैं, बीमारी है, षोडशी है, मेहनतकश जुलाहे की दिनचर्या है, भूख है, चुल्हा है, राख है तवा है, गोल रोटी है, मजबूरी है, संताप है, भूख है, परंपरायें हैं, रस्म हैं रिवाज हैं, लोक-परंपराओं और माटी की खूशबू है.
किताबी तिलिस्म
ऐसा एक किताबी तिलिस्म soजिसमें सिमट आया है सबकुछ इंसानी जज़्बात, रिश्तों की जद्दोजहद, रोज़मर्रा की खींचतान जिंदगी से, साक्षात्कार दैनिक जीवन-मुल्यों का और विशेषकर आदमी की दैनंदिन उपभोग की मूलभूत आवश्यकताओं का.
उपरोक्त जो भी मैंने लिखा but है मित्रों परिचय करा रही हूं मैं आदरणीय श्लेष अलंकार द्वारा लिख...