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कुमाऊंनी महाकाव्य ‘न्यायमूर्ति गोरल’

कुमाऊंनी महाकाव्य ‘न्यायमूर्ति गोरल’

पुस्तक-समीक्षा
डॉ. कीर्तिवल्लभ शक्टा रचित ग्वेल देवता महाकाव्य की समीक्षा डॉ. मोहन चंद तिवारी ग्वेल देवता की लोकगाथा को आधार बनाकर अब तक दुदबोली कुमाऊंनी भाषा के स्थानीय लेखकों के द्वारा अनेक कविताएं, लघुकाव्य, खंडकाव्य, चालीसा तथा महाकाव्य विधा में साहित्यिक रचनाएं लिखी गई हैं और निरंतर रूप से आज भी लिखी जा रही हैं. किन्तु इन सबके बारे में एक व्यवस्थित जानकारी का अभाव-सा है. अब तक गोरिल देवता के सम्बन्ध में जो रचनाएं मेरे संज्ञान में आई हैं, उनमें गोलू देवता पर रचित काव्यों में कविवर जुगल किशोर पेटशाली रचित 'जय बाला गोरिया' और कुमाऊंनी लोक संस्कृति के रंगकर्मी त्रिभुवन गिरी महाराज द्वारा रचित 'गोरिल' महाकाव्य लोकविश्रुत रचनाएं हैं. इनके अलावा केशव दत्त जोशी द्वारा रचित 'ग्वल्ल देवता की जागर', कृष्ण सिंह भाकुनी विरचित 'श्री गोल्ज्यू काथ सौती राग', मथुरा दत्त बेलवाल रचित 'जै उत्तराखंड जै ग्वेल देव...