छठ: आस्था, प्रकृति और सूर्य पूजा का महापर्व
सुनीता भट्ट पैन्यूली
जल-लहरियों में आस्था और विश्वास के रंगों में सजी, श्रंगार-विन्यास में दिव्य, व्रतधारी स्त्रियां, दूर पहाड़ों पर नीम-कुहासे को पछाड़ कर आसमान की पहली सीढ़ी चढ़ आये सूरज की ओर मुंह किये हुए छठ के पारंपरिक गीत गाती हुई स्त्रियों को पिछले साल मैने भी देखा. यही अनुभूति हुई मुझे कि जो भी आस्था के गीत व भजन ये स्त्रियां गा रही हैं, संभवतः सूर्य भगवान के आचार-व्यवहार से इन्होंने यही सीखा होगा कि अंधकार अस्थाई है. निश्चित ही अंधकार के बाद प्रकाश का अवतरण होगा.
सूर्य डूबेगा ज़रूर लेकिन पुनः दैदीप्यमान होगा नयी उम्मीद और नयी आशा की किरण लेकर.
एक विहंगम दृश्य, भोर की पौ फटती है और पीत स्वर्ण हो जाती है संपूर्ण प्रकृति अर्थात नदी, पोखर,सरोवर, तालाब के तटों पर बदलते मौसम की शीत बयार से विरत असंख्य श्रद्धालु सूर्य भगवान के दर्शन हेतु आतुर हैं. जहां महिलायें सर्द-सुबह की परवाह ...