Tag: गुरुदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर

दृढ़ इच्छा शक्ति से मिला मुकाम : महेशा नन्द

दृढ़ इच्छा शक्ति से मिला मुकाम : महेशा नन्द

पुस्तक-समीक्षा
डॉ. अरुण कुकसाल ‘गांव में डड्वार (अनाज मांगने की कटु प्रथा) मांगने गई मेरी मां जब घर वापस आई तो उसकी आखें आसूओं से ड़बडबाई हुई और हाथ खाली थे. मैं समझ गया कि आज भी निपट 'मरसा का झोल' ही सपोड़ना पड़ेगा.... गांव में शिल्पकार-सर्वण सभी गरीब थे इसलिए गरीबी नहीं सामाजिक भेदभाव मेरे मन-मस्तिष्क को परेशान करते थे.... मैं समझ चुका था कि अच्छी पढ़ाई हासिल करके ही इस सामाजिक अपमान को सम्मान में बदला जा सकता है. पर उस काल में भरपेट भोजन नसीब नहीं था तब अच्छी पढ़ाई की मैं कल्पना ही कर सकता था. पर मैंने अपना मन दृड किया और संकल्प लिया कि नियमित पढ़ाई न सही टुकड़े-टुकड़े में उच्च शिक्षा हासिल करूंगा. मुझे खुशी है कि यह मैं कर पाया. आज मैं शिक्षक के रूप में समाज के सबसे सम्मानित पेशे में हूं..... पर जीवन में भोगा गया सच कहां पीछा छोड़ता है. अतीत में मिली सामाजिक ठ्साक वर्तमान में भी उतनी ही चुभती है. तब मे...
टैगोर का शिक्षादर्शन- ‘असत्य से संघर्ष और सत्य से सहयोग’

टैगोर का शिक्षादर्शन- ‘असत्य से संघर्ष और सत्य से सहयोग’

शिक्षा
रवीन्द्र नाथ टैगोर की पुण्यतिथि (7 अगस्त,1941) पर विशेष डॉ. अरुण कुकसाल ‘किसी समय कहीं एक चिड़िया रहती थी. वह अज्ञानी थी. वह गाती बहुत अच्छा थी, लेकिन शास्त्रों का पाठ नहीं कर पाती थी. वह फुदकती बहुत सुन्दर थी, लेकिन उसे तमीज नहीं थी. राजा ने सोचा ‘इसके भविष्य के लिए अज्ञानी रहना अच्छा नहीं है’....उसने हुक्म दिया चिड़िया को गंभीर शिक्षा दी जाए. पंडित बुलाए गए और वे इस निर्णय पर पंहुचे कि चिड़िया की शिक्षा के लिए सबसे जरूरी हैः एक पिंजरा. और फिर पिंजरे में रखकर चिड़िया ज्ञान पाने लगी. लोगों ने कहा ‘चिड़िया के तो भाग्य जगे!’.... ‘महाराज, चिड़िया की शिक्षा पूरी हो गई’. राजा ने पूछा, ‘वह फुदकती है? भतीजे-भानजों ने कहा, ‘नहीं !’ ‘उड़ती है?’ ‘एकदम नहीं!’ ‘चिड़िया लाओ,’ राजा ने आदेश दिया. चिड़िया लाई गई. उसकी सुरक्षा में कोतवाल, सिपाही और घुड़सवार साथ चल रहे थे. राजा ने चिड़िया को उंगली से ...