… जब दो लोगों की दुश्मनी दो गांवों में बदल गई!
सीतलू नाणसेऊ- खाटा 'खशिया'
फकीरा सिहं चौहान स्नेही
रुक जाओ! हक्कु, इन बेजुबान जानवरों को इतनी क्रूरता से मत मारो. सीतलू हांफ्ता-हांफ्ता हक्कु के नजदीक पहुंचा. मगर हक्कु के आंखो पर तो दुष्टता सवार थी. हक्कु भेड़ों तथा उनके नादान बच्चों पर ताबड़तोड़ काथ के छिठे (डंडे) बरसा रहा था. सीतलू ने हक्कु का पंजा पकड़ कर उसे पीछे की तरफ धकेल दिया. इससे पहले की हक्कु खुद को संभालता सीतलू अपनी भेड़ों को चौलाई के खेतों से बाहर निकाल कर मुईला टोप की तरफ बढ़ने लगा. हक्कू की आंखें गुस्से से लाल थी. जमीन पर गिरे हुए अपने ऊन के टोपे को सर पर रखते हुए, अपनी चोड़ी को आनन-फानन में लपेट कर वह सीतलू पर क्रोधित होकर बोला, सीतलू तेरे भेड़ों ने मेरे चौलाई के खेतों पर जो नुकसान किया है. उसका हर्जाना तुझे अवश्य देना पड़ेगा. मैं तुझे छोड़ूंगा नहीं. सीतलू ने विनयपूर्वक उत्तर दिया. हक्कू, मुझे तेरा द...