… जब दो लोगों की दुश्मनी दो गांवों में बदल गई!

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सीतलू नाणसेऊ- खाटा ‘खशिया’

  • फकीरा सिहं चौहान स्नेही

रुक जाओ! हक्कु, इन बेजुबान जानवरों को  इतनी क्रूरता से मत मारो. सीतलू हांफ्ता-हांफ्ता हक्कु के नजदीक पहुंचा. मगर हक्कु के आंखो पर तो  दुष्टता सवार थी. हक्कु भेड़ों तथा उनके नादान बच्चों पर  ताबड़तोड़ काथ के छिठे (डंडे) बरसा रहा था. सीतलू ने हक्कु का पंजा पकड़ कर उसे पीछे की तरफ धकेल दिया. इससे पहले की हक्कु खुद को संभालता सीतलू अपनी भेड़ों को चौलाई के खेतों से बाहर निकाल कर मुईला टोप की तरफ बढ़ने  लगा.  हक्कू  की आंखें गुस्से से  लाल थी. जमीन पर गिरे हुए अपने ऊन के टोपे को सर पर रखते हुए, अपनी चोड़ी को आनन-फानन में लपेट कर वह सीतलू पर क्रोधित होकर बोला,  सीतलू तेरे भेड़ों ने  मेरे चौलाई के खेतों पर जो नुकसान किया है.  उसका हर्जाना तुझे  अवश्य देना पड़ेगा.  मैं तुझे छोड़ूंगा नहीं.  सीतलू ने विनयपूर्वक उत्तर दिया.  हक्कू, मुझे तेरा दंड मंजूर है, मगर तुने मेरी भेड़ों को आवेग में आकर जो नुकसान पहुंचाया है. वह अक्षम्य है. अपने आक्रोश को पीता हुआ हक्कु एक मिट्टी के ढेले पर जोर से लात मार कर पसीना पोंछता हुआ  एक बिशाल  पत्थर पर बैठ कर सुसताने लगा.

खूंद गावं का तात्पर्य जो दुश्मनों का खून बहाने  तथा अपना खून देने में अग्रणी हो.  ऩाणसेऊ खशिया उस दौर में लड़ाई-मोढ़ाई  के द्वारा अपने मुकाम  को जीत कर हासिल  करने में माहिर था. विजय और शक्ति के द्वारा ही अपने अधीन गांव के न्यायिक फैसलों का निर्णय  तथा अधिकार खूंद गांव के पास ही होता था.

सीतलू और हक्कु दोनों तत्काल अपनी डगर की दिशा  तो बदल देते है, मगर उनके अंदर दुश्मनी की आग धीरे-धीरे शोले की भांति सुलगती रहती है. उपरोक्त विवरण को लोक गीत हारूल में खूबसूरती से बयान किया गया है.
“भाजे-भाजे हक्कुआ तू भेड़ों ना पीटे
आले मेरे गाबरूदें लाया नू छिठे.”

पूरे जौनसार-बावर, गढ़वाल तथा हिमाचल प्रदेश में हम जिस  सीतलू नाणसेऊ की ऐतिहासिक हारूल (वीर गाथा) को लोक गीतों के माध्यम से  सुनते आ रहे हैं, उसकी कहानी कुछ इस प्रकार  से है-

पिता दिलमी, लबंरदार तथा माता लच्छमी देवी का पुत्र सीतलू खशिया नाणसेऊ, उतराखंड के  जौनसार बावर परगना खत (पट्टी) कांडोई भरम का सदर लबंरदार था. ऩाणसेऊ राजपूत (खशिया) पासी वंश (पांडव) से उत्पन  खूंद माना  जाता  है, खूंद गावं का तात्पर्य जो दुश्मनों का खून बहाने  तथा अपना खून देने में अग्रणी हो.  ऩाणसेऊ खशिया उस दौर में लड़ाई-मोढ़ाई  के द्वारा अपने मुकाम  को जीत कर हासिल  करने में माहिर था. विजय और शक्ति के द्वारा ही अपने अधीन गांव के न्यायिक फैसलों का निर्णय  तथा अधिकार खूंद गांव के पास ही होता था. नाणसेऊ खशिया का इतिहास  हिमाचल  प्रदेश जिला सिरमोर के थोते गांव से रहा है.  बताया जाता है कि गांव में आपसी  लड़ाई होने के कारण कुछ परिवार हिमाचल से जौनसार-बावर के  कांडोई भरम आकर बस गए थे. जहां पर उन्होंने धीरे-धीरे अपना प्रभुत्व जमा कर आस-पास के गांव को अपने अधीन कर लिया था. टोंस नदी के तट से मुईला डांडे के  टोप तक जमीन ओर  जगंलो की सीमाओं पर ऩाणसेऊ  खशिया का  पूर्ण अधिपत्य  था.

“दिलमी रा सीतलू हंदा भेड़ो रा पाड़ो
भेड़ो नेंदा मुईले डांडे रावंदा शाड़ो”

सीतलू को बचपन से ही भेड़़ पालन तथा डांगरे (हथियार) एवं तलवार के साथ नाचने ओर खेलने का  बेहद शौक था. उसके पास तकरीबन तीन सौ भेड़ों की टोली थी.  छ: महीने तक जाड़ें में उसकी भेड़ें नदी के छानी (नेऊड़) के तटीय भाग की  तरफ तथा  छ: महीने के बाद  गर्मी  के मौसम में मुईला टोप  के आस-पास किनाणी डांडा, बूधेरथात, रअईमा दोहपार में  प्रवास करती थी.

मुईला बुग्याल पर सीतलू की भेड़ें.

प्राकृतिक सौंदर्य की दृष्टि से मुईला  बुग्याल  पौराणिक काल से ही बेहद रमणीक और आकर्षक रहा है. चकराता तहसील से तकरीबन 30 किलोमीटर की दूरी पर मुईला डांडे की सुंदरता अद्भुत और अनुपम है.  बुग्याल के चारों ओर देवदार के ऊंचे-ऊंचे पेड़, हरी-भरी घास के  बुग्याल जैसे कोई आच्छादित घास के गद्दे बिछाए हो. सवान के बीचों-बीच पानी का ताल (कोपीर)  प्राकृतिक सौंदर्य का अद्भुत नजारा है. इलाके में आसपास के गांवो  के मवेशियों के लिए  उस दौर में  पनाह  तथा चारागाह का सहारा भी था. बुधेर थात, तथा किनाणी डांडे में, हक्कु में शेऊ की खेतीबाड़ी थी, जो जौनसार बावर खत (पट्टी) शिलगांव के मशक गावं का निवासी था. हक्कु  तथा सीतलू दोनों की शादियां  एक ही परिवार शिलगांव खत (पट्टी) के ऱजाणु  गांव से थी.

हर कहावते यथार्त पर आधारित होती हैं. सत्यता यह है  कि दुनिया की बहुतया  लड़ाईयां जर, जोरू, और जमीन के खातिर लड़ी गई है.

पहाड़ों पर हर ऋतु का  अपना अलग अलग प्रभाव  तथा आंनद होता है. माघ का त्यौहार पहाड़ों पर मौज-मस्ती ओर खाने-पीने का माना जाता था.  एक दिन  सीतलू ओर हक्कु के ससुराल में माघ की दावत का आयोजन था. जिसमें हक्कु  तथा सीतलू को भी ससुराल पक्ष की तरफ से निमंत्रण था. दोनों अपनी-अपनी पत्नियों के साथ उस दावत में शरीक हुए. सभी लोग माघ की दावत में मशगूल थे कि अचानक हाथ धोते वक्त  मौका पाकर  हक्कु ने सीतलू की पत्नी के मुंह में पानी की छींट मार दी. इत्तेफाक से सीतलू की नजर इस  दृश्य पर  पड़ गई. उसकी  बोंहे अमर्षता से तन गई, अपने दांतो  को पिसता  हुआ, वह क्रोध से आग बबूला हो गया.

ससुराल पक्ष के  सूझबूझ के कारण हक्कु को जान बचा कर  ससुराल से रात को ही भागना पड़ा. दोनों का आपसी  विवाद अब चर्म सीमा की हद तक पहुंच चुका था.

पौराणिक प्रथाओं के अंतर्गत  राजपूत खशियों का खूंद  गांव अपनी वीरता का प्रदर्शन करने  के लिए रोण-मोण  का आयोजन भी करता था, तथा आसपास के इलाके के अन्य खूदीं  गांव के लिए भी रोण-मोण में आने तथा  अपने रण कौशल का प्रदर्शन दिखाने के लिए आमन्त्रण  भेजा जाता था. ऱोण-मोण का आयोजन नदी के घाट पर किया जाता था, ताकि वीरता ओर हर्षता के साथ मच्छी पकड़ने का अवसर भी लोगो को मिल सके.

मुईला बुग्याल पर पानी की कोपीर (ताल)

सब लोग अपने हथियार,  जैसे डांगरा तलवार, ढाल  बांस के लठ्ठ, (डंडे) साथ में  मच्छी, पकड़ने का जाल लेकर जाते थे. उस जमाने में  बंदूक का आविष्कार नही हुआ था, युद्ध के दौरान कई इलाको में  धनुषबाण का प्रयोग भी किया जाता था. बदुंक का प्रचलन 18 वीं शताब्दी में  माना जाता है. 13वीं 14 वीं शताब्दी के आसपास धनुषबाण युद्ध तथा शिकार के  प्रयोग में  इस्तमाल किया जाता था. जो बदुंक के आने के बाद केवल खेल मनोंरनजन तक ही सीमित हो गया था. इन तमाम विश्लेषणो के अवलोकन से इस दंत घटना का ईतिहास लगभग 600  सो वर्ष पूर्व यानी 13वीं सदी के आस-पास का  माना जाता है.

“मक्की रे कोठुलिया रींगों ला गअणो
तेरी में री अबड़ी रजाणू रो मोणो”

जेठ और आषाढ़  के महीने में पहाड़ों के तटीय भागों पर भी गर्मी की तपन आग उगलती है. उसी दौरान रजाणू  गांव  ने बेनाड़ खड के नदी पर मौण का आयोजन किया था. मोण का निमंत्रण नाणसेऊ खशिया (राजपूतो) को भी भेजा गया था. उस वक्त मशक गांव भी ऱजाणु गांव के अधीन था. मशक गांव को भी मोण में  शामील  होना था जिस गांव का  बशींदा  हक्कु में शेऊ था.  सभी जवानो  ने मौण के लिए अपने अपने आवरण आभूषण तथा  हथियारो को सजाना, चमकाना, एवं हथियारो पर धार (पेनिक) करना प्रांरम्भ कर दिया था. पंडितो के द्वारा निश्चित दिन शुक्रवार को  दिये गये उतम लग्न पर जवानों का दल बल गाजे-बाजे के साथ  नाचते-झूमते गाते हुए बेनाड़ नदी की तरफ बढ़ने लगा.

नाणसेऊ खशियों का दल ऐसे प्रतीत हो रहा था, जैसे आसमान में काले बादलो के झूंड गड़गढ़ाहट करते हुए बिजली चमका रहे हो. नाचते हुए सीतलू का डांगरा सूरज की तेज रोशनी में हीरे की भांति चमक रहा था, माना  जन्मो का खूनी प्यासा डागंरा आज दुश्मन का खून पीकर अपनी प्यास से तृप्त  हो जायेगा.

मौण में सीतलू के साथ कुछ उसके अजीज मित्रो का झूंड परिंदो की भांति झूम रहा था. जैसे ढोल की तान पर मदमस्त नाच करने वाला कुनवा गांव का  घड़ू कूनाव,  काली लम्बी दाड़ी वाला  रंचू छंकिंयाण, तलवार बाजी में माहिर शांटू मलकाण, जवानी से भरपूर जोद्धा बाजा गुराण, मौण में बाहुबली की तरह कदकाठी  वाला नव जवान हिरदा अमाण तथा नाचने में  माहिर जमनू चोरटा, ठारटा गांव के भाट दूरिया दुरगाण, तथा जीणीया जीनाण आदि सीतलू के आजूबाजू नाचते हुए अपने हथियारो की कलाबाजी से रोंमाचीत कर रहे थे.

हक्कु भी अपने भाई शूरजू के साथ सफेद कपड़ो में सज्ज-धज कर मोण में पूर्ण तैयारी के साथ में शेऊ दल  सहित बेनाड़ तट की तरफ उतरने लगा. उसके मन में युद्ध की हल्की-सी आंशका थी इसलिए  अपने लंम्बे जुल्फो को कंधें तक संवारते हुए गले में लाल रंग की  ऱेशमी चदर ओढ़े हुए था ताकि किसी दुश्मन के तेज हथियार से गर्दन को  बचाया  जा सके.  ढलते सूरज के साथ ऩाणसेऊ खूंद  में गरेऊ खूंद, कईलेऊ खूंद, तथा शीलगांव खूंद बेनाड़ नदी के तट पर ठीक आमने-सामने पहुंच चुके थे. जैसे ही तीमूर (मच्छी मारने की आयुर्वेदिक औषोधि) नदी में डाली गई, सीतलू चीते की भांति हक्कु में शऊ को तलाशता हुआ में शेऊ दल में कूद गया. थोड़ी ही दूरी पर हक्कु नदी के ताल में कमर तोड़ नाचकर झूम रहा था. सीतलू उसको ललकारता हुआ सीधा उसके करीब खड़ा हो गया  तथा अपने डांगरे (तेज हथियार) से हक्कु पर वार कर दिया. किस्मत का धनी हक्कु डांगरे को बचाता हुआ पीछे की तरफ हट गया तथा उसका भाई शूरजू उसके बचाव में आगे आकर  सीतलू से मुकाबला करने लगा. पानी की लहरे आसमान में उछल रही थी.  सीतलू का डांगरा खून का प्यासा था उसने शूरजू पर आक्रमण कर उसका सिर धड़ से अलग कर दिया, जो सीधा उछल कर हक्कु के जाल में फंस गया. पूरी नदी खून से लाल हो गई.

मुईला टोप

पूरे मौण में खलबली मच गई. सीतलू खुद के ऊपर खतरे की नजाकत को भांपता हुआ, सीधा  शेऊ खत के ईलाके से होता हुआ मुईला टोप की तरफ चढ़ने लगा. मगर वह भूख से लतपत था. मशक गांव पहुंच कर उसने अपनी मौसी के घर खाना खाया. उस वक्त मशक का गांव  शूरजू के मरने की खबर से अनजान था. सीतलू ने मौण की झूठी तारीफ करते हुए व्यंगात्मक लहजे में  गांव के बुजुर्गो को बताया कि मौण बहुत ही उत्‍तम रहा है. इस बार शूरजू के पास (शऐर) बहुत बड़ी मच्छी उसके जाल में फंसी है.  खाना खा कर वह सीधा मुईला बुग्याल पहुंच गया जहां पर उसके साथियों के पास उसकी भेड़े थी. तत्काल सामान को समेटते हुए वह भेड़ों सहित अपने भेड़ पालक साथियों के साथ कांडोई भरम की तरफ सुरक्षित निकल पड़ा.

हक्कु रोता बिलखता अपने भाई के सिर ओर धड़ को समेटता हुआ मुरझा कर जब अपने गांव मशक पहुंचा तो उसे पता चला कि सीतलू इसी मार्ग से मुईला टोप की तरफ निकला है.  वह भागता हुआ  अपने दलबल के साथ मुईला टोप पर चढ़ गया मगर तब तक सीतलू वहां से भी चपंत हो चुका था. बिखरा हुआ  सामान खगालने पर उसे पेड़ों के पत्तो से  बनी छतरी के नीचे ऊन के कम्बल ओड़े  हुए 16 साल का एक मासूम नव जवान सोते हुए  दिखा.  जो गहरी नींद में  बेसूध था. जगाने पर पता चला कि वह कांडोई भरम के जोगनाण परिवार से था.  हक्कु पर खून सवार था उसने  आक्रोश में आकर अपने साथियों के साथ उस नव जवान  के शरीर पर तपती अगांरो की राख डाल कर तड़फा-तड़फा कर बेरहमी से मार डाला.

सीतलू को इस बात का बेहद पश्चाताप था, कि वह अपनी नासमझी के कारण एक नादान बालक को मुईला टोप पर सोता हुआ कैसे भूल गया था. जिसको दुश्मनों ने बेरहमी से मार डाला. अब सीतलू उसका बदला लेने के फिराक में मन ही मन  ताना बाना बुन रहा था.

अब युद्ध दो व्यक्तियों में न रह कर दो गांव के मध्य छिड़ गया था. कांडोई गांव के नाणसेऊ को जब हक्कु तथा उसके साथियो के द्वारा नादान बालक के कत्ल की सूचना मिली तो गावं के नव जवानों का खून खौलने लगा. सीतलू को इस बात का बेहद पश्चाताप था, कि वह अपनी नासमझी के कारण एक नादान बालक को मुईला टोप पर सोता हुआ कैसे भूल गया था. जिसको दुश्मनों ने बेरहमी से मार डाला. अब सीतलू उसका बदला लेने के फिराक में मन ही मन  ताना बाना बुन रहा था. दोनों गांव के सीमाओं की सतर्कता बढ़ने लगी.

वक्त का पहिया धीरे-धीरे कुछ आगे बढ़ने लगा. पहाड़ों पर शीतोष्ण ऋतु का मौसम आने लगा था.  पौष माघ की काली घनेरी लम्बी रातें और ऊपर से कम्प कम्पाती ठंड जीवन में निरसता पैदा कर रही थी. सीतलू इन्हीं रातो का  मौका पाकर मशक गांव की तरफ कूच करने लगा. गांव के बाहर पहरेदारों को चकमा देकर वह गांव के अंदर प्रवेश कर गया.

सीतलू ने  स्नानगृह के अंदर ही  उसकी गर्दन को  पकड़ कर मरोड़ दिया,  हक्कु जीवन की भीख के लिए गड़-गड़ाने लगा.  जैसे ही उसने चिल्लाने की कोशिश करी तत्काल सितलू ने उसका सिर काट कर अलग कर दिया.  स्‍वयं छत के ऊपर छुप गया. सारे गांव में कोहराम मच गया. दुश्मन गांव में कैसे घुस गया.

जैसे ही वह एक घर के नजदीक पहुंचा तो सामने ही  हक्कु  स्नान गृह में स्नान  की तैयारी कर रहा था. सीतलू ने  स्नानगृह के अंदर ही  उसकी गर्दन को  पकड़ कर मरोड़ दिया,  हक्कु जीवन की भीख के लिए गड़-गड़ाने लगा.  जैसे ही उसने चिल्लाने की कोशिश करी तत्काल सितलू ने उसका सिर काट कर अलग कर दिया.  स्‍वयं छत के ऊपर छुप गया. सारे गांव में कोहराम मच गया. दुश्मन गांव में कैसे घुस गया. परिवार की एक महिला कहने लगी कि हमारे गांव के दो आदमी पश्चिम दिशा के बुराईला  गांव में गये हुए है. कल सुबह उनको वापस आना है, मुझे उनके खतरे की चिन्ता सता रही है. सीतलू ने ध्यान पूर्वक इस बात को सुन लिया था. वह चुपके से सीधा पश्चिम दिशा के पगडंडी के तरफ निकल गया.  जैसे ही भोर हुई उसे सामने से दो आदमी आते दिखाई दिए.  सीतलू ने उनसे उनके गांव का नाम पूछा. जैसे ही उन्होंने गावं का नाम मशक बताया, सीतलू ने चेतावनीवश कहा तुम दोनों को आज मेरे हाथों मरना होगा. मैं तुम्हारा काल बन कर आया हूं. यदि खुद को बचा सको तो बचा लो.  गुथम-गुथाई के बाद सीतलू ने उनका भी  इंतकाम कर दिया. वह सीधा मशक गांव के ऊपर टोप पर बैठ कर जोर से आवाज मार कर चिल्लाया. मशक वालो मैंने तुम्हारे तीन जवानों को काटकर अपने नव जवान का प्रतिशोध ले लिया है. तुम अपने इन पिल्लों को समेट लेना.  मैं अपने घर जा रहा हूं. पूरे मशक गांव में मातम छा गया. गांव वाले अब सीतलू को मारने की तरकीब खोज रहे थे. आखिर सीतलू को कैसे मारा जाये.  मशक वालो ने कई मरतबा कांडोई गांव पर हमले की भरकस  कोशिशें भी की मगर सीतलू को मारने में असफल रहे. अतंत: उन्होंने कांडाई भरम  क्षेत्र से सटे पड़ोसी  गांव के लोगों को  सीतलू की मुखबरी करने का लालच दे दिया, जो सीतलू के दैनिक कार्यों पर निरंतर नजर रखे हुए थे.

सीतलू का खूनी डांगरा

एक दिन सीतलू राशन पिसाने हेतु अपने पास के ही घराट (चक्की) पर गया था. घराट वाले ने कहा आपका राशन कल सुबह के लिए तैयार हो जायेगा आप कल प्रात: काल में ही आ जाना. सीतलू रात खुलते ही घराट पर पहुंच गया. जैसे ही उसने राशन का बोझा उठाने की कोशिश करी, अचानक उसके सीने में मशक वालो ने तीर से वार कर दिया. सीतलू खून से घायल  लतपथ हो गया. वह समझ गया कि  दुश्मन ने मुझे घेर लिया है. मेरे साथ धोखा हुआ है. जैसे ही दुश्मन सामने आकर उसके सिर काटने को आगे बढ़ा, निहथा सीतलू  समझ गया कि दुश्मन मेरे सिर को काट कर अवश्य अपने साथ ले जायेगा. जो उसे हरगीज स्वीकार नही था. वह तड़फता हुआ बोला मैं सीतलू नही हूं. मैं एक देव शासनी व्यक्ति हूं. मुझे तुमने छल पूर्वक मारा है. इस झूठ के पीछे सीतलू का मकसद केवल इतना था कि दुश्मन उसके सिर को काट कर अपने गांव न ले जा पाये. उसे अपने मरने का  कोई गम नही था. मशक वालो ने  एका एक हमला कर तुरन्त सीतलू के सिर को धड़  से अलग कर दिया. मगर “मैं सीतलू नही हूं.” इस वाक्य को सुनकर  दुश्मन असमजस्ता  में पड़ गया तथा सीतलू के सिर को जमीन पर ही  छोड़ कर  आनन-फानन में घबरा कर फरार हो गये. उस दौर में देव शासनी गांव के लोगों पर आक्रमण नहीं किया जाता था. उनको देव तुल्य माना जाता था.  मशक वाले इस बात से दुखी थे कि शायद उनके मुखबरी ने उनको गलत सूचना दी होगी. इस बात को सिद्ध करने के लिऐ उन्होंने दूसरे दिन अपने खबरी को कांडोई गांव के ऊपर चूईया चोटी पर भेजा ताकि  वहां से पता लगाया सके कि क्या मरने वाला व्यक्ति सीतलू है या कोई अन्य देवशासनी गांव का व्यक्ति है. उस दौर में जब भी कोई मरता या मारा जाता था. उसकी अर्थी दाह संस्कार के लिए गाजे बाजे के साथ निकलती थी. उस दिन ढोलो ओर नगाड़ो  की गुजं कांडोई गांव से नगाण परिवार के घर से आ रही थी. जिस परिवार का बंशिदा सीतलू नाणसेऊ था, जो आज वीरगति को समा चुका था.

माता लछमी के जिगर का टुकड़ा तथा पिता दिलमी का होनहार बेटा सीतलू अब इस दुनिया से बिदा हो चुका था. सीतलू की पत्नी लाश के उपर बिलख बिलख कर अपने अश्रु की धारा बहा रही थी.  सीतलू के अंतिम यात्रा पर पूरी भरम खत उमड़ पड़ी. बताया जाता है, कि इस युद्ध में  19 आदमी मशक गांव के सीतलू के हाथो मारे गये थे.

अतंत: 20 आदमी मशक गांव के तथा 19 आदमी कांडोई गांव के वीर गति को समा जाने के पश्चाताप अन्य  इलाको के खूदं गांव की मध्यस्ता तथा सूझबूझ  के कारण  इस युद्ध  का विराम हुआ था. सीतलू का चमचमाता डांगरा  (हथियार) आज भी कांडोई गांव भरंम के कणियारा देव मंदिर में   मौजूद है, जो इस युद्ध की गवाही तथा अमीट निशानी के रूप में  सुरक्षित है.

अंत में सीतलू  का  बदला उसके जिगरी दोस्त शांटू मलकाण के द्वारा लिया गया था. जिसने मशक गांव के 20वें आदमी को मार कर सीतलू की मौत का प्रतिशोध पूरा किया तथा  युद्ध को कांडोई के गांव के पक्ष में विजयी बनाया.  आज भी सीतलू के परिवार वाले शांटू मलकाण के उस अहसान के कद्रदान में बकरे का दिल देकर अहसान चुकता करने की परम्परा निभाते हैं.

अतंत: 20 आदमी मशक गांव के तथा 19 आदमी कांडोई गांव के वीर गति को समा जाने के पश्चाताप अन्य  इलाको के खूदं गांव की मध्यस्ता तथा सूझबूझ  के कारण  इस युद्ध  का विराम हुआ था. सीतलू का चमचमाता डांगरा  (हथियार) आज भी कांडोई गांव भरंम के कणियारा देव मंदिर में   मौजूद है, जो इस युद्ध की गवाही तथा अमीट निशानी के रूप में  सुरक्षित है.

(सहयोग एंव साभार- सीतलू के वंशज जय पाल चौहान, नगाण परिवार, साधूसिहं चौहान विधायक, परिवार कांडोई भरम.)

(लेखक जौनसार-बावर के मशहूर गायक कलाकार एवं रचनाकार हैं. इनके गीत आकाशबाणी लखनऊ, नजीबावाद एवं देहरादून दूरदर्शन पर प्रसारित होते रहते हैं. कई लेख, कविताएं व कहानियां देश कई पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित. वर्तमान में भारत सरकार के ऱक्षा मत्रांलय लखनऊ में उच्च पद पर कार्यरत हैं)

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