काकड़, कोरैण, रायत और पीसी लूण
मेरे हिस्से और पहाड़ के किस्से भाग—5
प्रकाश उप्रेती
आज बात- 'कोरैण' की. कोरैण माने कोरने वाला. लुप्त होने के लिए 'ढिका' (किनारे) में बैठा यह औजार कभी भी लुढ़क सकता है. फिर हम शायद ही इसे देख पाएं. उन दिनों पहाड़ में हर घर की जरूरत थी -कोरैण. अब तो इसके कई स्थानापन आ गए हैं. कोरैण भी धीरे-धीरे पहाड़ के उन घरों की तरह पुरानी हो गयी है जो आधुनिकता की भेंट चढ़े. आधुनिकता और आराम ने कई पुरानी चीजों को ढहाया और ले आया नये व आसान विकल्प.
लकड़ी के हत्थे और लोहे की पत्ती से बनी कोरैण अलग-अलग आकार की होती थी. इसका आगे का हिस्सा मुड़ा होता था. उस मुड़े हुए हिस्से के 'कर्व' से तय होता था कि यह पतली वाली कोरैण है या मोटी वाली. लोगों द्वारा अलग-अलग चीजों को कोरने के लिए अलग-अलग कोरैण का इस्तेमाल किया जाता था.
"ले य काकड़ कोर दे" (ये ककड़ी कोर दे). हम ईजा को कहते थे 'डाव से कोरैण' निकाल दे. ईजा निक...