Tag: ऋतुराज वसंत

अस्तित्व की व्याप्ति का उत्सव है होली

अस्तित्व की व्याप्ति का उत्सव है होली

लोक पर्व-त्योहार
होली पर विशेष प्रो. गिरीश्वर मिश्र  प्रकृति के सौंदर्य और शक्ति के साथ अपने हृदय की अनुभूति को बाँटना बसंत ऋतु का तक़ाज़ा है. मनुष्य भी चूँकि उसी प्रकृति की एक विशिष्ट कृति है इस कारण वह इस उल्लास से अछूता नहीं रह पाता. माघ महीने के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को वसंत की आहट मिलती है. परम्परा में वसंत को कामदेव का पुत्र कहा गया है इसलिए उसके जन्म के साथ इच्छाओं और कामनाओं का संसार खिल उठता है. फागुन और चैत्त के महीने मिल कर वसंत ऋतु बनाते हैं. वसंत का वैभव पीली सरसों, नीले तीसी के फूल, आम में मंजरी के साथ, कोयल की कूक प्रकृति सुंदर चित्र की तरह सज उठती है. फागुन की बयार के साथ मन मचलने लगता है और उसका उत्कर्ष होली के उत्सव में प्रतिफलित होता है. होली का पर्व वस्तुतः जल, वायु, और वनस्पति से सजी संवरी नैसर्गिक प्रकृति के स्वभाव में उल्लास का आयोजन है. रंग, गुलाल और अबीर से एक दूसरे को...
आनंद का समय 

आनंद का समय 

साहित्‍य-संस्कृति
नीलम पांडेय‘नील’ ब्रह्म ने पृथ्वी के कान में एक बीज मंत्र दे दिया है उसी क्रिया की प्रतिक्रिया में  जब बादल बरसते हैं,  तो स्नेह की वर्षा होने लगती है  और पृथ्वी निश्चल भीग उठती है. आज भी बादलों के गरजने और  धरती पर फ्यूंली के फूलने से, यूं लग रहा है  कि पृथ्वी मंत्र बुदबुदा रही है.  उत्तराखंड चीड़ के वृक्षों की झूमती कतारों से निकलने वाली सांय-सांय की आवाज दूर तक जैसे किसी की याद दिलाने लगती है. वृक्षों से निकल कर  पीला फाग उड़-उड़ कर because फैलने लगता है और पूरे वातावरण को अपनी आगोश में ले लेता है. एक लम्बी सुसुप्ति और नीरवता के बाद पेड़ पौधों पर नवांकुरो और नवपल्लवों को आते हुए देखना बहुत सुंदर लगता है ...आज सृजन के ऋतु यानी ऋतुराज वसंत के आगमन की शुरुआत है. नव पल्लव की सुगंध में रचे बसे से लोग, लोक जीवन के भाव लिए हुए नए कोंपलों के स्वागत की तैयारी में गीत गाने लगते हैं, so ...