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महिला दिवस: होली और पहाड़

महिला दिवस: होली और पहाड़

आधी आबादी
जे .पी. मैठाणी पीपलकोटी के बाजार के अंतिम छोर पर बाड़ेपानी के धारे से तड़के सुबह पानी की बोतलें भरती औरतें, अपनी कमर पर स्येलू या सीमेंट के कट्टों से बनी टाईट रस्सियाँ बांधे औरतें ! उधर अगथला गाँव से पीठ पर बन्दूक की तरह सुयेटे लादी पहाड़ की औरतें , रोज अपने अपने हिस्से का पहाड़ नापने और कालपरी , जेठाणा, तमन गैर से और आगे भंडीर पाणी से ग्वाड या छुर्री तक घास लेने जाती मेरे गाँव की औरतें - हमारे हिस्से के पहाड़ की ताकत हैं होली के रंग की प्रतीक हैं और महिला दिवस की प्रेरणा भी हैं! रंगीन होली के रंगों की तरह ही पहाड़ के इस हिस्से की महिलाओं के सपने भी आशाओं और विश्वास से भरे और बेहद रंगीन है- गुलाबी- थोड़े जैसे सकीना की तरह नीले जैसे कैम्पानुला या सड़क किनारे के जैक्रेंडा की तरह पीले फ्यूंली या सिल्वर ओक की तरह, लाल जैसे - बुरांश या सेमल की तरह नारंगी या हनुमानी जैसे...
न्यायदेवता ग्वेलज्यू के अष्ट-मांगलिक नारी सशक्तीकरण के सिद्धांत

न्यायदेवता ग्वेलज्यू के अष्ट-मांगलिक नारी सशक्तीकरण के सिद्धांत

साहित्‍य-संस्कृति
डॉ. मोहन चंद तिवारी "नारी! तुम केवल श्रद्धा हो, विश्वास रजत नग पगतल में. पीयूष स्रोत सी बहा करो, जीवन के सुंदर समतल में..”                       –जयशंकर प्रसाद 8 मार्च का दिन समूचे विश्व में 'अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस' के रूप में मनाया जाता है. यह दिन महिलाओं को स्नेह, सम्मान और उनके सशक्तीकरण का भी दिन है. because हिंदी के जाने माने महाकवि जयशंकर प्रसाद जी की उपर्युक्त पंक्तियों से भला कौन अपरिचित है जिन्होंने श्रद्धा और विश्वास रूपिणी नारी को अमृतस्रोत के रूप में जीवन के धरातल में उतारा है. प्राचीन काल से ही हमारे समाज में नारी का विशेष आदर और सम्मान होता रहा है. हमारे पौराणिक ग्रंथों में नारी को पूज्यनीय एवं देवीतुल्य माना गया है. हमारी धारणा रही है कि देव शक्तियां वहीं पर निवास करती हैं जहां पर समस्त so नारी जाति को प्रतिष्ठा व सम्मान की दृष्टि से देखा जाता है. कोई भी परि...