Tag: अंकिता पंवार

मेरे पांव में चमचाते शहर की बेड़ियां

मेरे पांव में चमचाते शहर की बेड़ियां

उत्तराखंड हलचल, साहित्‍य-संस्कृति
ललित फुलारा युवा पत्रकार हैं। पहाड़ के सवालों को लेकर मुखर रहते हैं। इस लेख के माध्यम से वह पहाड़ से खाली होते गांवों की पीड़ा को बयां कर रहे हैं। शहर हमें अपनी जड़ों से काट देता है. मोहपाश में जकड़ लेता है. मेरे पांव में चमचाते शहर की बेड़ियां हैं. आंगन विरान पड़ा है. वो आंगन जिसमें पग पैजनिया थिरकती थीं. जिसकी धूल-मिट्टी बदन पर लिपटी रहती थी. जहां ओखली थी. बड़े-बड़े पत्थर पुरखों का इतिहास बयां करते थे. किवाड़ की दो पाटें खुली रहती थी. गेरुए रंग पर सफेद ऐपण, निष्पक्षता, निर्मलता और सादगी की परंपरा को समेटे हुई थी. ज्योतिष त्रिभुजाकार छतों पर जिंदगी के संघर्ष, उतार-चढ़ाव और सफलता में धैर्य और विनम्रता की सीख छिपी थी. पर अब सब कुछ विरान है. गांव खाली पड़ा है. आप चाहे तो उत्तराखंड के 1668 भुतहा गांवों में मेरे गांव को भी शामिल कर सकते हैं. पलायन के आंकड़ें रोज़गार पैदा करते तो...