बचपन को जीवंत करती कहानियां

डॉ. अरुण कुकसाल

बचपन में अपने बुर्जगों, शिक्षकों और दोस्तों से सुनी कहानियां, कथायें, किस्से, कवितायें, कहावतें और भी इसी तरह का बहुत कुछ हमारे अंतःमन में विराजमान वो धरोहरें हैं जो कभी फीकी नहीं होती हैं.  

हमें अक्षरतः वो सब याद है जो हमारे अग्रजों ने हमें अनौपचारिक तरीके से बताया या सिखाया. और, जो किताबी ज्ञान हमने अपने स्कूल से लेकर विश्वविद्यालय तक की परीक्षाओं में उडेला उसका अब हमारी जीवन-चर्या में न अता है और न पता है.  वो परीक्षा वाले प्रश्न जीवन में विरले ही काम आये होंगे. पर, नुक्कड़ पर सुनी बातें और मित्रों के सुझाव आज भी असल जीवनीय शिक्षा के बतौर हमारे आस-पास ही हैं.

शिक्षिका इंदु पंवार की इन छोटी-छोटी कहानियों को पढ़ते हुए मुझे अपने उस प्यारे गुरू जी का याद आयी जो अपनी सभी कक्षाओं के बच्चों को स्कूल में किताब लाने के लिए मना करते थे.  ऐसा, वो हम बच्चों पर अनावश्यक बोझ से राहत देने के लिए करते. जबकि, उस काल में स्कूली बस्ते का बोझ, आज के मुकाबले बहुत कम होता था.

 Indu Panwar

विभिन्न कक्षाओं की सभी किताबें उन गुरू जी के जेहन में रची-बसी थी. फिर, किताब की जरूरत न उनको थी और न हम बच्चों को वो कराने देते थे. वो कहते, कक्षा में किताब खोलने के बजाय अध्यापक की बातें ध्यान से सुनते हुए अपने कान और आंख सचेत रखो, ताकि तुम वही बोलना सीखो जो बोलने योग्य है.

वो किताब के पाठ से ज्यादा उस पाठ की हमारे जीवन में क्या महत्वा है. इस पर जोर देते. उस पाठ का ज्ञान हमको जीवन में कब और कैसे मदद करेगा? इसको रोचकता से समझाते न कि कान उमेठ कर. अध्यापन की यह रोचकता वो पाठ से उपजी कहानियों और किस्सों के कलेवर में हम बच्चों तक पहुंचाते थे. और, मजे बात की बात यह कि उनकी कहानियां सुनी-सुनाई नहीं होती थी. नित्य नई होती थी.

कक्षा में बच्चों की उस दिन की मनोदशा के अनुरूप स्वयं गढ़कर वो कहानी सुनाते.  इस प्रक्रिया में अक्सर हम भी उनके साथ कहानीकार हो जाते. कहानी के पात्रों के नाम चुनने का अधिकार वे हम बच्चों को ही देते. ऐसी ही शिक्षिका इंदु पंवार हैं.

शिक्षिका-कहानीकार इंदु पंवार ने ‘कहानियों की झप्पी’ में मौजूद 8 कहानियों में वर्षों की आपा-धापी के बीच बिछुड गये हम बुर्जुगों का बचपन जीवंत कर दिया है. अतीत की यादें हमेशा मन को तरंगित करती हैं. यही, इस किताब ने किया है. और, इससे अधिक खुशी यह है कि यह विश्वास भी प्रबल हुआ है कि आज भी मेरे उन गुरू जी जैसे अघ्यापक हैं जो बच्चों के बचपन को कक्षा में प्रफुल्लित बनाये रखते हैं.

यह सकून देने वाला विचार है कि वे कक्षा अध्यापन के दौरान अपने सयानेपन की तथाकथित समझदारी की नीरसता को ‘मन-मस्तिष्क से बाहर आना मना है’, का सहर्ष पालन करते हैं. ‘समय साक्ष्य प्रकाशन’, देहरादून से अभी हाल में उदीयमान कहानीकार इंदु पंवार का कहानी संग्रह ‘कहानियों की झप्पी’ प्रकाशित हुआ है. इस किताब का खूबसूरत आवरण और सभी रेखाचित्र प्रियंका जोशी ने तैयार किए है.

Indu Panwar

‘मेरी मां बचपन में मुझे बहुत सी कहानियां सुनाया करती थी. मुझे इन्हें सुनने में बहुत मजा आता था, इन कहानियों ने मुझे अत्यधिक प्रभावित किया. मां से मिली सीख और एक शिक्षिका के रूप में दो दशकों के अर्जित अनुभवों को बच्चों के लिए कहानियों के रूप में पिरोने की कोशिश की है. कक्षा अध्यापन के दौरान कहानियों का प्रयोग मैं अपने स्कूल में हमेशा करती हूं.

इन कहानियों का संकलन इसी बात को ध्यान में रखकर किया है कि यह कहानियां बच्चों में सुनने, अभिव्यक्त करने, भाषा को सुदृढ़ करने और बातों-बातों में भाषा की जटिलता को समझने और पढ़ने-लिखने की प्रक्रिया को रोजमर्रा के जीवन से जोड़ने में मदद कर सके.’

कहानीकार इंदु पंवार का उक्त वक्तव्य ‘कहानियों की झप्पी’ बाल कहानियों की मंशा को बखूबी इंगित करता है. वह प्रयोगधर्मी शिक्षिका हैं. कक्षा अध्यापन में नित्य नवीन सृजनता की पक्षधर हैं.

इन कहानियों में बच्चों की नैसर्गिक जिज्ञासा, उत्सुकुता और समभाव का प्रवाह है. ये कहानियां, बच्चों को अपनी बात कहने का सहज हक और स्वतंत्रता दे रही हैं. संदेशों की बोझिलता से ये दूर हैं. तभी तो, बच्चों जैसी सदाबहार ताजगी इन कहानियों में है.

कुशल शिक्षिका और नवोदित बाल कहानीकार इंदु पंवार जी को आत्मीय बधाई और शुभाशीष. एक कथाकार के रूप में भी वो कामयाब हों, यह शुभकामनायें हैं.

कहानी संग्रह- ‘कहानियों की झप्पी’
कहानीकार- इंदु पंवार
आवरण एवं रेखाचित्र- प्रियंका जोशी
प्रकाशक- समय साक्ष्य, फालतू लाइन, देहरादून
प्रथम संस्करण- 2023  मूल्य- 75

ग्राम-चामी, पोस्ट- सीरौं-246163
पट्टी- असवालस्यूं, विकासखण्ड- कल्जीखाल
जनपद- पौड़ी (गढ़वाल), उत्तराखंड

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