राष्ट्ररक्षा और पर्यावरण संचेतना का पर्व शारदीय नवरात्र

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  • डॉ. मोहन चंद तिवारी

17 अकटूबर, 2020 से शारदीय नवरात्र का शुभारम्भ हो रहा है. हर वर्ष शारदीय नवरात्र के अवसर पर पूरे देश में दुर्गापूजा का महोत्सव बड़े धूमधाम से मनाया जाता है. श्रद्धालुजन शक्तिपीठों because और देवी के मन्दिरों में जाकर आदिशक्ति भगवती से प्रार्थना करते हैं कि पूरे ब्रह्माण्ड में प्राकृतिक प्रकोप शान्त हों‚ तरह तरह की व्याधियों और रोगों से छुटकारा मिले‚ प्राणियों में आपसी वैरभाव समाप्त हो और पूरे विश्व का कल्याण हो. नवरात्र नवशक्तियों के सायुज्य का पर्व है जिसकी एक-एक तिथि में एक-एक शक्ति प्रतिष्ठित रहती है-

“नवशक्तिभिः संयुक्तं नवरात्रं तदुच्यते.”

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शास्त्रकारों के अनुसार ‘शयन’ और ‘बोधन’ दो प्रकार के नवरात्र होते हैं. ‘शयन’ चैत्र मास में होता है जिसे वासन्तीय नवरात्र कहते हैं और ‘बोधन’ आश्विन मास में होता है जिसे शारदीय नवरात्र कहते हैं. शरद ऋतु देवताओं की रात्रि है because इसलिए शारदीय नवरात्र में ‘बोधन’ की पूजा विधि अपनाई जाती है. so भागवत पुराण के अनुसार अत्याचारी रावण का वध करने और सीता को उसकी कैद से मुक्त कराने के लिए श्रीराम को जगदम्बा की शरण में जा कर उन्हें जगाना पड़ा तभी से भारत में शारदीय नवरात्र मनाने का प्रचलन शुरू हुआ. शारदीय नवरात्र में लगातार नौ दिन देवी भगवती की आराधना करने के बाद दसवें दिन विजयदशमी का वह दिन आता है जब राम ने रावण का वध किया और पुनः अयोध्या में वापस लौटकर रामराज्य की स्थापना की.

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इन नवरात्रों में धरती के because प्रकृति विज्ञान को मातृ तुल्य वन्दना करते हुए मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम आसुरी शक्तियों का संहार करते हैं तथा अपने पराक्रम का परिचय देकर लोक कल्याणकारी राज्य की स्थापना भी करते हैं. यानी राष्ट्र की प्रासंगिकता राष्ट्र राज्य के संचालन मात्र से नहीं मूल्यांकित होती है अपितु राष्ट्र की सीमाओं की सुरक्षा और लोक कल्याणकारी नीतियों से भी निर्धारित होती है.

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नवरात्र शारदीय हों या वासन्तीय अयोध्या के सूर्यवंशी राजाओं खास कर भगवान राम के इतिहास के साथ इस का गहरा संबंध है. because उधर वासन्तीय नवरात्र की नवमी तिथि इस दृष्टि से महत्त्वपूर्ण है कि but इसी दिन सूर्यवंशी भरत राजाओं की राजधानी अयोध्या में स्वयं विष्णु भगवान ने राम के रूप में जन्म लिया. पूरे देश में इस तिथि को रामनवमी के रूप में बड़े धूमधाम से मनाया जाता है. इधर शारदीय नवरात्र में राम ने आदिशक्ति की आराधना करने के बाद दसवें दिन विजयदशमी रावण का वध किया.

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त्रेतायुग से चली आ रही शक्ति पूजन की यह परम्परा नवरात्र के अवसर पर इतना व्यापक रूप धारण कर लेती है कि उत्तर में कश्मीर से लेकर दक्षिण में कन्याकुमारी तक और पश्चिम में राजस्थान से because लेकर पूर्व में गौहाटी तक जितने भी ग्राम‚ नगर और प्रान्त हैं अपनी अपनी आस्थाओं और पूजा शैलियों के अनुसार लाखों करोड़ों दुर्गाओं की सृष्टि कर डालते हैं.

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दरअसल‚ भारतीय सैन्यशक्ति का शौर्यपूर्ण इतिहास साक्षी रहा है कि नवरात्र अयोध्यावंशी भारतजनों का मुख्य पर्व था. ‘तैत्तिरीय आरण्यक’ के अनुसार नवरात्र में अष्टमी के दिन अयोध्या दुर्ग के because रक्षक वीर योद्धा- ‘उत्तिष्ठत जाग्रत अग्निमिच्छध्वं भारताः.’ के विजयघोष से शस्त्रपूजा करते थे. जब भी देश पर आक्रमण हुआ है अयोध्या दुर्ग के रक्षक भारतवंशी वीरों ने देश रक्षा का अभूतपूर्व इतिहास कायम किया है तभी से so नवरात्र के अवसर पर दुर्ग-रक्षिका दुर्गा की पूजा का प्रचलन शुरू हुआ. राष्ट्ररक्षा की इसी भावना से प्रेरित होकर भरतवंशी राजाओं ने वर्ष में दो बार आने वाले नवरात्रों को राष्ट्र की सुरक्षा तथा प्रकृति पूजा के अभियान से जोड़ा.

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प्रकृति पूजा का विचार तन्त्र नवरात्र में एक राष्ट्रीय महोत्सव जैसा रूप इसलिए धारण कर लेता है ताकि पर्यावरण संरक्षण की एक भारतीय परम्परा को चिरन्तन रूप दिया जा सके. because इसे देवी पूजा या मर्यादा पुरुषोत्तम राम के इतिहास से इसलिए जोड़ा गया है ताकि पर्यावरण संचेतना तथा राष्ट्ररक्षा का अर्द्धवार्षिक अभियान व्यक्ति‚ समाज और राष्ट्र इन तीनों को नवीन ऊर्जा प्रदान कर शक्तिमान् बना सके.

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इन नवरात्रों में धरती के प्रकृति विज्ञान को मातृ तुल्य वन्दना करते हुए मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम आसुरी शक्तियों का संहार करते हैं तथा अपने पराक्रम का परिचय देकर लोक कल्याणकारी because राज्य की स्थापना भी करते हैं. यानी राष्ट्र की प्रासंगिकता राष्ट्र राज्य के संचालन मात्र से नहीं मूल्यांकित होती है अपितु राष्ट्र की सीमाओं की सुरक्षा और लोक कल्याणकारी नीतियों से भी निर्धारित होती है.

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दरअसल‚ भारत के प्राचीन राष्ट्रवादी चिन्तकों का यह मानना था कि आततायियों और आतंक फैलाने वाले तत्त्वों का सफाया किए बिना कोई भी राष्ट्र सही मायने में ‘राष्ट्र’ कहलाने योग्य नहीं है. because संस्कृत साहित्य की एक प्रसिद्ध सूक्ति के अनुसार शस्त्र अर्थात् पराक्रम से संरक्षित राष्ट्र में ही शास्त्रीय और कूटनीतिक बहस प्रासंगिक हो सकती है-

‘शस्त्रेण रक्षिते राष्ट्रे शास्त्रचर्चा प्रवर्तते.’

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प्रकृतिवादियों ने इसी पराक्रम से संरक्षित राष्ट्र में पर्यावरण की सुरक्षा भी एक दूसरा आवश्यक तत्त्व जोड़ दिया. प्रकृति पूजा का विचार तन्त्र नवरात्र में एक राष्ट्रीय महोत्सव जैसा रूप इसलिए because धारण कर लेता है ताकि पर्यावरण संरक्षण की एक भारतीय परम्परा को चिरन्तन रूप दिया जा सके. इसे देवी पूजा या मर्यादा पुरुषोत्तम राम के इतिहास से इसलिए जोड़ा गया है ताकि पर्यावरण संचेतना तथा राष्ट्ररक्षा का so अर्द्धवार्षिक अभियान व्यक्ति‚ समाज और राष्ट्र इन तीनों को नवीन ऊर्जा प्रदान कर शक्तिमान् बना सके.

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भारत के प्रकृति उपासकों का पूरी दुनिया को यह संदेश है कि वर्ष में दो बार आने वाले नवरात्रों को महज एक धार्मिक अनुष्ठान के रूप में ही नहीं मनाया जाना चाहिए बल्कि इसे because राष्ट्ररक्षा तथा पर्यावरण संरक्षण के एक पखवाड़े के रूप में भी मनाया जाना चाहिए. so भारतवासी अथर्ववेद के काल से ही मातृभूमि के विचार को राष्ट्र रक्षा के विचार से जोड़ते आए हैं और शारदीय नवरात्र का देशव्यापी अनुष्ठान उसी राष्ट्ररक्षा का एक राष्ट्रीय महोत्सव है. समस्त देशवासियों को शारदीय नवरात्र की हार्दिक शुभकामनाएं!

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(लेखक दिल्ली विश्वविद्यालय के रामजस कॉलेज से एसोसिएट प्रोफेसर के पद से सेवानिवृत्त हैं. एवं विभिन्न पुरस्कार व सम्मानों से सम्मानित हैं. जिनमें 1994 में संस्कृत शिक्षक पुरस्कार’, 1986 में विद्या रत्न सम्मान’ और 1989 में उपराष्ट्रपति डा. शंकर दयाल शर्मा द्वारा आचार्यरत्न देशभूषण सम्मान’ से अलंकृत. साथ ही विभिन्न सामाजिक संगठनों से जुड़े हुए हैं और देश के तमाम पत्रपत्रिकाओं में दर्जनों लेख प्रकाशित.)

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