पितृपक्ष: आखिर इस बार 17 दिनों के क्यों हुए श्राद्ध

0
327

पितृपक्ष में श्राद्ध एक धर्मशास्त्रीय विवेचन

  • डॉ. मोहन चंद तिवारी

इस साल पितृपक्ष सोमवार 20 सितंबर से प्रारम्भ हो चुका है और 6 अक्टूबर को समाप्त होगा. पितृपक्ष अश्विन मास के कृष्ण पक्ष में आता है. इसकी शुरुआत पूर्णिमा तिथि से होती है, जबकि because समाप्ति अमावस्या पर होती है. आमतौर पर पितृपक्ष 16 दिनों का होता है, लेकिन इस साल तिथि के एक दिन बढ़ जाने से यह 17 दिनों का हो गया है. 26 सितंबर को श्राद्ध तिथि का अभाव होने से इस दिन श्राद्ध नहीं होगा. इस प्रकार श्राद्ध की तिथि बढ़ने से इस बार एक नवरात्र भी कम हो गया है इस बार पितृपक्ष की तिथिवार श्राद्ध की स्थिति इस प्रकार है-

ज्योतिष

20 सितंबर को पूर्णिमा श्राद्ध
21 सितंबर because को प्रतिपदा श्राद्ध
22 सितंबर because को द्वितीया श्राद्ध
23 सितंबर because को तृतीया श्राद्ध
24 सितंबर because को चतुर्थी श्राद्ध
25 सितंबर को पंचमी श्राद्ध
26 सितंबर को कोई श्राद्ध नहीं
27 सितंबर को षष्ठी श्राद्ध
28 सितंबर को सप्तमी श्राद्ध
29 सितंबर को because अष्टमी श्राद्ध
30 सितंबर को नवमी श्राद्ध
01 अक्तूबर को दशमी श्राद्ध
02 अक्तूबर को एकादशी श्राद्ध
03 अक्तूबर को  द्वादशी श्राद्ध
04 अक्तूबर को त्रयोदशी श्राद्ध
05 अक्तूबर को चतुर्दशी श्राद्ध
06 अक्तूबर को सर्वपितृ अमावस्या श्राद्ध

ज्योतिष

वैदिक सनातन धर्म के अनुयायी इस पितृपक्ष में अपने स्वर्गीय पिता, पितामह, प्रपितामह, माता, मातामह आदि पितरों को श्रद्धा तथा भक्ति सहित पिंडदान देते हैं और उनकी तृप्ति हेतु तिलांजलि सहित श्राद्ध तर्पण भी करते हैं. ‘श्राद्ध’ का अर्थ है जो वस्तु श्रद्धापूर्वक दी जाए- ‘श्रद्धया दीयते यत् तत् श्राद्धम्.’ आश्विन मास के पितृपक्ष को ‘महालय’ because इसलिए कहते हैं क्योंकि यह पक्ष पितरों का आलय (निवास) है. महालय श्राद्ध में मुख्य रूप से तीन कार्य होते हैं- पिंडदान, तर्पण और ब्राह्मण भोजन. अपराह्नकाल में दक्षिण दिशा की ओर मुख करके पिसा हुआ चावल‚ गाय का दूध,घी शक्कर‚ शहद को मिलाकर बने पिंडों को श्रद्धाभाव से पितरों को अर्पित करना पिंडदान कहलाता है. जल में काले तिल‚जौ‚ कुश और पुष्प को लेकर पितरों के निमित्त तर्पण किया जाता है.

ज्योतिष

पितृपक्ष में श्राद्ध कर्म करने की परंपरा पुरातनकाल से चली आ रही हमारी धार्मिक आस्था ही नहीं अपितु सांस्कृतिक विरासत और कालगणना का भी यह हिस्सा रही है. वैदिक सनातनbecause धर्म में पितृपक्ष से जुड़ी धार्मिक मान्यता के अनुसार मृत्‍यु के बाद मृत व्‍यक्ति का श्राद्ध करना बहुत आवश्यक होता है. यदि मृत व्यक्ति का श्राद्ध न किया जाए तो मरने वाले व्‍यक्ति की आत्‍मा को शांति और मुक्ति नहीं मिलती है. मान्यता यह भी है कि पितृपक्ष के दौरान पितरों का श्राद्ध करने से उनकी आत्‍मा को शांति मिलती है और वे तृप्त व प्रसन्‍न होने पर अपने वंशजों को धन-पुत्र और खुशहाली का आशीर्वाद भी देते हैं.

ज्योतिष

असल में अपने पूर्वजों की वंश परम्परा के कारण ही हम आज इस मनुष्य जीवन को भोग रहे हैं और इस जीवन का सुख और आनंद प्राप्त कर रहे हैं. इस सनातन वैदिक धर्म परम्परा because में,ऋषियों ने वर्ष में एक पक्ष को पितृपक्ष का नाम दिया है.इसी पितृपक्ष में हम अपने पितरेश्वरों का श्राद्ध, तर्पण और उनकी मुक्ति हेतु विशेष क्रिया संपन्न करते हुए उन्हें अर्घ्य समर्पित करते हैं.यदि किसी कारण से उनकी आत्मा को मुक्ति प्रदान नहीं हुई हो, तो हम उनकी शांति के लिए विशिष्ट कर्म करते है जिसे ‘श्राद्ध’ कहा जाता है.

ज्योतिष

‘ब्रह्मपुराण’ ने श्राद्ध की because परिभाषा देते हुए कहा है कि “जो कुछ उचित काल, पात्र एवं स्थान के अनुसार उचित शास्त्रानुमोदित विधि द्वारा पितरों को लक्ष्य करके श्रद्धापूर्वक ब्राह्मणों को दिया जाता है, वह श्राद्ध कहलाता है.”-

ज्योतिष

“देशे काले च पात्रे च because श्रद्धया विधिना च यत्. पितृनुद्दिश्य विप्रभ्यो दत्तं श्राद्धमुदाह्रतम्..”   -ब्रह्मपुराण 

ज्योतिष

मनु के अनुसार श्राद्ध पांच प्रकार का होता है- नित्य, नैमित्तिक, काम्य‚ वृद्धि और पार्वण. आश्विन मास का पितृपक्षीय श्राद्ध ‘पार्वण श्राद्ध’ कहलाता है. धर्मशास्त्रों में कहा गया है कि because पितरों को पिण्डदान करने वाला गृहस्थ दीर्घायु,पौत्रादि, यश, स्वर्ग, र्कीर्ति, बल, लक्ष्मी‚ धन-धान्यादि की प्राप्ति करता है.

ज्योतिष

श्राद्ध करने के सामान्य नियम

श्राद्ध करने का सामान्य नियम because यह है कि वर्ष के किसी भी मास या पक्ष की जिस तिथि में पितर जन की मृत्यु हुई हो आश्विन कृष्ण पक्ष की उसी तिथि को उस पितर का श्राद्ध करने का विधान है. अपवाद स्वरूप माता या कुल की अन्य सधवा रूप में मृत नारियों का श्राद्ध केवल पितृपक्ष की नवमी तिथि को ही किया जाता है भले ही वे किसी भी तिथि को मरी हों.

ज्योतिष

संन्यासी व्यक्ति का श्राद्ध भी द्वादशी तिथि को निश्चित है. अकाल मृत्यु‚ विषपान तथा आत्महत्या के कारण मरे हुए व्यक्ति का श्राद्ध पितृपक्ष की चतुर्दशी तिथि को किए जाने का विधान है. because जिनकी मृत्यु तिथि याद नहीं या किसी कारण वश उस पितर का श्राद्ध निश्चित तिथि पर न हो सका हो तो ऐसे सभी पितरों का श्राद्ध अमावस्या की तिथि को किया जा सकता है. ‘निर्णयसिन्धु’ के अनुसार आषाढी कृष्ण अमावस्या से पांच पक्षों के बाद आने वाले पितृपक्ष में जब सूर्य कन्या राशि में प्रवेश करता है तब पितर जन क्लिष्ट होते हुए अपने वंशजों से प्रतिदिन अन्न जल पाने की इच्छा रखते हैं-

ज्योतिष

“आषाढीमवधिं कृत्वा
 पंचमं पक्षमाश्रिताः.
 कांक्षन्ति पितरः क्लिष्टा
 अन्नमप्यन्वहं जलम् ..”

ज्योतिष

आश्विन मास के पितृपक्ष में पितरों को यह आशा रहती है कि हमारे पुत्र-पौत्रादि हमें पिण्डदान तथा तिलांजलि देकर संतुष्ट करेंगे. इसी इच्छा को लेकर वे पितृलोक से पृथ्वीलोक में आते हैं.because पितृपक्ष में यदि पितरों को पिण्डदान या तिलांजलि नहीं मिलती है तो वे पितर निराश होकर अपने पुत्र-पौत्रादि को कोसते हैं और उन्हें शाप भी दे देते हैं.

ज्योतिष

अंत में, मैं इस पितृपक्ष में because पृथ्वीलोक में आए हुए पितरदेवों से प्रार्थना करता हूं कि वे राष्ट्र के प्रदूषित वातावरण को शान्त करें तथा उनसे संचालित हमारे देश का ब्रह्मांडीय ऋतुचक्र राष्ट्र को निरोगता और खुशहाली प्रदान करे. सभी मित्रों को पितृपक्ष की हार्दिक शुभकामनाएं.

ज्योतिष

(सांकेतिक चित्र गूगल से साभार)

(लेखक दिल्ली विश्वविद्यालय के because रामजस कॉलेज से एसोसिएट प्रोफेसर के पद से सेवानिवृत्त हैं. एवं विभिन्न पुरस्कार व सम्मानों से सम्मानित हैं. जिनमें 1994 में ‘संस्कृत शिक्षक पुरस्कार’, 1986 में ‘विद्या रत्न सम्मान’ और 1989 में उपराष्ट्रपति डा. शंकर दयाल शर्मा द्वारा ‘आचार्यरत्न देशभूषण सम्मान’ से अलंकृत. साथ ही विभिन्न सामाजिक संगठनों से जुड़े हुए हैं और देश के तमाम पत्र—पत्रिकाओं में दर्जनों लेख प्रकाशित.)

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here