शख्सियत : रंग लाई ‘साधना’ की साधना

आशिता डोभाल

देवभूमि उत्तराखंड अपने आप में एक खूबसूरत राज्य तो है ही साथ सदियों से ये पर्वतीय राज्य समय-समय पर ऋषि मनिसियों, वीर बालाओं, विरांगनाओं की जन्मभूमि और कर्मभूमि भी रही है. बात चाहे गौरा देवी की करें या तीलू रौतेली की, महारानी कर्णावती की या बसंती बिष्ट की या किसी भी साधारण-सी दिखने वाली गांव की थाती-माटी से जुड़ी महिला की. उसके संघर्षों की दास्तां अपने आप में एक अनूठी मिसाल कायम करती हुई कहानी-सी लगेगी और उस कहानी के पात्र लिखते-लिखते आप महसूस करेंगे कि पहाड़ में जीवन कितना कठिन और दुश्वार रहा होगा. परिस्थितियां चाहे कैसी भी रही हों, पहाड़ की नारी ने इन संघर्षों और कठिनाइयों को सहर्ष स्वीकार किया और उन से पार पाकर देश ही नहीं विश्व पटल पर भी अपना नाम ऊंचा किया.

सीमांत जनपद उत्तरकाशी आज भी विषम भौगोलिक परिस्थितियों से जूझ रहा है, जबकि हम आज 21वीं सदी में जी रहे है पर हमारे कई गांव आज मूलभूत सुख-सुविधाओं से वंचित है. मां गंगा और यमुना का उद्गम भी यही से हुआ है और ये नदियां आज भी हजारों लाखों लोगों की प्राणदायिनी बनी हुई हैं.

गांव की मिट्टी से लिखाई और आज आधुनिक तकनीक तक के सफर को तय करने वाली, जिनकी रचनाओं में गांव का वो परिवेश नजर आता है, जिसे उन्होंने देखा,  भोगा और जिया है.  मैं बात कर रही हूं उत्तरकाशी जिले के चिन्यालीसौड़ विकासखंड के दूरस्थ गांव जोगथ मल्ला के निवासी गीताराम जगूड़ी एवं शैला देवी जगूड़ी के घर में जन्मी साधना जगूड़ी जोशी की, जो बचपन से ही विलक्षण प्रतिभा की धनी रही हैं. माता-पिता की तपस्या से जन्मी साधना नाम से ही नहीं आज अपनी साधना से लगातार कुछ न कुछ नया करने का जो,  जुनून सिर्फ अपने अंदर ही नही बल्कि दूसरों के अंदर भी भरती हैं.

साधना का बचपन बड़ी ही विषम भौगोलिक परिस्थितियों से घिरा रहा, क्योंकि अमूमन पहाड़ में बालिका शिक्षा पर लोग ज्यादा ध्यान नहीं देते थे पर पिताजी प्रवास में ब्राह्मणवृति का काम करते थे, तो उन्होंने एक प्रण तो ले ही लिया था कि घर की बेटी-बहु पढ़ी-लिखी होनी जरूरी है ताकि दूर प्रवास में रहने वाले भाईयों या पति को चिट्ठी पढ़ने-लिखने में सक्षम हो यानी की बालिकाओं को सिर्फ पांचवी या आठवीं पास करवाया जाता था.

साधना जोशी बताती है कि मैंने पाटी और मिट्टी (धुळेटा) पर लिखकर अपनी पढ़ाई की शुरुआत की. उन्हें सबसे पहले शिक्षा का मूलमंत्र “ॐ नमः सिद्धम” लिखवाकर उनकी पढ़ाई की शुरुआत हुई थी. और उनका कहना है कि मेरी पढ़ाई भी चिट्ठी पत्री लिखने पढ़ने के लिए ही करवाई गई थी, पर जिद्द और जुनून से सब संभव होता गया.

प्राइमरी शिक्षा गांव में ही हुई व आगे की शिक्षा के लिए गांव से 10 किमी दूर पोखरी सौड़ में 6वीं से 8वीं तक को पढ़ाई की गई व 9वीं से 12वीं तक की पढ़ाई राजकीय बालिका इंटर कॉलेज उत्तरकाशी में हुई. साधना गांव घर में होने वाले खेती किसानी के काम भी करती रही वो हर काम में निपुण रही है.  अब सबसे बड़ी चुनौती ये थी कि आगे की पढ़ाई कैसे की जाए तो फिर घर में सब लोगों की राय लेने के लिए घर में एक विशेष बैठक का आयोजन किया गया साधना जी बताती है कि मेरी पहली गुरु मेरी मां और मेरी सबसे बड़ी भाभी रही है और मार्गदर्शक के रूप में भाइयों ने भी साथ दिया. उच्च शिक्षा के लिए भाभी ने पूरे परिवार के सामने बात रखी व साधना जी ने घर के सारे काम करने के लिए हामी भरी पर वही न बालिकाओं के लिए असुरक्षा की भावनाओं ने हमेशा घर बनाए रखा पर पहाड़ की बेटी के मजबूत इरादे ने सजगता से पढ़ाई की पहले स्नातक, स्नातकोत्तर, बीएड,एमएड,विशिष्ठ बीटीसी की डिग्री हासिल की व पढ़ाई लिखाई जितनी संभव हो सकी उतनी पढ़ाई की.

जोगथ मल्ला दूरस्थ गांव तो था ही पर शिक्षा के जगत में साधना जी गांव की पहली लड़की थी जो उच्च शिक्षा के लिए अपने गांव से बाहर निकली. शिक्षा जगत में एक नया कीर्तिमान स्थापित करने वाली साधना आज बहुत सारी महिलाओं के लिए प्रेरणाश्रोत और मार्गदर्शन का काम करती है खासकर उन बालिकाओं के लिए जो आज 21वीं सदी में शिक्षा से वंचित रहती है.

अमूमन पहाड़ में पढ़ाई लिखाई पूरी हो जाने पर घर परिवार का एक ही लक्ष्य होता है शादी और शादी के बाद भी साधना जी ने अपनी पढ़ाई लिखाई जारी रखी व प्राइवेट स्कूल में पढ़ाना शुरू किया.

लेखन कार्य में साधना जोशी 11वीं कक्षा से प्रयासरत रही उनकी पहली कविता कॉलेज की वार्षिक पत्रिका में प्रकाशित हुईं जिससे लेखन के प्रति उनका रुझान बना,लेखन की यात्रा तब से अब तक निरंतर जारी है.

आप एक कुशल ग्रहणी के साथ साथ एक शानदार लेखिका और नृत्यांगना भी है. बेरोजगारी के लंबे दौर में भी आपने अपनी पारिवारिक जिम्मेदारियों के साथ पठन पाठन के क्रम में तो रखा ही साथ ही लेखन भी करती रही.जब आप कुछ भी कार्य  कर रहे होते हो तो ऊपर वाला भी आपका साथ देता है आपके परिवार में सास ससुर पढ़े लिखे होने से उन्होंने हमेशा आपके हौसलों की उड़ान को पंख देने का काम किया.

चिन्यालीसौड़ विकासखंड के सुदूरवर्ती गांव उलण(15 किमी पैदल) में शिक्षा विभाग में अध्यापिका के रूप में आपकी पहली बार नियुक्ति हुई और आपने उस दुर्गम स्थान पर बड़ी शालीनता और सजगता के साथ पठन और पाठन कार्य किया जिसका परिणाम आपको सर्वश्रेष्ठ अध्यापक के अवार्ड से नवाजा गया और इतना ही नहीं प्रकृति के बीच आपने एक सुखद और आत्मिक जीवन के क्षणों को कलम से उकेरने का काम किया आपका समय प्रबंधन की तकनीक ने आपको एक श्रेष्ठ शिक्षक ही नहीं एक कुशल मंच संचालिका भी बनाया,जिसका परिणाम आज आप बड़े बड़े मंचो पर एक सफल संचालिका के रूप में देखने को मिलता है.राजकीय इंटर कॉलेज श्रीकोट में आपने अध्यापन का एक नया अध्याय शुरू किया और वहां पर आज भी एक अच्छे शिक्षक के रूप में आपको याद किया जाता है.

राजकीय श्रीकोट के प्रांगण ने साधना जोशी की झोली में साहित्य संगीत के वो अनमोल बीज बोए है जिसने उनके जीवन की दशा और दिशा ही बदल दी क्योंकि वहां के छात्र छात्राओं को सांस्कृतिक गतिविधियों से जोड़कर उनमें ऐसा उत्साह उमंग भर दिया कि वे जिले से लेकर राज्य के मंच तक अपनी प्रतिभाओं का प्रदर्शन करने लगे और बच्चों को सिखाते सिखाते उनकी अपनी प्रतिभाएं इतनी निखर गई कि वर्ष 2017 में उन्होंने अपना प्रथम कविता संग्रह दोहरी भूमिका लिख डाली व सांस्कृतिक प्रेम ने उनको वर्ष 2020में प्रदेश स्तर पर संगीत शिक्षक प्रतिभा सम्मान से नवाजा गया.लोक नृत्य के प्रति उनका गहरा लगाव है अपनी दुधबोली के प्रति उनके मन में गहरा लगाव होने से आज भी लुप्त होती परंपराओं,गीतों,बाजूबंद, खुदेड़ गीत, गांव घरों के बर्तनों के संरक्षण और संवर्धन के लिए अपने छात्र छात्राओं को समय समय पर जागरूक करती है. पठाली की कुड़ी द्वारी बचाने के लिए प्रेरित करती है.जहां आज लोग बड़े शहरों की दौड़ के लिए लालायित है वहीं पर साधना जोशी दुर्गम विद्यालयों में ही रहकर प्रकृति के वातावरण में ही झरने,नदियों,पहाड़ बांज बुरांश के बीच अपनी कलम चलाना चाहती है इसीलिए वो बहुत खुश होकर आज भटवाड़ी ब्लॉक के राजकीय इंटर कॉलेज सौरा में स्थानान्तरण से अत्यंत खुश है इसी प्रवृति ने उनको एक अच्छा शिक्षक,लेखक और बेहतरीन कवियत्री बनाया है. इनके कार्यों को मिठास हर गदेरे से बहकर गंगा की धाराओं में बह रही है यह शिक्षण कार्यों के साथ अनेकों सांस्कृतिक सामाजिक संस्थाओं में समय समय पर अपनी सेवा देती है चाहे प्रभव साहित्य मंच में बतौर सचिव के पद पर या समता ज्ञान विज्ञान समिति की जिलाध्यक्ष,हिंदी साहित्य भारती की जिला सचिव,केंद्रीय विद्यालय की प्रबंधन समिति की मनोनित सदस्य के रूप या वीरांगना समूह की सदस्य के रूप में हर पल अपनी सेवाएं दे रही है यही नहीं छोटे छोटे साहित्य संगीत के समूहों में बच्चो को जोड़कर उनकी व्यक्तिगत रूप से मदद भी करती है.विद्यालय की कक्षाओं में डायरी लेखन भी करवाती है क्योंकि वो मानती है कि इससे बच्चो को कुंठायें,मानसिक परेशानियां और अपने चारो और के वातावरण के प्रति समझ विकसित होती है और वो छल छलाकर डायरी के पन्नो पर बिखर जाता है इससे बच्चा तन मन से हल्का रहता है उसके जीवन में गांठे नही पड़ती है और यही बात उन्होंने प्रसार भारती के साक्षात्कार में व्यक्त की है  साधना जोशी अपनी कलम हर पल चलाती है वे लिखती है बेटी की अभिलाषा, सड़क है जिंदगी, गुदड़ी के लाल, छोटे शहर,गांव का अपनापन, फूलों का शहर, मुखरित पर्यावरण ऐसी अनेकों कविताएं अपने दूसरे काव्य संग्रह सड़क है जिंदगी में. इन्ही कार्यों को समाज सराहता है और उन्हें समय समय पर सम्मानित भी करता है.

लोक कला, साहित्य समाज के उन्नयन के लिए कार्य करने वाली कार्यकत्री के रूप में वेद व्यास सम्मान 2023,सुषमा स्वराज सम्मान 2023,गंगा श्री सम्मान जैसे अनेकों क्षेत्रीय सम्मानों से  नवाजा जाता रहा है.

पहाड़ में प्रतिभाओं की कमी न पहले थी न आज है बल्कि आज पहाड़ के गांव घर सुने और सुनसान पड़े है आज भी कई गांव बालिका शिक्षा पर ध्यान नहीं देते है वहां पर साधना जोशी जी जैसे महिलाएं आज लोगो के लिए उदाहरण बन जाती है उनके “करछी से लेकर कलम” तक के सफर की सफल कहानी आज कई बालिकाओं के लिए प्रेरणा श्रोत का काम करती है.

(लेखिका हंस फाउंडेशन के साथ कार्यरत एवं सामाजिक कार्यकर्ता हैं.)

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