अनेक रोगों की रामबाण औषधि है लोध

Lodh Lodhiya

उत्तराखंड में स्वरोजगार का हो सकता है बेहतर संसाधन

  • जे. पी. मैठाणी, देहरादून

लोध – लोध्र – लोधरा हिमालय के पर्वतीय क्षेत्रों में उगने वाली बहुवर्षीय, बहुउपयोगी और बहुमूल्य आयुर्वेदिक जड़ी बूटी के महत्व की वृक्ष प्रजाति है. लोध की छाल से 50 से अधिक प्रकार के आसव  अर्क, चूरन, क्रीम आदि बनाई जाती हैं. मनुष्य के अलावा पशुओं के कई रोगों को ठीक करने के लिए लोध को रामबाण औषधी के रूप में जाना जाता है. लोध की खेती और संरक्षण न होने और अधिक मांग की वजह से इस प्रजाति पर संकट भी है. 

लोध का आयुर्वेदिक महत्व-

लोध की छाल से बहुत प्रकार के रोगों – जैसे स्त्री रोग, उदर और आँतों के रोग, शुगर, अपच आदि की दवा – डाबर और अन्य आयुर्वेदिक फ़ार्मेसी कई वर्षों से बनाती आ रही है. लोधरासव, लोधुगा पाउडर, लोध सीरप – आदि दवा लोध से ही बनती है, देश में कई स्थानों पर इसको – पठानी लोध के रूप में भी जाना जाता है. महिलाओं में मासिक धर्म की अनियमितता के कारण उत्पन्न कई रोगों, खून की कमी को रोकने में लोध सहायक होता है.

लोध का पेड़
लोध का पेड़. सभी फोटो: जे.पी. मैठाणी

पेट में जलन, शुगर की वजह से गड़बड़, खून की कमी, अल्सर के फैलाव को रोकने, कैंसर के प्रभाव को कम करने, गर्भाशय के केंसर को ठीक करने, पाचन को ठीक करने, कफ और पुरानी खांसी को कम करने भी लोध की छाल के पाउडर और  से बने आसव और सीरप का उपयोग किया जाता है. उदर के रोगों और अल्सर की वजह से अन्दर हो गए घावों को ठीक करने में – लोध के बीज और छाल से बने पाउडर – अर्क और चूर्ण का प्रयोग किया जाता है. लोध का प्रयोग करने से दांतों के रोग, फोड़ा फुंसी को जल्दी सुखाने में भी मदद मिलती है. साथ ही लोध की छाल से बनी क्रीम का प्रयोग एंटी एजिंग क्रीम, ब्रैस्ट एन्हांसर जैसी सौन्दर्य वर्धक क्रीम के रूप में किया जाता है, कील मुंहासे का इलाज करने में लोध की क्रीम काफी सहायक है. आयुर्वेदिक दन्त मंजन और च्यवनप्राश के मिश्रण के साथ कोस्मेटिक उत्पादों में लोध की छाल का प्रयोग किया जाता है.

लोध्रा – लोध या लोधरा के पेड़ से सामान्यतः 5 साल के बाद ही उसके मोटे तनों और शाखाओं से छाल उतारी जा सकती है, तब छाल को उबालकर, पावडर बना कर अनेक प्रकार के आसव, अर्क, जूस, पाउडर और गोलियां बनाई जाती है.

डाबर के बायो रिसोर्स डिविजन के निदेशक एवं हेड डॉ. पी. पी. रतूड़ी बताते हैं कि, अकेले भारत की आयुर्वेदिक फार्मेसियों में लोध के छाल की बेहद मांग है ,एक अनुमान के अनुसार प्रतिवर्ष इस इंडस्ट्री को लगभग 200 मीट्रिक टन लोध की छाल की आवश्यकता है- जबकि लोध की खेती ना के बराबर की जाती है.इसलिए हम लोध की नर्सरी, पौध वितरण और  खेती को प्रोत्साहित  करने का प्रयास कर रहे हैं .

देश में इसकी पूर्ती वैध और अवैध तरीके से हमारे जंगलों से ही की जा रही है, जिससे इस प्रजाति के अस्तित्व पर भी संकट है.  भविष्य में कच्चे माल की कमी न हो, इसीलिए- डाबर का जीवन्ति वेलफेयर एंड चैरिटेबल ट्रस्ट- लोध की खेती को प्रोत्साहित कर रहा है. जनपद चमोली में- आगाज फैडरेशन, पीपलकोटी, रुद्रप्रयाग में ह्यूमन इंडिया और अल्मोड़ा और बागेश्वर में खुद जीवन्ति वेलफेयर ट्रस्ट और डाबर इंडिया- लोध के पौधों की नर्सरी बनाकर- किसानों को निशुल्क बाँट रही है और लोध के संरक्षण के साथ साथ लोध खेती को प्रोत्साहित कर रही है.

लोध की खेती

लोध के बीज आसानी से नहीं जमते हैं, पेड़ पर ही पके हुए काले  बीजों को तुरंत – गुण गुने पानी में भिगोकर रेतीली और भुर भुर्री मिटटी में बोना चाहिए. ये बीज एक माह के भीतर ज़मने शुरू हो जाते हैं.  बाद में जब पौध तीन – या चार इंच की हो जाए तो – उसको नर्सरी की थैलियों में एक साल रखकर- अगले साल वृक्षारोपण के लिए भेज देना चाहिए. लोध का पेड़ पहले तीन साल तक बहुत धीरे धीरे बढ़ता है फिर अगले 5-7 साल तेजी से बढ़ता है, वैसे लोध की कटिंग जाड़ों में लगाई जा सकती है. लेकिन सबसे अच्छा बीजों का जमाव तब होता है जब – जब चिड़िया, बन्दर और लंगूर इसके बीज खाकर बीट करते हैं तो उन स्थानों पर लोध के बीज अपने आप ही खूब जम जाते हैं.

लोध प्राप्ति स्थान –  लोध ठंडी जलवायु का पौधा है. लोधरा या लोध उत्तराखंड के पहाडी क्षेत्रों में – 1400 मीटर से ऊपर- उत्तर पूर्वी ढालों पर पाया जाने वाला चौड़ी- चौड़ी मांसल पत्तियों, खुरदरे तनों और लिस लिसी छाल वाला पर्णपाती पौधा है- जिसकी सामान्य उंचाई – 8 से 12 मीटर तक हो सकती है. पेड़ खूब गुच्छेदार टहनियों वाला होता है. इस पर बसंत ऋतू के समय गुच्छों में बहुत सुन्दर सफ़ेद रंग के   फूल खिलते हैं. लोध की नर्सरी भले ही निचले इलाकों में बनाई जा सकती है लेकिन रोपण ऊँचे इलाकों जो 1300 मीटर से ऊपर स्थित हों उन स्थानों पर ही, खेतों के किनारे हर दस फीट की दूरी पर किया जाना चाहिए. लोध को विशेष देखभाल की ज्यादा जरूरत नहीं है. पेड़ एक बार जड़ पकड़ ले तो  फिर आसानी  से  उग जाता है. यही वजह है लोध को थोड़ी छायादार- शीतोष्ण बेकार- बंजर जमीन पर भी आसानी से उगा कर स्वरोजगार शुरू किया जा सकता है. लोध की खेती के लिए- जड़ी बूटी शोध संस्थान में भी पंजीकरण जरूरी है, ताकि भविष्य में किसान  अपने आप ही अपने पेड़ों की छाल बेच सके . 

लोध और लोक ज्ञान – उत्तराखंड के पर्वतीय जिलों और गांवों में पूर्व में – हर घर में जहां लोग – मट्ठा- छांछ- आदि से मक्खन और घी बनाते थे वहीं घरों में  दही को मथने के लिए- लोध की लकडियों से बनी – मथनी- यानी – रोडू – लोध की लकड़ी से ही बने होते थे. इस प्रकार मथनी- के संपर्क में दही को लकड़ी के बने – पर्या (लकड़ी का बर्तन)  – में दही मथने से लोध के अंश – दवा के रूप में छांछ और मक्खन में घुल जाते थे, इस प्रकार फिर हम लोध के अंशों का अप्रत्यक्ष रूप से – सेवन कर लेते यह था हमारा – आयुर्वेद का शानदार लोक ज्ञान . अब के समय में यह सब लुप्त हो रहा है.

पशुपालन  और लोध –  पशुओं के कई प्रकार के रोग – लोध की पत्तियों के हरे  चारे से ही ठीक हो जाते हैं , पशुओं के ऋतू क्रम का गडबडाना, गर्भाशय  और मूत्र  रोग, अपच  और दृष्टि दोष को दूर करने में – लोधा के हरे पत्तों का चारा ही रामबाण दवा के रूप में काम करता है.  

लोध के संरक्षण के प्रयास

पीपलकोटी में – आगाज संस्था और उनके साथ जुड़े- किरूली, मल्ला टंगणी, सुतोल, कनोल, सुनाली, जुमला, नौरख के महिला समूहों ने साथ जुड़कर – पिछले मानसून में – 2850 लोध्र के पौधों का रोपण किया है , साथ ही  लगभग 250 पौधे बायो टूरिज्म पार्क पीपलकोटी में सुरक्षित रखे गए हैं . वर्तमान में जंगलों से लोध के बीज एकत्र किये जा रहे हैं. कालान्तर में नर्सरी स्थापित की जा रही है. इस कार्य के लिए जीवन्ति वेलफेयर एंड चैरिटेबल ट्रस्ट संस्था की इस कार्य में भी मदद कर रहा है.

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