उत्तराखंड के जनपद चमोली के सीमांत विकासखंड जोशीमठ में लगातार हो रहे भू-धसाव और भूस्खलन की प्रक्रिया से जन-जीवन अस्त-व्यस्त हो गया है. जोशीमठ नगर भारत सुदूर उत्तर में चीन से सीमा से लगा सबसे पुराना नगर है, जिसका 1500 वर्ष पुराना क्रोनोलॉजिकल इतिहास है.
यह नगर भारत की आजादी के बाद के वर्ष 1975 से क्रीपिंग मूवमेंट के साथ ऑली से लेकर अलकनंदा नदी तट के पास स्थित सेमा-कमद गांव के साथ-साथ प्रति वर्ष कुछ सेंटीमीटर अलकनदां में समा रहा है. इस क्षेत्र का 1996-97 से लेकर वर्तमान तक विभिन्न भूगर्भीय एवं पर्यावरणीय अध्ययनों पर कार्य कर रहे जे.पी. मैठाणी, हिमांतर के माध्यम से जोशीमठ भू-धसाव की कहानी बयां कर रहे हैं- प्रस्तुत है जोशीमठ भू-धसाव पहली कड़ी. फोटोग्राफ- अनुज नंबूदरी, नितिन सेमवाल और जयदीप किशोर.
देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी ने उत्तराखण्ड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी को दूरभाष पर बताया कि जोशीमठ में आम जनता को कोई भी परेशानी नहीं होनी चाहिए. साथ ही पुनर्वास एवं पुनस्थापना के लिए केन्द्र से हर संभव मदद का आश्वासन दिया.
प्रदेश के मुख्यमंत्री जहाँ एक ओर जोशीमठ भूधंसाव से प्रभावित और संकटग्रस्त परिवारों के पुनर्वास की वैकल्पिक व्यवस्था के सम्बन्ध में उच्च अधिकारियों के साथ समीक्षा बैठक कर रहे थे वहीं दूसरी ओर जोशीमठ में पांडुकेश्वर के ग्रामीण जोशीमठ के निवासियों के समर्थन में जुलूस निकाल रहे थे. मुख्यमंत्री ने उच्च अधिकारियों को निर्देश दिये हैं कि संकट की इस स्थिति में जानमाल की सुरक्षा और बचाव के साथ-साथ प्रभावित क्षेत्रों में रह रहे लोगों के पुनर्वास तथा उन्हें अन्य सुरक्षित स्थानों पर शिफ्ट करने में तेजी लाने के प्रयास तुरंत करने होंगे. जोशीमठ के लिए तात्कालिक एक्शन प्लान के साथ ही दीर्घकालीन कार्यों में भी लम्बी प्रक्रिया को समाप्त करते हुए डेंजर जोन के ट्रीटमेन्ट, सीवर तथा ड्रेनेज जैसे कार्यों को जल्द से जल्द पूरा करने की प्रतिबद्धता को दोहराया. मुख्यमंत्री ने निर्देश दिये कि तत्कालीन सुरक्षित स्थान पर अस्थायी पुनर्वास केन्द्र बनाये जाएं. जोशीमठ में सेक्टर और जोनलवार योजना बनायी जाए. पुनर्वास के लिए पीपलकोटी, गौचर सहित अन्य स्थानों पर जमीन तलाशी जाए.
मुख्यमंत्री ने कहा कि जोशीमठ का धार्मिक एवं सांस्कृतिक महत्व है. यहाँ पर किये जाने वाले तात्कालिक महत्व के कार्यों को आपदा प्रबंधन नियमों के तहत पूरा कर सही व्यवस्था बनाई जाए.
वास्तव में जोशीमठ जनपद चमोली का एक महत्वपूर्ण नगरपालिका क्षेत्र है. चीन बॉर्डर होने के कारण अगर देखा जाए तो उत्तराखण्ड के जनपद चमोली की उत्तर-पूर्व दिशा में स्थित लगभग 3000 वर्ष पुराना यह नगर पहला नगर है. आई0टी0बी0पी0, गढ़वाल स्काउट, सीमा सड़क संगठन का यह बेस स्थल है. लेकिन वर्ष 1970 के दशक में जोशीमठ के निचले हिस्से मारवाड़ी और सेमा में भूधंसाव शुरू हुआ. तब 1976 में गढ़वाल कमिश्नर एम0सी0 मिश्रा की अध्यक्षता में गठित मिश्रा समिति ने अपने रिपोर्ट में जो महत्वपूर्ण संस्तुतियां दी थीं उसमें कहा था कि- जोशीमठ में बहुमंजिला भवनों के निर्माण ना किये जाएं किसी भी तरह के निर्माण कार्य के लिए विस्फोटकों का प्रयोग ना किया जाए. गाड़ गधेरे और जलागम क्षेत्रों में पत्थर-रेत-बजरी ना निकाली जाए. लेकिन इन संस्तुतियों का पालन नहीं किया गया. भूगर्भीय दृष्टि से संवेदनशील यह क्षेत्र पीपलकोटी, हेलंग, जोशीमठ से नंदा देवी के पार होते हुए तिब्बत तक मेन सेन्ट्रल थ्रस्ट के नजदीक है यानि भूकम्प की दृष्टि से संवेदनशील है. इसके बावजूद पृथक राज्य उत्तराखण्ड बनने से पहले 1985 में जोशीमठ नगरपालिका बनी. लेकिन उसके बावजूद इस नगर पर बहुमंजिला इमारतों का बोझ पर्यटन और तीर्थाटन की व्यावसायिक मानसिकता की वजह से बढ़ता चला गया. ऐसे में प्रश्न यह उठता है कि जब जोशीमठ में उप जिलाधिकारी बैठते हैं और नगरपालिका के अधिशासी अधिकारी भी रहे तो जोशीमठ नगर में मानकों के विपरीत सैकड़ों भवन, होटल, दुकानें कैसे बनते चले गये.
आज जोशीमठ के 23 से अधिक और ज्यादातर तीन मंजिल से ऊपर के बड़े होटल जो ख़तरे की जद में आ गये हैं और इन होटलों के मालिक ज्यादातर वो लोग हैं जो जोशीमठ के स्थानीय निवासी नहीं है. इन्होंने अधिक कमाई के लालच में इस नगर पर सैकड़ों टन- रेत, सीमेंट, बजरी, पत्थर, रोड़ी, सरिया और स्टील का भार डाल दिया है. और अब ये होटल स्थानीय गरीब परिवारों के लिए एटम बम बन गये हैं. ये कभी भी गिरकर जानमाल को नुकसान पहुँचा सकते हैं.
एक ऐसा नगर जहाँ हल्के, टिन की छत वाले दुमंजिले घर ही बनाये जा सकते थे वहाँ 37 वर्षों में 50 से अधिक बहुमंजिला होटल, भवन, कार्यालय, स्कूल बना दिये गये. नगर के बीच और अगल-बगल से बहने वाले 9 से अधिक नालों को ढक कर कब्जा कर नगर के ड्रेनेज सिस्टम को ध्वस्त कर दिया गया. औली के ढाल पर रिसाॅर्ट और कृत्रिम बर्फ बनाने के लिए विशाल झील का निर्माण कर दिया गया. पहले की बसाकत के आसपास फैले पुराने सॉलिफिक्शन जोन- जो क्लिफ टॉप रिसॉर्ट से मारवाड़ी तक फैला है उसके बड़े-बड़े बोल्डर और चट्टानों को फोड़कर जेसीबी से उखाड़कर पुश्ते, सड़क, मकान, दुकान, खेत बना दिये गये पूरी धौलीगंगा और अलकनन्दा घाटी के साथ-साथ उर्गम, सलूड़ डुंग्रा, हेलंग, सेलंग के हजारों परिवार भी जोशीमठ में आकर बस गये. इस हिसाब से अगर एक परिवार ने 3 कमरों का ही मकान बनाया हो तो जोशीमठ में पिछले 20 वर्षों में बसे नये 500 परिवारों ने लगभग 1500 कमरों का निर्माण किया. 10ग12 फीट के एक कमरे को बनाने में लगभग 292 कुन्तल निर्माण सामग्री लगती है जिसमें पानी का भार शामिल नहीं है. इस हिसाब से अगर जोशीमठ के सिर्फ दो वार्डों में पिछले 10 वर्ष में बने 500 मकानों के औसतन तीन कमरे प्रति मकान के हिसाब से कुल बने 1500 कमरों का भार आंकलित किया जाए तो ये लगभग 4,38,750 कुन्तल होता है. यही वजह है कि जोशीमठ में अत्यधिक बसावट या निर्माण कार्य के साथ-साथ भूगर्भीय हलचलें, जल विद्युत परियोजना में होने वाले विस्फोटकों के प्रयोग से कंपन, बाइपास निर्माण से भूकटाव, विष्णुप्रयाग के ठीक बगल से अणमठ के नीचे तक बन रहा मारवाड़ी-हेलंग बाइपास जोशीमठ के विनाश या भूधंसाव के लिए जिम्मेदार है. एशिया का सबसे लम्बा रोप वे और उसकी लगभग 1 हजार टन की निर्माण सामग्री भी इसी नगर पर टिकी हुई है.
प्रसिद्ध भूवैज्ञानिक डॉ. दिनेश सती ने बताया कि जोशीमठ नगर कई हजार वर्ष पुराने भूस्खलन पर बसा हुआ है. जोशीमठ की त्रासदी के लिए वो तीन प्रमुख कारकों का जिम्मेदार बताते हैं. वो पैनी गाँव का उदाहरण देते हुए बताते हैं कि पैनी के ऊपर से अणमठ तक का ढाल भी वैसा ही है जैसे औली से सेमा गाँव तक का ढाल. वो बताते हैं कि कई हजार वर्ष पूर्व अलकनन्दा या धौली गंगा हो सकता है ढाक बैंड से ऊपर सुनील या औली की ऊँचाई पर बहती थी होगी. लेकिन नदी के लगातार कटान से अब अलकनन्दा वर्तमान स्थान पर है. जोशीमठ नगर वर्तमान में भी क्रीपिंग मूवमेंट के साथ अलकनन्दा में समा रहा है. यह हमें इसलिए दिखाई नहीं पड़ रहा है क्योंकि नदी के बहाव के साथ ऊपर से आता हुआ मलबा तुरंत ही पानी के साथ बह जाता है वह नदी के तेज बहाव को रोक नहीं पाता और इस भूगर्भीय हलचल की घटना को हम देख नहीं पा रहे हैं जबकि यह शहर धीरे-धीरे सैकड़ों वर्षों से धंस रहा है.
डॉ. सती बताते हैं कि पहले जनसंख्या कम थी तो लोग कम पानी का प्रयोग करते थे और वह नालियों, सीवेज, सोकपिट आदि का पानी कम मात्रा में भूधंसाव करता था. लेकिन वर्तमान में भी जोशीमठ में कोई भी सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट नहीं है. गाड़-गधेरों के पानी के निकास के लिए कोई समुचित व्यवस्था नहीं की गयी है. गोरसों, औली, सुनील आदि से बह के आने वाला पानी जोशीमठ नगर के आधार पर टिकी मिट्टी को बहाकर अलकनन्दा में डाल दे रहा है. नगर के आधार की मिट्टी अगर इसी प्रकार बिना ड्रेनेज सिस्टम के लगातार बहते पानी के साथ नदी में जाती रही तो जोशीमठ नगर की नींव खोखली हो जाएगी परिणामतः उसके ऊपर स्थित बड़े भारी निर्माण कार्य पूरे ढाल पर फैले- डांग, चट्टानें, रॉक मास अंदर धंस जाएगा और यही आजकल देखने में आ रहा है. जिसकी वजह से मकानों में दरारें दिखाई देने लगी हैं.
वर्ष 2007 में पद्मभूषण पर्यावरणविद् चण्डी प्रसाद भट्ट जी ने मारवाड़ी क्षेत्र का भ्रमण किया था. इस दौरान उन्होंने यह सुझाव दिया था कि विष्णुप्रयाग के संगम से चांइ थांइ के विपरीत दिशा में अलकनन्दा नदी के बांये तट पर चैड़ी पत्ती वाले वृक्षों का सघन रोपण किया जाए और सारे ढाल पर उस जलवायु के अनुरूप उगने वाली घास प्रजातियां उगाई जाएं लेकिन उनके सुझाव पर अमल करने के बजाय पिछले वर्ष से हेलंग से मारवाड़ी बाइपास का निर्माण बी0आर0ओ0 द्वारा किया जाने लगा. यही नहीं वर्ष 1975 में पर्यावरणविद् चण्डी प्रसाद भट्ट जी ने इस सम्बन्ध में तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गाँधी को मांगपत्र लिखा था उसके बाद ही 1976 में मिश्रा कमेटी का गठन हुआ.
1985 में जोशीमठ में बनी प्रथम नगरपालिका के अध्यक्ष लक्ष्मी लाल शाह बताते हैं कि उनके कार्यकाल के दौरान उत्तर प्रदेश सरकार के मुख्य सचिव श्री राम कुमार भार्गव से उन्होंने 17 अगस्त 1992 को विस्तृत वार्ता कर पर्वतीय विकास विभाग के प्रमुख सचिव आर0 के0 दर के सम्मुख एक अति महत्वपूर्ण बैठक करवाई. तब सिंचाई विभाग के प्रमुख सचिव द्वारा इस कार्य के लिए लैंसडाॅन के सिंचाई डिवीजन को जोशीमठ भू-धसावआंकलन एवं सुरक्षा हेतु कार्य प्रारम्भ करने का आदेश दिया गया. वो बताते हैं कि सबसे पहले कमद और सेमा गाँव को विस्थापित करने की प्रक्रिया इसी समय प्रारम्भ हुई.
वास्तव में वर्तमान में जोशीमठ में हुई भूगर्भीय घटना के बारे में क्षेत्र के आंदोलनकारी और जोशीमठ संघर्ष समिति के संयोजक अतुल सती बताते हैं कि 24 दिसम्बर 2009 को एन0टी0पी0सी0 की प्रस्तावित 500 मेगावाट की जल विद्युत परियोजना के भीतर टनल बोरिंग मशीन (टी0बी0एम0) फंस गयी थी और वहाँ से 600 लीटर पानी प्रति सेकंड की दर से रिसाव होने लगा था. इससे जल विद्युत परियोजना के लिए निर्मित की जा रही सुरंग का कार्य रूक गया. यह सुरंग जो पहले सिर्फ विस्फोटकों से बनाई जा रही थी बाद में आंदोलन की मांग के अनुरूप एन0टी0पी0सी0 ने टनल बोरिंग मशीन (टी0बी0एम0) से सुरंग बनाना शुरू किया था. टी0बी0एम0 के फंस जाने से अब पुनः विस्फोटकों के प्रयोग से बाइपास टनल बनाई जा रही है उसी की वजह से जोशीमठ में भूधंसाव हो रहा हैं. वे यह भी मानते हैं कि अणमठ/ हेलंग से मारवाड़ी तक बनाये जाने वाले बाइपास के निर्माण में भी सीमा सड़क संगठन द्वारा विस्फोटकों का प्रयोग किया जा रहा है. जोशीमठ नगर के विभिन्न वार्डों उर्गम काॅलोनी, सती मौहल्ला, मनोहर बाग, सिंह धार, सुनील और उससे ऊपर औली तक बन रहे बहुमंजिला भवन जोशीमठ की त्रासदी के लिए जिम्मेदार हैं.
यहाँ यह तथ्य गौरतलब है कि एन0टी0पी0सी0 द्वारा बनायी जा रही मुख्य टनल के लिए एन0टी0पी0सी0 द्वारा कम से कम 5 एडिट टनल बनानी थी. ताकि औली, सुनील, जोशीमठ के नीचे से मेरग परसारी तक की भूगर्भीय संरचना को समझा जाता. इस बारे में जियोलाॅजिकल सर्वे आॅफ इंडिया (जी0एस0आई0) ने भी सुझाव दिया था. उसको भी एन0टी0पी0सी0 ने अनदेखा किया जो कि बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है.
दूसरी ओर एन0टी0पी0सी0 के अधिकारियों द्वारा जारी किये गये पावर प्वॉइंट प्रेज़ेन्टेशन में वो कहते हैं कि भूवैज्ञानिक एवं अन्य वैज्ञानिक अध्ययनों ने यह स्थापित किया है किजोशीमठ शहर एक पुराने भूस्खलन पर स्थित है. जियोलॉजी एंड माइनिंग, लोक निर्माण विभाग, वन विभाग, सिंचाई विभाग, गढ़वाल जल संस्थान, डी0जी0बी0आर0 और आई0टी0बी0पी0 के संयुक्त तत्वाधान में तत्कालीन सरकार द्वारा गठित उप समिति की 1976 की रिपोर्ट में बताया गया है कि-
- जोशीमठ इन-सीटू चट्टान पर स्थित नहीं है. यह ढीले मैट्रिक्स में बड़े असंतुलित बोल्डर के अपक्षय वाले भूस्खलन पर स्थित है.
- जोशीमठ प्राचीन भूस्खलन पर पूर्व में परसारी के निकट बड़े नाले से पश्चिम में गौंख तक फैला हुआ है. मिट्टी के कटाव के संभावित कारण हिलवॉश, रिपोज का नैचुरल एंगल और खेती वाली जमीन का मिला-जुला क्षेत्र है.
- जोशीमठ नगर के निचले हिस्सों में पानी का रिसाव बारिश और बर्फ के पिघलने के कारण होता है. रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि जोशीमठ रेत और पत्थरों का भंडार है. यह किसी मुख्य चट्टान पर बसा हुआ नहीं है. इसलिए यह मानवीय बस्ती के लिए उपयुक्त स्थान नहीं था. एन0टी0पी0सी0 की रिपोर्ट कहती है कि सितम्बर 2022 में उत्तराखण्ड राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (यू0एस0डी0एम0ए0) ने सी0एस0आर0आई0- सी0बी0आर0आई, आई0आई0टी0 रूड़की, जी0एस0आई0, वाडिया इंस्टीट्यूट फाॅर हिमालयन जियोलाॅजी के साथ जोशीमठ नगर और आसपास के क्षेत्रों के भूगर्भीय और भू-तकनीकी सर्वेक्षण पर एक अध्ययन रिपोर्ट प्रस्तुत की. जो बताती है कि जोशीमठ में भूधंसाव के निम्नलिखित कारण है-
1) भूगर्भीय मूल्यांकन से पता चलता है कि घाटी की तरफ झुकाव वाले ढलानों पर स्थित ओवर बर्डन का भूमिगत सैचुरेशन क्रीप मूवमेंट को बढ़ाता है. क्रीप मूवमेंट बढ़ने का प्रमुख कारण जोशीमठ नगर के सतह पर खराब सीवेज का होना है.
2) वर्षा जल और घरेलु अपशिष्ट जल के साथ-साथ अन्य स्रोतों से भी जो पानी निकलता है वो जोशीमठ नगर की जमीन के नीचे बोर दबाव की स्थिति पैदा करता है. जिससे ओवर बर्डन मिट्टी की अपरूपण शक्ति को कम कर देता है. यह जोशीमठ के आसपास के क्षेत्र में ढलान की अस्थिरता का प्रमुख कारण है.
3) इसके अलावा जोशीमठ नगर के ढालों पर जब पानी प्रवेश करता है तो मिट्टी की एक महीन सामग्री बह जाती है और भूमि के भीतर हाथ की अंगुलियों के आकार में अनेकों खाली स्थान और गुहायें बन जाती हैं. इन खाली स्थानों में ऊपर की मिट्टी धंस कर भूमि अवतलन होने लगता है. और इससे जोशीमठ जैसे पहाड़ी ढलान पर जमीन अस्थिर हो जाती है.
4) पिछली बाढ़ की घटना के दौरान धौली गंगा द्वारा लाये गये भारी मात्रा में मलबे से लदे पानी ने अलकनन्दा के बांये किनारे पर, विष्णुप्रयाग में धौली गंगा नदी के साथ इसके संगम के नीचे की ओर भूमि के कटाव को बढ़ा दिया है. इस कटान से जोशीमठ शहर जिस ढलान पर स्थित है उसकी स्थिरता पर इसका प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है.
5) नदी के तल के ऊपर, जोशीमठ नगर के ढलान पर, उपसतह रिसाव, प्राकृतिक जल निकासी द्वारा कटाव, कभी-कभी भारी वर्षा, भूकम्पीय गतिविधियां और बढ़ी हुई निर्माण गतिविधियां भू-धंसाव के मुख्य कारण प्रतीत होती हैं. वर्षों से इस नाजुक पहाड़ी ढलान का बोझ उस मिट्टी क्षमता से अधिक बढ़ गया है जिस पर यह टिकी हुई है.
6) कई घरों के निर्माण की गुणवत्ता बेहद खराब है. इसके अलावा बीम काॅलम जोड़ों के बीच अपर्याप्त ओवर लैपिंग सुदृढ़ीकरण देखा गया है. यहाँ तक कि जमीन के मामूली धंसने के कारण भी अप्रतिबंधित पृथक्करण होता है, जो पहाड़ी क्षेत्रों में एक सामान्य घटना है जहाँ मिट्टी अपेक्षाकृत कमजोर है. यह, विशेष रूप से, गाँधीनगर क्षेत्र में देखा गया है.