हास्य, व्यंग्य नहीं, हमारे दर्द के कवि हैं शेरदा अनपढ़

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  • ललित फुलारा

‘कुमाउनी शब्द संपदा’ पेज पर प्रसिद्ध कवि-गीतकार शेरदा “अनपढ़” की कविताओं के विभिन्न आयाम पर केंद्रित चर्चा ‘हमार पुरुख’ में वरिष्ठ पत्रकार चारु तिवारी, साहित्यकार because देवेन मेवाड़ी और डॉ दिवा भट्ट ने अपने विचार रखे. चारु तिवारी ने शेरदा अनपढ़ की कविता और जीवन यात्रा पर प्रकाश डालते हुए कहा कि शेरदा अनपढ़ हास्य, व्यंग्य नहीं, हमारे दर्द के कवि हैं.

मूलांक

उनका कविता संसार मानवीय संवेदनाओं का संसार है. हर गीत और कविता में जीवन का भोगा हुआ यथार्थ है. जो बोल नहीं सकते, शेरदा की कविताएं उनकी आवाज हैं. जनसंघर्ष, because आध्यात्म, प्रकृति और प्रेम के साथ ही समसामयिक विषयों को संबोधित करने वाले कवि हैं, शेरदा . उनके साहित्यिक अवदान को जितना समेटा जाए, उतना फैलता जाता है. अपनी कविता के बारे में वह कहते थे … मैं कविता हंसकर भी लिखता हूं, रोकर भी, बीच बाजार में भी लिखता हूं और सपने में भी . उनके हास्य में दर्द और संवेदना छिपी हुई है.

मूलांक

डॉक्टर दिवा भट्ट ने कहा कि शेरदा अनपढ़ की कविताओं में लोकस्वर प्राण तत्व है. हर रचना में लोकस्वर, लोक संस्कृति और रीति-रिवाज का अद्भुत मिश्रण है. जब मैंने because शेरदा की कविताएं पढ़ी और शब्दों पर गौर किया तो पता चला कितने गंभीर कवि हैं. उनकी कविता सुनाने की शैली भी मजेदार थी. मंचों पर खूब रौनक हो जाती थी. शब्दों की अभिव्यक्ति पर गौर करने पर उनकी गंभीरता पता चलती है. वह गंभीर जीवन चिंतन करने वाले कवि हैं. उनकी कविताओं में बढ़िया विंब, प्रतीक और उपमान है.

मूलांक

शेरदा अनपढ़ की कविताएं मुख्यधारा की हिंदी और अंग्रेजी की कविताओं से बिल्कुल कम नहीं हैं. उनकी कविताओं में  वर्णात्मकता और सरलता है.  चारु तिवारी ने कहा, because मैं बचपन में गगास से चखौटिया शेरदा अनपढ़ की कविताएं सुनने गया. पहली बार वहीं उनको मंच पर देखा था. उस कार्यक्रम के मुख्य अतिथि नारायण दत्त पालीवाल थे.

मूलांक

शेरदा का गीत ‘वो परूआ बौज्यू चप्पल कै ल्याछा ऐस’ बचपन में सुनते थे.हमारी स्मृति में यह गीत आज भी छाया हुआ है. कुमाउनी के दो कवि शेरदा अनपढ़ और हीरा सिंह राणा because की कविताओं पर बहुत कम बात हुई है. देवेन मेवाड़ी ने कहा कि शेरदा अनपढ़ की कविताओं का रूप विराठ है. इस पर शोध की जरूरत है. जीवित रहते हुए उनको जितना मान सम्मान मिलना चाहिए था, शायद उतना नहीं मिला.

मूलांक

शेरदा की कविता because और शब्द सदेव जीवित रहेंगे. डॉ दिवा भट्ट ने कहा कि शेरदा की कविताओं में कुमाउनी लोकगीतों के छंदों का शानदार प्रयोग है. उनकी कविताएं लय में चलती हैं. कविताओं में लयात्मकता है. उनकी छंद वाली कविताएं श्रेष्ठ हैं. छंद मुक्त कविताओं की अभिव्यक्ति भी शानदार है. भाषा कहीं सपाट है और कहीं तिखा व्यंग्य है.

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