
भविष्य का भारत: स्वायत्त और स्वावलंबी!
स्वतंत्रता दिवस (15 अगस्त, 2025) पर विशेष
प्रो. गिरीश्वर मिश्र, शिक्षाविद् एवं पूर्व कुलपति
पराधीन सपनेहु सुख नाहीं! अपनी अमूल्य कृति “रामचरितमानस “में गोस्वामी तुलसीदास जी की यह उक्ति प्राणि मात्र के जीवन की एक प्रमुख सच्चाई को दर्शाती है कि दूसरे के अधीन रहने वाले को सपने में भी सुख नसीब नहीं होता. पराधीन रहते हुए भारत वर्ष ने लगभग हज़ार वर्ष की लंबी अवधि तक अनेकानेक कष्ट सहे और यातनाएँ झेलीं. भारत की पहचान बदलने के लिए न सिर्फ़ नाम ही बदला गया, पहले हिन्दुस्थान फिर इंडिया, बल्कि उसके मानस, संस्थाओं और संस्कार सबको नए साँचे में ढालते रहने की कोशिश जारी रही. तरह-तरह के शोषण द्वारा विदेशी आक्रांताओं ने भारत को विपन्न बनाने की लगातार कोशिश की. अंग्रेज़ों ने उपनिवेश बना कर हद ही कर दी. उन्होंने भारत का भरपूर दोहन किया और शोषण करने में कोई कसर नहीं छोड़ी. अपने ही देश में ख़ुद को अस्वीकृत ...