Tag: होलिका दहन

अस्तित्व की व्याप्ति का उत्सव है होली

अस्तित्व की व्याप्ति का उत्सव है होली

लोक पर्व-त्योहार
होली पर विशेष प्रो. गिरीश्वर मिश्र  प्रकृति के सौंदर्य और शक्ति के साथ अपने हृदय की अनुभूति को बाँटना बसंत ऋतु का तक़ाज़ा है. मनुष्य भी चूँकि उसी प्रकृति की एक विशिष्ट कृति है इस कारण वह इस उल्लास से अछूता नहीं रह पाता. माघ महीने के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को वसंत की आहट मिलती है. परम्परा में वसंत को कामदेव का पुत्र कहा गया है इसलिए उसके जन्म के साथ इच्छाओं और कामनाओं का संसार खिल उठता है. फागुन और चैत्त के महीने मिल कर वसंत ऋतु बनाते हैं. वसंत का वैभव पीली सरसों, नीले तीसी के फूल, आम में मंजरी के साथ, कोयल की कूक प्रकृति सुंदर चित्र की तरह सज उठती है. फागुन की बयार के साथ मन मचलने लगता है और उसका उत्कर्ष होली के उत्सव में प्रतिफलित होता है. होली का पर्व वस्तुतः जल, वायु, और वनस्पति से सजी संवरी नैसर्गिक प्रकृति के स्वभाव में उल्लास का आयोजन है. रंग, गुलाल और अबीर से एक दूसरे को...
कोरोना की छाया में होली की आहट

कोरोना की छाया में होली की आहट

लोक पर्व-त्योहार
प्रो. गिरीश्वर मिश्र इस बार टंड और ठिठुरन का मौसम कुछ लंबा ही खिंच गया. पहाड़ों पर होती अच्छी बर्फवारी के चलते मैदानी इलाके की हवा रह-रह कर गलाने वाली होने लगी थी. बीच में कई दिन ऐसे भी आए जब सूर्यदेव भी कम दिखे और सिहरन कुछ ज्यादा बढ़ गई. पर ठिठुरन बाहर से अधिक अन्दर की भी थी. because सौ साल में कभी ऐसी उठापटक न हुई थी  जैसी करोना महामारी के चलते हुई, सब कुछ बेतरतीब और ठप सा होने लगा. एक लंबा खिचा दु : स्वप्न जीवन की सच्चाई बन रहा था. सांस लेने पर बंदिश और स्पर्श करने से संक्रमण के महाभय के  अज्ञात प्रसार की चिंता  से सभी विचलित  और  सकते में  आ चुके  थे. सभी तरह के भेदों  से ऊपर उठ कर संसार के अधिकाँश देश एक-एक कर कोरोना की चपेट में आते गए. इस यातना की महा गाथा में स्कूल, कालेज, आफिस, फैक्ट्री हर कहीं बाधा, व्यवधान और पीड़ा का विस्तार होता गया . करोना 'होली है भाई होली है' because ...