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हिंदी पखवाड़ा 2025: उत्तराखंड की पत्रकारिता के तीन संपादक

हिंदी पखवाड़ा 2025: उत्तराखंड की पत्रकारिता के तीन संपादक

साहित्‍य-संस्कृति
 हिमांशु जोशीहिंदी पखवाड़ा केवल भाषा का उत्सव नहीं, बल्कि उन लोगों को याद करने का समय भी है जिन्होंने हिंदी को समाज की सशक्त आवाज़ बनाया. उत्तराखंड जैसे छोटे से राज्य ने भी हिंदी पत्रकारिता को ऐसे तीन संपादक दिए जिनका काम राष्ट्रीय स्तर तक सम्मानित हुआ. राजीव लोचन साह ने नैनीताल समाचार के माध्यम से हिंदी को आंदोलनों और लोकसंस्कृति से जोड़ा. बद्रीदत्त कसनियाल ने अपनी ज़मीनी रिपोर्टिंग से पहाड़ के सवालों को हिंदी पत्रकारिता की मुख्यधारा में पहुँचाया. नवीन जोशी ने भले ही कर्मभूमि बाहर बनाई हो, लेकिन उनकी रचनाएं और संपादन उत्तराखंड की संवेदनाओं से जुड़कर हिंदी को नया विस्तार देते रहे. इन तीनों ने अपने-अपने तरीके से हिंदी पत्रकारिता को समृद्ध किया और उसे व्यवसाय नहीं बल्कि सामाजिक दायित्व साबित किया.राजीव लोचन साह: आंदोलन और पत्रकारिता का कॉकटेल 'नैनीताल समाचार' के संपादक...
स्मृति-कथाओं के जीवंत शब्द-चित्र- ये चिराग जल रहे हैं

स्मृति-कथाओं के जीवंत शब्द-चित्र- ये चिराग जल रहे हैं

पुस्तक-समीक्षा
डॉ. अरुण कुकसाल‘जिस मकान पर आपके बेटे ने ही सही, बडे़ फख्र से ‘बंसीधर पाठक ‘जिज्ञासु’ की तख़्ती टांग दी थी, उसमें देवकी पर्वतीया का खून-पसीना लगा है. यह नाम कभी आपने ही because उन्हें दिया था लेकिन नेम प्लेट पर अपने नाम के साथ इसे भी शोभायमान करना आप भूले ही रहे (पृष्ठ-41).’’ ज्योतिष ‘ये चिराग जल रहे हैं’ किताब में उक्त पक्तियां नवीन जोशी जी ने बंसीधर पाठक ‘जिज्ञासु’ जी के लिए लिखी हैं. पर ये उन सब सार्वजनिक ‘चिरागों’ पर हू-ब-हू लागू होती हैं जो अब हमारे जीवन में नहीं हैं एवम् उन पर भी जो हमारे आस-पास मौजूद हैं और जिनके आभा-मंडल से हम गदगद होते रहते हैं. पर कभी ख्याल किया कि because उन चिरागों की सीधी तपिश को जीवन-भर झेलने वाले उनके परिजन हमारे चिन्तन में कितनी जगह पाते हैं? चिरागों की रोशनी कायम रहे, इसके लिए दिन-रात खपने वाले उनके परिजनों के विकट जीवन संघर्षों का वास्तविक हितेषी और ...