पर्वतीय क्षेत्रों में आजीविका का एक बड़ा स्रोत है रिंगाल!

Ringal

उर्गमघाटी : उत्तराखंड  के पर्वतीय क्षेत्रों में रिंगाल ( हिमालयी बांस- अरूंडीनेशिया फल्काटा)   आजीविका का एक बहुत बड़ा स्रोत है. रिंगाल लगभग 10वीं शताब्दी से पहाड़ के समाज को कृषि के योग्य बर्तन जैसे- सुप्पा, कंडा, चंगेरा, सोल्टा, तेथला और अनाज और बीज रखने के लिए क्वोन्ना आदि बनाने में प्रयोग किया जाता रहा है. वर्तमान में जनपद चमोली में कई स्थानों पर रिंगाल हश्तशिल्प  का निर्माण और उन पर आधारित स्वरोजगार संचालित होते हैं.

उत्तराखंड बांस एवं रेशा विकास परिषद् और आगाज संस्था द्वारा वर्ष 2005 से जनपद चमोली में रिंगाल हश्तशिल्प  के कई शिक्षण प्रशिक्षण के कार्य किये गए. कालांतर में अलकनंदा स्वायत्त सहकारिता पीपलकोटी, हिमालय स्वायत्त सहकारिता पीपलकोटी ने रिंगाल हस्तशिल्प के अतिरिक्त प्राकृतिक रेशा- भांग और कंडाली के उत्पादों, के साथ-साथ, पूजा पाठ के मुखोटों के निर्माण के कार्यों को आगे बढाया.

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वर्ष 2020 में तत्कालीन मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत द्वारा पीपलकोटी में उद्योग विभाग के सहयोग से ग्रोथ सेंटर की स्थापना की गयी. इन्ही कार्यक्रमों के दौरान उत्तराखंड बम्बू बोर्ड और आगाज फैडरेशन द्वारा क्षेत्र के 32 रिंगाल हश्तशिल्पियों को देश के कई संस्थानों, डिजाइनिंग संस्थानों और विभागों के माध्यम से प्रशिक्षित किया गया और मास्टर ट्रेनरों की एक टीम गठित की गयी जो समय समय उत्तराखंड ही नहीं देश के अन्य भागों में शिक्षण प्रशिक्षण का कार्य संयुक्त और स्वतंत्र रूप से करते हैं ! उर्गम घाटी के धर्मलाल भी इस टीम के ही सदस्य हैं.

चमोली, उर्गमघाटी में शुरू किया गया तीन दिवसीय रिंगाल हस्तशिल्प प्रशिक्षण

ज्योतिर्मठ यूनेस्को नई दिल्ली एवं जनदेश स्वैच्छिक संगठन के द्वारा संयुक्त रूप से हैंडीक्राफ्ट रिंगाल तीन दिवसीय प्रशिक्षण कार्यक्रम की शुरुआत उर्गमघाटी में शुरू किया गया.

कार्यक्रम में मास्टर ट्रेन धर्मलाल ने कहा कि सीखने की कोई उम्र नहीं होती कला व्यक्ति को ऊंचाई तक पहुंचाते हैं. उन्होंने कहा कि मैंने अपना जीवनकाल इसी को समर्पित किया है. इंग्लैंड की आर्ट गैलरी तक मुझे इस कला ने ही पहुंचाया है, मैं,  मात्र साक्षर होने के बाद भी हश्त शिल्प में निपुण हूं. डेढ़ रिंगाल से डेढ़ सौ रुपया कमाया जा सकता है और 12 फीट के रिंगाल से आप आसानी से 1000 रुपये के बायो ज्वेलरी बना सकते हैं, आवश्यकता है कि हम हस्त कौशल को बढ़ावा दें और छोटे-छोटे आइटम को बनाये जिससे कि यात्री लोग आसानी से खरीद सकते हैं. दैनिक जरूरत को भी पूरा किया जा सकता है.

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इस अवसर पर जनदेश के सचिव लक्ष्मण सिंह नेगी ने कहा कि हमारा प्रयास है कि विलुप्त हो रहे हैं कौशल को बढ़ावा देना है. यूनेस्को का भी प्रयास यही है कि लोगों को रोजगार से जोड़ा जाए और परंपरागत कौशल को बचाया जाए. तीन दिवसीय प्रशिक्षण में रिंगाल के क्राफ्ट को बढ़ावा देना लोगों को बेसिक जानकारी देना इसकी तकनीकी लोगों को बताना है. इस प्रकार के  प्रशिक्षण भविष्य में और  भी किये जाएंगे जिससे यहां की महिलाओं को इस रोजगार से जोड़ा जा सकता है. रिंगाल के प्रशिक्षण में फूलदान, पूजा टोकरी, कंडी, सोलटी, कलमदान बनाने के बारे में जानकारी दी जाएगी.

इस मौके पर पूर्व ग्राम प्रधान देवग्राम देवेंद्र सिंह रावत ने कहा कि परंपरागत ज्ञान को बढ़ावा देने की आवश्यकता है. 25 से अधिक महिलाएं प्रशिक्षण कार्यक्रम में प्रतिभाग कर रही हैं युवाओं को भी इस कार्यक्रम से जोड़ा जा रहा है. वीरेंद्र लाल ने कहा कि हमारा उद्देश्य लोगों को रोजगार से जोड़ना है. प्रशिक्षण लेने वालों में जयचंद डूंगरियाल, अनीता देवी, काली देवी, फ्यूंली देवी सहित अन्य लोगों उपस्थित थे.

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