
- हिमांतर ब्यूरो, हरिद्वार
जब अपने गांव से दूर दूसरे शहर में रहते हैं, तो हम अपने बार-त्योहार और संस्कृति से भी दूर हो जाते हैं. हालांकि, किसी ना किसी रूप में हम गांव से जुड़े तो रहते हैं. लेकिन, शहरों में नौकरी की मजबूरी और दो वक्त की रोटी के लिए अक्सर व्यस्त रहते हैं और इस व्यस्तता के बीच यह भी भूल जाते हैं कि जिस शहर में हम रह रहे हैं, वहां मेरे गांव, गांव के पास के दूसरे गांव के लोग भी रहते हैं.
इनमें कुछ नौकरी में साथ हैं. कुछ दूसरे विभागों में तैनात हैं. कुछ का रोज मिलना हो जाता है, जबकि कुछ चाहकर भी एक-दूसरे से मिल पाते हैं. इसी दूरी को मिटाने के लिए हरिद्वार में रह रहे राष्ट्रीय युवा पुरस्कार विजेता उत्तरकारी जिले के नौगांव ब्लॉक की बनाल पट्टी के रचनात्मक शिक्षक दिनेश रावत भी शिक्षा विभाग में तैनात हैं. उनकी पत्नी भी यहीं पुलिस विभाग में कार्यरत हैं.
दिनेश रावत ने हमेशा की तरह अपने ही मिजाज के कुछ लोगों को खोज निकाला और मिलने-मिलाने का एक प्रस्ताव रखा. लोग जुड़ते चले गए और रवांल्टा सम्मेलन का आयोजन शनिवार 21 जनवरी को धर्मनगरी हरिद्वार में सम्पन्न हुआ. कुलमिलाकर जिस तरह से नाम से ही परिलक्षित हो रहा है कि इस अयोजन में रवांई घाटी के लोगों का संगम होना था. संगत हुआ भी भारत हैवी इलेक्ट्रिकल्स के कम्यूनिटी हाॅल में जगह तय की गई थी.
आयोजन स्थल को देखकर ही लग रहा था कि किस तरह से आयोजनों ने हरिद्वार में रंवाई होने का माहौल तैयार किया गया था. बाकायदा बाजगियों को बुलाया गया था. देवता की डांगरी के साथ तांदी और रासो ननृत्य किया गया. चैपती की झलक भी देखने को मिली. यह कोई मामूली संगम नहीं था. यह अपने आप में खास तरह का संगम था.
इसमें जहां दूर बनाल पट्टी के लोग शामिल थे. तो वहीं दूर बंगाण के भी लोगों ने अपनी भूमिका निभाई. दूर गीठ पट्टी का प्रतिनिधित्व भी नजर आया. ठकराल पट्टी का प्रतिनिधित्व भी अच्छा रहा. इधर, मुगरसंती पट्टी का भी प्रतिभाग देखने को मिला. कई अन्य पट्टियों के लोग भी नजर आए.
दूरी हरिद्वार में आधुनिकता की चाकाचौंध के बीच महिलाओं ने अपनी परंपरा को बखूबी निभाया. अधिकांश महिलाएं अपनी पारंपरिक परिधानों में नजर आए. परंपरा की इस कड़ी में जहां एक और युवा पीढ़ी अपनी संस्कृति से दूर हो रही है. उस दौर में बदलते दौर से कुछ साल पहले की पीढ़ी अपनी जड़ों से गहरी जुड़ी हुई नजर आई.
इस आयोजन में जहां युवाओं ने अच्छा योग दान दिया. वहीं, बुजुर्गों का आशीर्वाद भी मिला. सरनौल निवासी बुजुर्ग चौहान जी ने छोड़े और लामण सुनाए, तो युवाओं ने उनके साथ भौंण मिलाई. देव नौटियाल ने लोग गीतों की प्रस्तुति दी. आयोजन में शामिल लोगों ने किसी ना किसी रूप में खुद को इससे जोड़े रखा.
इस आयोजन में सहयोग करने वालों की लंबी फेहरिस्त रही. आर्थिक रूप से तो सभी ने सहयोग किया ही. इसके अलावा भी किसी ने घर से गैस सिलेंडर लाकर दिए तो किसी ने कार्यक्रम के शुभारंभ के लिए पारंपरिक गागर उपब्ध कराई. साफ नजर आ रहा था कि जो आयोजन पहली बार हो रहा है. ऐसा लग रहा था कि इस तरह के आयोजन पहले हो रहे हों.
आयोजन में सेल्फी प्वाइंट भी बनाए गए थे. ये आइडिया रवांई से जुड़े हर आयोजन के एक तरह से सूत्रधार की भूमिका में रहने वाले शशिमोहन रवांल्टा का था. उनकी डिजाइनिंग के सभी कायल नजर आए. सेल्फी प्वांइट को भी अपनी परंपरा और पहचानों से जोड़ा गया था. एक तरफ जहां कोटी बनाल के चैकट की बड़ी सी तस्वीर थी. वहीं, दूसरी तरह पुराने समय में घरों में बनाए जाने वाले नक्काशीदार घरों के दरवाजों के कटआउट बनाए गए थे. ये कटआउट लोगों की पहले पसंद बने.
हमें भी कार्यक्रम में आमंत्रित किया गया था. व्यस्तता और अस्वस्तता के बावजूद रवांई और रवांल्टा सम्मेलन में जाने से खुद को नहीं रोक पाया और पत्नी समेत आयोजन में पहुंच गए. वहां बहुत सारे पुराने साथ मिले. कुछ को पहचान पाया और कुछ को नहीं थी. लेकिन, हमें लगभग सभी ने पहचाना. उसका कारण यह है कि अपनी जड़ों से जुड़े रहने के चलते दूरदर्शन देहरादून केंद्र से कविताओं का प्रसारण होता रहता है. उस रूप में लोग पहचान लेते हैं.
कुलमिलाकर कहा जाए तो आयोजन बेहद शानदार और सफल रहा. सभी ने अपने-अपने हिस्से का सहयोग दिया और सफल आयोजन के भागीदार बने. इस आयोजन से हर कोई कुछ ना कुछ सीख लेकर गया और साथ ही आने वाले सालों में आयोजन को और बेहतर बनाने के साथ ही नियमित आयोजित करने का संकल्प भी साथ ले गए.