शिक्षक ही नहीं लोक संरक्षक भी!

Subhash Joshi

 

ज्ञान के उजाले के साथ ही लोक संस्कृति की सौंधी महक बिखेरने में तल्लीन
मुन्धौल गांव निवासी शिक्षक एवं लोक गायक सुभाष जोशी

  • नीरज उत्तराखंडी, पुरोला

 पर्वतीय जनजाति क्षेत्र जौनसार बावर के तहसील त्यूनी ख़त देवघार के मुन्धोल गांव निवासी सुभाष जोशी उम्दा शिक्षक ही नहीं, लोक संस्कृति के संरक्षक भी है. वे समाज के एक अच्छे नायक ही नहीं उम्दा गायक और कवि व गीतकार भी है.

बताते चलें कि सुभाष जोशी सुप्रसिद्ध कलाकार जगतराम वर्मा, फकीरा सिंह चौहान, महेन्द्र सिंह चौहान के समकालीन रहें हैं. इन्होंने 1991-92 में एस.डी. कश्यप सैकरवा (मंडी) हि.प्र. के संगीत में तथा 1998-99 में गांव के साथी कलाकार जयानंद जोशी के साथ  प्रेम शर्मा ग्राम मेघाटू (जिन्होंने महाभारत में नकुल की भूमिका निभाई) के प्रोडेक्शन में गढ़वाल के प्रसिद्ध संगीतकार वीरेन्द्र नेगी के संगीत में “आणेला बाबीया मेरे भी जोरु, चारणे पौडौ मु शुदेई गोरु ” गाया था. जो उस समय का प्रसिद्ध लोक गीत रहा, जिसकी गूंज लम्बे समय तक संगीत प्रेमियों के जेहन में राज करती रही.

सुभाष जोशी बताते हैं कि बीच में पारिवारिक परिस्थिति के कारण संगीत क्षेत्र से दूर रहे. लेकिन गत दो वर्ष से फिर से संगीत क्षेत्र से जुड़ते हुए  जो गीत लोगो के सामने लाये है उनकी विशेषता ये है कि ये समाज के लिए संदेश के रुप में लिखे गये है.  जिसमें पहला गाना है जो आज के रिश्ते में जो बदलाव किये जा रहे हैं उनकी मर्यादा को भूला दिया जा रहा है.

जैसे हमारी नई पीढ़ियां सास -ससूर को, मम्मी पापा, व ननद व जैठ को  बहन भाई कह रहे हैं उससे रिश्ते पहचाने में जो भ्रांतियां हो रही  है उसका शानदार वर्णन किया है जो हास्य व्यंग्य से परिपूर्ण है. वहीं दूसरा गाना बेटी शिक्षा पर है. तीसरा गाना जो रमेश कुंवर के प्रोडक्शन में 12 मई को लांच हुआ है जिसका “शीर्षक मां” है इसमें मां अपनी औलाद के लिए किस प्रकार त्याग व समर्पण करती है का वर्णन किया है.

बहरहाल सुभाष जोशी द्वारा लोक संस्कृति को संजोए रखने का संदेश कविता गीत रचनाओं के माध्यम से दिया जा रहा है वह निसंदेह अनुकरणीय है. वास्तव में इस प्रकार के गीतो को प्रोत्साहन मिलना चाहिए जिससे नई पीढ़ियां प्ररेणा लेकर अच्छा कार्य कर सके. आपकी विशेषता ये है कि आप निःशुल्क लिखते तथा गाते हैं.

 गीत लिखने की प्रेरणा

सुभाष जोशी कहते हैं कि जब वे 8 -10वर्ष के रहे तब गांव में माघ में मुजरा लगता था लेकिन भीड़ अधिक होने के कारण व उनकी तरफ से गाने मे कोई प्रतिभाग न लेने के कारण उनको व उनके छोटे साथियों को दूसरे घर में भेजा जाता था जिससे वे अपने पसंदीदा कलाकार को नहीं देख पाते थे वहीं से उनको लगा कि उन्हें भी गीत लिखना व बनाना चाहिए ताकि उन्हें भी उनके आदर्श गायक की तरह  मान सम्मान मिले.

संदेश  

आप अपना शौक बेशक पूरा कीजिए किन्तु उसमें किसी का नुक़सान व अपमान न हो समाज के लिए संदेशपरक हो,अपना कार्य एक पूजा की तरह कीजिए आपको नियमित धूप जलाने की जरूरत नहीं ‌पडेगी. संगीत ईश्वर का दूसरा रुप है क्योंकि जब  तक आप कोई तर्ज या शब्द बनाने की धुन में होते हैं ‌हो उस समय आप‌ के अंदर किसी के प्रति ईर्ष्या,परनिंदा अंह का भाव शून्य होने के कारण इन‌ तीनो पाप से बच जाते हैं. और आपका,एक अच्छा गीत,कुछ समय के लिए किसी दुःख -दर्द कम कर सकता है. जो सबसे परोपकार है.

अपने शैक्षिक व्यवसाय में समयनिष्ठ व कर्तव्य निष्ठ होने के कारण लेखन‌ कार्य के लिए पर्याप्त समय तो

नहीं मिल पाता है लेकिन किसी तरह‌ अतिरिक्त समय निकाल कर आपने छोटी- छोटी शिक्षाप्रद कविताएं लिखी हैं. जिसका फेसबुक में सुभाष मुन्धौलचिया सर्च कर पढ़ने का आनन्द लिया जा सकता है.

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