
‘जलवायु परिवर्तन का आजीविका पर प्रभाव एवं उनके सतत समाधान’ विषय पर एक संगोष्ठी आयोजित
- हिमांतर ब्यूरो, श्रीनगर
मोल्यार रिसोर्स फाउंडेशन ने हेमवती नंदन बहुगुणा गढ़वाल विश्वविद्यालय, श्रीनगर (गढ़वाल), उत्तराखण्ड में दिनांक 19 मई 2025 को “जलवायु परिवर्तन का आजीविका पर प्रभाव एवं उनके सतत समाधान” विषय पर एक दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन सम्पन्न हुआ.
मोल्यार रिसोर्स फाउंडेशन की अध्यक्ष परिधि भंडारी और मुख्य समन्वयक दुर्गा सिंह भंडारी ने मुख्य अतिथि मनमोहन सिंह रौथाण कुलपति एचएनबी गढ़वाल विश्वविद्यालय, सुभाष नेगी डीआईजी एसएसबी विशिष्ट अतिथि और अन्य का स्वागत किया.
यह संगोष्ठी मोल्यार रिसोर्स फाउंडेशन, नई दिल्ली के सौजन्य से आयोजित की गई, जिसमें ग्रामीण प्रौद्योगिकी विभाग, एच.एन.बी. गढ़वाल विश्वविद्यालय ने ज्ञान-तकनीकी सहयोगी की भूमिका निभाई. कार्यक्रम का उद्घाटन दीप प्रज्वलन व सरस्वती वंदना के साथ सांस्कृतिक रूप में हुआ. कार्यक्रम का मंच संचालन ग्रामीण प्रौद्योगिकी विभाग के शोधछात्रो अंकित सती, प्रतिभा रावत एवं नवदीप सिंह द्वारा किया गया.
कार्यक्रम का संचालन प्रो. आर.एस. नेगी, संगोष्ठी के संयोजक एवं विभागाध्यक्ष, ग्रामीण प्रौद्योगिकी विभाग ने किया, जिन्होंने जलवायु परिवर्तन के कारण पर्वतीय कृषि संकट, पारंपरिक फसलों की हानि तथा जलवायु असंतुलन के प्रभावों पर प्रकाश डाला.
मुख्य अतिथि के रूप में माननीय कुलपति प्रो. मनमोहन सिंह रौथाण ने कहा कि जलवायु परिवर्तन कोई तात्कालिक घटना नहीं, बल्कि औद्योगिक क्रांति के साथ शुरू हुई एक प्रक्रिया है. वनों की कटाई और अनियंत्रित औद्योगीकरण ने प्रकृति को असंतुलित किया है. उन्होंने छात्रों से वृक्षारोपण एवं स्थायी समाधान की दिशा में कार्य करने का आह्वान किया.
विशिष्ट अतिथि सुभाष नेगी, उप महानिरीक्षक, सीमा सशस्त्र बल ने सीमांत क्षेत्रों में जलवायु परिवर्तन के कारण उत्पन्न सुरक्षा और आजीविका चुनौतियों को रेखांकित किया. उन्होंने 2013 की उत्तराखण्ड आपदा सहित प्राकृतिक घटनाओं का उल्लेख करते हुए पूर्व चेतावनी प्रणाली और सामुदायिक जागरूकता की आवश्यकता पर बल दिया.
डॉ. मधुबेन शर्मा, सहायक प्राध्यापिका, UPES देहरादून ने सस्टेनेबल एग्रीकल्चर, एग्रोफॉरेस्ट्री, सौर ऊर्जा और इलेक्ट्रिक वाहनों को समाधान के रूप में प्रस्तुत किया. उन्होंने शिक्षा संस्थानों की भूमिका को नीति एवं समाधान निर्माण में निर्णायक बताया.
दुर्गा सिंह भण्डारी, संयोजक, मोल्यार रिसोर्स फाउंडेशन ने कहा कि स्थायी समाधान तभी संभव हैं जब समुदाय स्वयं योजनाओं में भागीदार बने. सामुदायिक सहभागिता द्वारा विकास को उन्होंने आवश्यक बताया.
शक्ति थपलियाल,प्रबंध निदेशक, देवस्थली पी.जी. कॉलेज ने शैक्षणिक संस्थानों को परिवर्तन के वाहक की भूमिका में देखने की बात कही और वृक्षारोपण को एक प्रभावी जन-सहभागी समाधान बताया.
उद्घाटन सत्र का धन्यवाद प्रेषण डॉ संतोष सिंह, संगोष्ठी के सहसंयोजक द्वारा किया गया. संगोष्ठी में विश्वविद्यालय के प्रो. एच.सी. नैनवाल, प्रो. आर. के. मैखुरी, प्रो. जे. एस. चौहान, डॉ. वी. के. पुरोहित, डॉ. डी.के. राणा, डॉ. ज. एस. बुटोला, डॉ. के. न. शाह, डॉ. विवेक सिंह, डॉ. सिमरन सैनी के साथ-साथ विभिन्न विभागों ग्रामीण प्रौद्योगिकी, उद्यानिकी, वन विज्ञान एवं योग विज्ञान,समाजशास्त्र आदि से जुड़े शोधार्थियों एवं छात्रों ने सक्रिय भागीदारी की, जिसमें जलवायु परिवर्तन का आजीविका पर प्रभाव एवं उनके सतत समाधान विषय पर विद्यार्थियों ने प्रश्न पूछकर और चर्चा में सम्मिलित होकर अपने शैक्षणिक उत्साह को दर्शाया.
अंत प्रो. आर.एस. नेगी,संगोष्ठी के संयोजक एवं विभागाध्यक्ष, ग्रामीण प्रौद्योगिकी विभाग द्वारा धन्यवाद प्रेषित किया और उन्होंने कहा कि इस आयोजन से यह स्पष्ट होता है कि जलवायु परिवर्तन के संकट का समाधान केवल वैज्ञानिक शोध नहीं, बल्कि सामाजिक सहभागिता, नैतिक जागरूकता एवं पर्यावरणीय संवेदनशीलता के समन्वय से ही संभव है.