
हिमालय बचाओ: जलवायु परिवर्तन की चुनौती के समक्ष सतत विकास का संकल्प
- हिमांतर ब्यूरो, देहरादून
हिमालय की चोटियां केवल बर्फ और पत्थर नहीं, बल्कि हमारी सांस्कृतिक और पारिस्थितिक आत्मा की प्रतीक हैं. लेकिन आज यही हिमालय जलवायु परिवर्तन की मार से कराह रहा है. इसी गंभीर मुद्दे पर मोल्यार रिसोर्स फाउंडेशन द्वारा गुरु नानक कॉलेज, देहरादून में एक राष्ट्रीय संगोष्ठी आयोजित की गई, “हिमालय बचाओ – जलवायु परिवर्तन की चुनौती के समक्ष सतत विकास”.
कार्यक्रम का शुभारंभ पारंपरिक दीप प्रज्वलन से हुआ, जो ज्ञान, स्थिरता और पर्यावरण चेतना का प्रतीक था. इस अवसर पर दुर्गा सिंह भंडारी और पेरिधि भंडारी ने मुख्य अतिथि डॉ. अनिल प्रकाश जोशी, प्रसिद्ध पर्यावरणविद्, पद्मश्री और पद्मभूषण सम्मानित का स्वागत किया.
मुख्य अतिथि डॉ. जोशी ने अपने सारगर्भित संबोधन में कहा कि जलवायु परिवर्तन आज एक वैश्विक संकट बन चुका है, जिसका सबसे गहरा असर हिमालयी क्षेत्र झेल रहा है. उन्होंने कहा, “हमें उपभोग की संस्कृति से उत्पादन और संरक्षण की संस्कृति की ओर लौटना होगा. स्थिरता केवल विचार नहीं, यह जीवन की अनिवार्यता है.”
उन्होंने शहरी आबादी से अपील की कि वे ऊर्जा दक्ष जीवनशैली अपनाएं और हरित ऊर्जा को अपने दैनिक जीवन का हिस्सा बनाएं. साथ ही उन्होंने राष्ट्रीय स्तर पर व्यापक जनजागरूकता अभियान चलाने की आवश्यकता पर बल दिया.
मोल्यार रिसोर्स फाउंडेशन के मुख्य समन्वयक दुर्गा सिंह भंडारी ने संगठन के उद्देश्यों और कार्यों का परिचय देते हुए कहा कि फाउंडेशन का लक्ष्य केवल पर्यावरण संरक्षण नहीं, बल्कि एक न्यायसंगत, समान और सतत समाज का निर्माण है. उन्होंने बताया कि संगठन स्थानीय समुदायों के साथ मिलकर जल संरक्षण, पर्यावरण शिक्षा और टिकाऊ जीवनशैली के प्रसार पर कार्य कर रहा है.
हिमालयी पारिस्थितिकी पर विशेषज्ञों की चिंता
संगोष्ठी में उपस्थित विशिष्ट अतिथियों में शामिल थे, कल्याण सिंह रावत, प्रसिद्ध पर्यावरणविद् एवं मैती आंदोलन के संस्थापक; प्रो. राजेन्द्र सिंह नेगी, एच.एन.बी. गढ़वाल विश्वविद्यालय; मनोज बर्थवाल, पूर्व कार्यकारी निदेशक, ओएनजीसी; सुधीर कुमार सुंद्रीयाल, सामाजिक कार्यकर्ता; भूपेन्द्र सिंह अरोड़ा, सीईओ, बी.एफ.आई.टी कॉलेज; डॉ. लक्ष्मी प्रिया विन्जमुरी, उत्तरांचल लॉ यूनिवर्सिटी. पैनल चर्चा का संचालन मनोज बर्थवाल ने किया. इस सत्र में विशेषज्ञों ने हिमालयी राज्यों में समुदाय आधारित अनुकूलन रणनीतियों को बढ़ावा देने पर सहमति जताई.
“हिमालयी विकास तभी सतत होगा जब वह समुदाय की भागीदारी से संचालित होगा. जलवायु-रोधी फसलें, स्थानीय जल स्रोतों का पुनर्जीवन और पारंपरिक ज्ञान का सम्मान इस दिशा में अहम कदम हैं.” – कल्याण सिंह रावत
हर्षिल (उत्तरकाशी) से आए प्रतिनिधि, ने क्षेत्र में आई भीषण बाढ़ का वर्णन करते हुए बताया कि कैसे प्राकृतिक आपदाएँ पर्वतीय समाज की जीवन-शैली को गहराई से प्रभावित कर रही हैं. – माधवेन्द्र सिंह रावत
कार्यक्रम के अंत में सभी मुख्य एवं विशिष्ट अतिथियों को स्मृति चिन्ह भेंट किए गए. अंतिम चरण में दुर्गा सिंह भंडारी ने धन्यवाद ज्ञापन प्रस्तुत किया और कहा, “हिमालय को बचाना केवल पहाड़ों का नहीं, बल्कि पूरे भारत का दायित्व है. हमें अपने विचारों और जीवनशैली दोनों में परिवर्तन लाना होगा.”
संगोष्ठी इस संदेश के साथ समाप्त हुई कि सतत विकास केवल नीति नहीं, बल्कि नैतिकता है और हिमालय को बचाना हमारे सामूहिक भविष्य को सुरक्षित करना है.