
डॉक्टर कुसुम जोशी
युवा लेखक ललित फुलारा का प्रथम उपन्यास ”घासी: लाल कैंपस का भगवाधारी” पढ़ा, छात्र जीवन की वास्तविकता के साथ- साथ युवा मन की कल्पनाओं के ताने- बाने के साथ बुना गया यह एक ऐसा उपन्यास है जिसमें प्रवाह है और एक सांस में पढ़ने को प्रेरित करता है, भाषा सामान्य बोलचाल और भारतीय पुरुषों के जबान में रची- बसी गालियां जो राह चलते सुनाई पड़ती है, कह सकते हैं कि ये अल्हड़ और युवा उम्र के छिछोरेपन और जीवन संघर्ष का एक अद्भुत उपन्यास है जो पात्रों की सामाजिक पृष्ठभूमि, समय काल, ज्ञान-अज्ञान को प्रतिबिंबित करता है। (Book Review of Ghasi Lal Campus Ka Bhagwadhari)
यह उन युवाओं का उपन्यास है जो सूदूर गांवों -कस्बों से जीवन को एक धार देने के लिए चले आते हैं और बहुत सारे काल्पनिक सपनों के साथ रूमानियत के संसार में विचरते हुए जब यथार्थ के धरातल में आकर अपनी क्षमताओं को परखते हैं तब तक बहुत देर हो चुकी होती है, जिसे लेखक ईमानदारी के साथ बताने में सक्षम हुए हैं।
घासी एक प्रतिनिधि पात्र हैं जो अपने व्यक्तित्व, कार्य- कलाप से पाठक के चेहरे पर जितनी मुस्कान चस्पा करता है उससे कहीं ज्यादा करुणा उपजाता है। दद्दा,घासी,पंडित,टोंटी,मासूम मिश्रा,टिल्लू पहाड़ी समाज के ऐसे पात्र हैं जो अपनी हीन बोधता से निजात पाने और जड़ों से जुड़े रहने की बेहतर कोशिश करते हैं , वह अपनी उपस्थिति को पाठकों को प्रभावी रुप से पहुंचाने में सफल होते हैं,
पात्रों के संवादों और कृत्यों के साथ पाठकों के चेहरे पर कभी हंसी,विद्रूपता कभी गहन करुणा के भाव प्रतिलक्षित होते हैं। कुछ प्रसंग समसामयिक होने से प्रभावी हैं,जैसे अन्ना आंदोलन और पात्रों का चिन्तन, फिर गुरुवर को था धता बता कर दिल्ली की राजनीति में नये दल का उदय, घासी का नायाब चिन्तन, बहस(“गुरु के ऊपर भारी पड़ना ही 21वीं सदी राजनीतिक बदलाव है”) इस पर लिखा पूरा प्रंसग प्रभावशाली है।
इस उपन्यास (Ghasi Lal Campus Ka Bhagwadhari) की लगभग सभी स्त्री पात्र (नव्या,सुमित्रा,गार्गी, मोना, मेघा ….) बेहद व्यवहारिक और चालाक महसूस होती हैं, जिसे पढ़कर स्वाभाविक रुप से पाठक के मन में प्रश्न उठता है कि क्या स्त्रियां अपना स्वाभाविक गुण खो रही हैं, या लेखक उनके चरित्र के प्रति न्याय करने में पूर्वाग्रही रहे? इसका उत्तर तो लेखक स्वंय ही देगें।
अन्त आते-आते कोरोना काल की भयावहता,पात्रों का भय, लेखक का भय … पाठकों को स्वाभाविक रूप से जोड़ लेता है, अपना, अपनों के जीवन, जीविका के भय को पाठक गहनता के साथ महसूस करता है, और अतं में घासी की हंसी के साथ पाठक गहरी सांस लेता है, और सूकून महसूस करता है। प्रथम प्रयास में ललित ने अपनी यादों की दस्तक के साथ एक रोचक और पठनीय उपन्यास पाठकों दिया है, इस सृजन की हार्दिक बधाई और लेखकीय जीवन के लिए शुभकामनाएं।
उपन्यास- ‘घासी: लाल कैंपस का भगवाधारी’
लेखक- ललित फुलारा
प्रकाशक- यश पब्लिकेशंस
मूल्य- 199 रुपये
पृष्ठ संख्या- 127