- व्योमेश जुगरान
हाल में दो ई-किताबों से सुखद सामना हुआ– ‘आसमान की किताबः बसंत में आकाश दर्शन’ और ‘घुघूति-बासूति’. संयोग से दोनों की विषयवस्तु बच्चों से संबंधित है और दोनों ही कृतियों का यह पहला भाग है. लेखक आशुतोष उपाध्याय और हेम पन्त अपनी-अपनी क्षमताओं के अनुसार स्वयंसेवी ढ़ंग से बाल विकास व बाल शिक्षण की दिशा में सक्रिय हैं. बाल विकास एक ऐसा विषय है जिसे लेकर हम अपने इर्द-गिर्द ठोस चिंतन की कमी लगातार महसूस करते रहते हैं. ऐसे में इस पक्ष से जुड़ी भिन्न तरह सामग्री का महत्व काफी बढ़ जाता है.
‘आसमान की किताब’ जैसा अनूठा रचनाकर्म डॉ. डी.डी. पंत स्मारक बाल विज्ञान खोजशाला, बेरीनाग उत्तराखंड की प्रस्तुति है. इसमें नक्षत्रों और ग्रहों के बारे में बेहद रोचक जानकारियां दी गई हैं. ये जानकारियां खगोल विज्ञान के स्रोतों पर आधारित हैं और तारों के अनूठे पैटर्न /रेखांकन के जरिये गूढ़ बातों को सरलता से समझाने में सक्षम हैं. लेखक आशुतोष उपाध्याय पुस्तक की प्रस्तावना में लिखते हैं- “धरती जब रात के अंधेरे में डूबी रहती है, आकाश में टिमटिमाते तारे मानो कुछ कहना चाहते हैं, अपने भीतर छिपे अनगिनत रहस्यों को जैसे उजागर करना चाहते हैं और इसके लिए वे न जाने कितने सुराग हमारे सामने छोड़ते हैं.…
“यह बात सच है कि हमारे पुरखों ने बहुत पहले से आकाशीय पिंडों की गति की सटीक गणना सीख ली थी लेकिन किसी व्यक्ति के जन्म के समय ग्रह-नक्षत्रों की स्थिति के आधार पर उसके चारित्रिक गुणों और भविष्य का निर्धारण यानी फलित ज्योतिष पूरी तरह से अवैज्ञानिक परंपरा है….”
यह पुस्तक हमारे अतीत और वर्तमान के दृष्टिगत तारों के वैज्ञानिक या खगोलीय महत्व की ओर इशारा करती है मगर ‘फलित ज्योतिष’ जैसी आवधारणा का साफ-साफ खंडन करती है- “यह बात सच है कि हमारे पुरखों ने बहुत पहले से आकाशीय पिंडों की गति की सटीक गणना सीख ली थी लेकिन किसी व्यक्ति के जन्म के समय ग्रह-नक्षत्रों की स्थिति के आधार पर उसके चारित्रिक गुणों और भविष्य का निर्धारण यानी फलित ज्योतिष पूरी तरह से अवैज्ञानिक परंपरा है….”
साज-सज्जा और प्रस्तुतीकरण की दृष्टि से पुस्तक देखते ही उतावला बना देती है. इसकी विषयवस्तु सिर्फ बालमन पर नहीं, वयस्कों पर भी समान छाप छोड़ती है.
दूसरी पुस्तक है- घुघूति बासुति… यह उत्तराखंड के पारंपरिक बाल गीतों का संकलन है और इसे सामने लाए हैं- हेम पन्त. हेम ने अभी तक करीब 70 ऐसे बाल गीत संकलित किए हैं जो लोरी, पर्वगीत, क्रीड़ा गीत, पढ़ाई-लिखाई, पहेली और आशीर्वचन के रूप में हैं. इनमें से करीब आधे ‘घुघूति बासुति’ के प्रथम भाग का हिस्सा बने हैं.
मां और दादी-नानी के मुख सुने ये छोटे-छोटे मधुर गीत और पहेलियां (आंण) पहाड़ी लोकजीवन की मूल्यवान थाती हैं. यह एक अलग तरह का रचना संसार है मगर गेयता तक ही सिमट कर रह गया. पीढ़ियां गुजर जाने के साथ ही ये गीत समाप्त होते जा रहे हैं. ऐसे में इनके संकलन का प्रयास निश्चित ही प्रशंसनीय है.
पुस्तक की प्रस्तावना में हेम का यह कहना बिल्कुल सही है कि ऐसे गीतों के माध्यम से बच्चों को अपने परिवेश, समाज, पर्यावरण और खेती-पशुपालन की जानकारी सरलता से मिल जाती है. संकलन कुमाउंनी में है मगर इसमें प्रस्तुत कई गीत गढ़वाली और कुमाउंनी दोनों ही भाषाओं में समान रूप से लोकप्रिय रहे हैं.
शीर्षक ‘घुघूति बासुति’ सटीक है. यह पुस्तक की आत्मा को उकेरने वाला शीर्षक है और पाठक को सीधे पहाड़ और बालमन के सुखद स्पंदन से जोड़ देता है. प्रस्तुतीकरण और साज-सज्जा के लिहाज से भी पुस्तक सुंदर और सुदर्शनीय है. खासकर नन्हें-मुन्ने बच्चों की क्रियोन्स पेंटिग्ज का उपयोग पुस्तक के बालबोध को सफलतापूर्वक उभार रहा है. हेम को इस शानदार रचनाकर्म के लिए बधाई.
(लेखक कवि, वरिष्ठ पत्रकार हैं)