

हिमान्तर प्रकाशन के तत्वावधान में 24 मई 2025 को देहरादून के दून पुस्तकालय एवं अनुसंधान केंद्र में आयोजित एक गरिमामयी समारोह में लेखिका मंजू काला की दो खंडों में प्रकाशित पुस्तक ‘बैलेड्स ऑफ इंडियाना: अल्मंडा टू चेट्टीनाड’ का लोकार्पण हुआ। इस अवसर पर साहित्य, संस्कृति और प्रशासन से जुड़े कई विशिष्टजन उपस्थित रहे, जिनकी उपस्थिति ने इस कार्यक्रम को स्मरणीय बना दिया।
विशेष अतिथि के रूप में कार्यक्रम में उपस्थित थे- पूर्व डीजीपी उत्तराखंड अनिल रतूड़ी, मुख्य सचिव एवं आयुक्त राधा रतूड़ी, वरिष्ठ साहित्यकार महावीर रवांल्टा, तथा उत्तराखंड संस्कृत विश्वविद्यालय, हरिद्वार की पूर्व कुलपति डॉ. सुधारानी पाण्डेय, जिन्होंने इस सशक्त रचना की औपचारिक घोषणा की। कार्यक्रम का संचालन असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. प्रकाश उप्रेती ने अत्यंत प्रभावशाली ढंग से किया।
एक लेखक की सांस्कृतिक तीर्थयात्रा
लेखिका मंजू काला द्वारा रचित यह कृति केवल एक यात्रा-वृत्तांत नहीं है, बल्कि यह भारत की भौगोलिक और सांस्कृतिक विविधता की आत्मीय व्याख्या भी है। पुस्तक में उत्तराखंड की पहाड़ी बसावटों से लेकर तमिलनाडु के चेट्टीनाड, बनारस की गलियों से लेकर सिक्किम की तीस्ता नदी तक का सांस्कृतिक दस्तावेज अत्यंत सूक्ष्मता से प्रस्तुत किया गया है।
इस संदर्भ में अनिल रतूड़ी ने कहा, “यह पुस्तक डायरी भी है, रिपोर्ताज भी, संस्मरण भी और यात्रा-वृत्तांत भी। भारत की संस्कृति एक ‘आइसबर्ग’ की तरह है, जिसे समझना और उसकी परतों को पकड़ना बहुत कठिन है — पर मंजू काला ने इस कठिन कार्य को साधने का प्रयास किया है।” उन्होंने विशेष रूप से लेखिका की नारी शक्ति को रेखांकित करते हुए कहा कि “एक महिला का यह कार्य, परिवार और समाज के सभी दायित्व निभाते हुए, अत्यंत सराहनीय और प्रेरणादायी है।”
संवेदनाओं की खोज और सांस्कृतिक समृद्धि
मुख्य आयुक्त राधा रतूड़ी ने कहा, “इस पुस्तक में भारत के भूगोल, इतिहास, खानपान, वेशभूषा, गीत, संगीत और कथाओं का अद्भुत समन्वय है। इसे विद्यालयों और महाविद्यालयों में पढ़ाया जाना चाहिए और इस पर शोध भी होना चाहिए।”
कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहीं डॉ. सुधारानी पाण्डेय ने इसे “मिट्टी से गंध उठाती लेखनी” कहा और सुझाव दिया कि “इसका अंग्रेज़ी अनुवाद किया जाना चाहिए ताकि आज की पीढ़ी भी इससे लाभान्वित हो सके।”
महावीर रवांल्टा ने कहा, “मंजू काला की किताब बौद्धिक आतंक नहीं, बल्कि गहन दृष्टिकोण की अभिव्यक्ति है। संवेदनाओं को खोजना आज के समय की सबसे बड़ी चुनौती है, और यह पुस्तक इस दिशा में एक सार्थक प्रयास है।”
डॉ. प्रकाश उप्रेती ने पुस्तक को एक सांस्कृतिक यात्रा बताते हुए कहा, “यह पुस्तक केवल भारत के भौगोलिक विस्तार की नहीं, बल्कि हमारी भीतरी समृद्धि की खोज है।”
लेखिका की ओर से आत्मीय वक्तव्य
लेखिका मंजू काला ने अपने संबोधन में अपने पिताजी को यह पुस्तक समर्पित करते हुए कहा कि उन्हीं की प्रेरणा, परिवार का सहयोग, और अपनी माटी से जुड़ाव ने उन्हें यह लिखने की दिशा में प्रेरित किया। उन्होंने इस पुस्तक को एक लोक-संवेदना की यात्रा बताया जो न केवल भौगोलिक सीमाएं पार करती है, बल्कि आत्मिक अनुभवों को भी सहेजती है।
समाज, साहित्य और संवाद का संगम
कार्यक्रम में देहरादून के प्रतिष्ठित लेखक समुदाय की गरिमामयी उपस्थिति रही। विमोचन के पश्चात साहित्यकारों के मध्य गहन चर्चा हुई, जिसमें वर्तमान लेखन प्रवृत्तियों, प्रकाशित पुस्तकों और आगामी साहित्यिक परियोजनाओं पर विचार साझा किए गए।
सुनीता भट्ट पैन्यूली ने इस आयोजन पर अपनी अनुभूतियाँ साझा करते हुए कहा, “नदियों को रास्ता दिखाने की आवश्यकता नहीं होती, वे स्वयं अपना मार्ग ढूंढ लेती हैं — ठीक वैसे ही यह पुस्तक मंजू दीदी की सतत साधना का प्रतिफल है।”