
- हिमांतर ब्यूरो, टिहरी गढ़वाल
हिमालय की शाश्वत नीरवता में जब भक्तों के जयकारे और लोकगीतों की गूंज घुलती है, तो वह केवल एक धार्मिक यात्रा नहीं रह जाती- वह बन जाती है एक चेतना का आंदोलन. ऐसी ही चेतना का पर्व बन चुकी है 41वीं खतलिंग हिमालय जागरण महायात्रा 2025, जो बूढ़ाकेदार, चूला गढ़ बासर, माँ भगवती राजराजेश्वरी, प्रथम केदार बैलेश्वर से लेकर सीमांत गांव गंगी तक अपने ऐतिहासिक पड़ावों में सम्पन्न हुई.
यह यात्रा पर्वतीय लोकविकास समिति, इंद्रमणि बडोनी कला एवं साहित्य मंच घनसाली, देवलिंग खतलिंग पर्यटन विकास समिति और भिलंगना क्षेत्र विकास समिति के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित की गई. यात्रा का मूल उद्देश्य हिमालय के आध्यात्मिक, सांस्कृतिक और पर्यावरणीय महत्व को उजागर करते हुए युवाओं में सतत विकास और सामाजिक चेतना के प्रति जागरूकता फैलाना रहा.
बूढ़ाकेदार से शुरू हुई जनचेतना की पदयात्रा
दिल्ली और देहरादून से प्रारंभ हुई यह यात्रा टिहरी गढ़वाल के प्राचीन तीर्थ बैलेश्वर धाम और बूढ़ाकेदार धाम पहुँची, जहाँ यात्रियों का स्वागत पारंपरिक लोकसंगीत, नृत्य और पूजा-अर्चना से हुआ.
कार्यक्रम में ज्ञानदा अकादमी थाती के बच्चों तथा पर्वतीय नारी सशक्त संगठन की महिलाओं ने अपनी प्रस्तुतियों से सबका मन मोह लिया. संस्था की संस्थापिका मीनाक्षी सुनार और सागर सुनार को शिक्षा सेवा सम्मान से नवाजा गया.
इस अवसर पर अतिथियों में प्रमुख रूप से प्रो. सूर्य प्रकाश सेमवाल (मीडिया सलाहकार, भारत सरकार), डॉ. रामकृष्ण भट्ट (सेवानिवृत्त प्रधान वैज्ञानिक, भारत सरकार), अधिवक्ता लोकेन्द्र दत्त जोशी (अध्यक्ष, इंद्रमणि बडोनी कला एवं साहित्य मंच), श्री तेजराम सेमवाल (प्रदेश सह-संयोजक, भाजपा एनजीओ प्रकोष्ठ), और श्री वीर सिंह राणा (राष्ट्रीय महासचिव, पर्वतीय लोकविकास समिति एवं जनकवि) विशेष रूप से उपस्थित रहे.
चूला गढ़ बासर में मां राजराजेश्वरी का आशीर्वाद
खतलिंग यात्रा का अगला पड़ाव था मां भगवती राजराजेश्वरी मंदिर, चूला गढ़ बासर. यहाँ यात्रियों ने माँ का आशीर्वाद लिया और क्षेत्रीय नागरिकों से संवाद किया. इस अवसर पर श्री नीलम भट्ट, श्री भास्कर नन्द नौटियाल (महासचिव, मंदिर ट्रस्ट) तथा सुरेशानंद बसलियाल (अध्यक्ष, टिहरी–उत्तरकाशी जनविकास परिषद) ने यात्रियों का स्वागत किया.
घनसाली में हिमालय संरक्षण पर मंथन
घनसाली में स्थित वाशुलोक होटल में विश्व शिक्षक दिवस के अवसर पर एक विचार गोष्ठी आयोजित हुई. विषय था — “हिमालय, खतलिंग, पर्यावरण और सीमांत क्षेत्र गंगी की चुनौतियां.” कार्यक्रम की अध्यक्षता अधिवक्ता लोकेन्द्र दत्त जोशी ने तथा संचालन श्री विनोद लाल शाह (महासचिव, इंद्रमणि बडोनी कला एवं साहित्य मंच) ने किया.
गोष्ठी में प्रो. सूर्य प्रकाश सेमवाल ने कहा- “खतलिंग यात्रा केवल आध्यात्मिक नहीं, बल्कि हिमालय को बचाने की चेतना है. आज हमें फिर से इंद्रमणि बडोनी और सुंदरलाल बहुगुणा के विचारों को जनआंदोलन बनाना होगा.”
वहीं वैज्ञानिक डॉ. रामकृष्ण भट्ट ने कहा कि खतलिंग क्षेत्र में जलवायु परिवर्तन और प्राकृतिक संतुलन पर शोध की अपार संभावनाएँ हैं. उन्होंने स्थानीय निवासियों को हिमालय संरक्षण में भागीदारी के लिए प्रोत्साहन देने की आवश्यकता बताई.
श्री वीर सिंह राणा ने इस यात्रा को “पहाड़ की आत्मा की यात्रा” बताया और कहा कि सीमांत गांवों की आवाज़ ही भविष्य के आत्मनिर्भर उत्तराखंड की नींव बनेगी.
श्री तेजराम सेमवाल ने सीमांत क्षेत्रों को “देश की पहली सुरक्षा दीवार” बताते हुए इनके विकास की प्राथमिकता पर बल दिया.
कवि, समाजसेवी और शिक्षकों को किया गया सम्मानित
जनकवि नरेंद्र सिंह नेगी ‘गुंजन’ और बेलीराम कंसवाल ने अपनी कविताओं के माध्यम से हिमालयी संस्कृति और लोकधरोहर के संरक्षण का संदेश दिया.
इसके साथ ही नशा मुक्ति जनजागृति समिति के महासचिव डॉ. आर.बी. सिंह, केशर सिंह रावत, महेश्वर प्रसाद सेमवाल, लक्ष्मी प्रसाद सेमवाल, भीम सिंह रावत, लोकेंद्र रावत, सुनीता रावत, बबीता बर्थवाल, विवेकानंद मैठाणी, गणेश भट्ट,अरविंद राणा, और मीडिया सहयोगी हर्ष मणि उनियाल को इंद्रमणि बडोनी सेवा सम्मान से सम्मानित किया गया. इन सभी ने अपने-अपने क्षेत्र- शिक्षा, समाजसेवा, महिला सशक्तिकरण, लोकसंस्कृति संरक्षण और नशा मुक्ति में उल्लेखनीय योगदान दिया है.
हिमालय की आत्मा से संवाद
41वीं खतलिंग हिमालय जागरण महायात्रा इस बार केवल एक यात्रा नहीं, बल्कि हिमालय की आत्मा से संवाद का माध्यम बन गई. यह यात्रा उत्तराखंड के गांधी स्व. इंद्रमणि बडोनी की स्मृति में पुनः आरंभ हुई थी- ताकि हिमालय की अस्मिता, सीमांत गांवों की चेतना और युवाओं की ऊर्जा को दिशा मिल सके. नशा मुक्ति, महिला सशक्तिकरण, शिक्षा और लोकसंस्कृति संरक्षण जैसे मुद्दों पर चर्चा और सम्मान समारोहों ने इस यात्रा को एक नई ऊंचाई दी.
खतलिंग हिमालय जागरण महायात्रा आज उत्तराखंड की आध्यात्मिक और सामाजिक चेतना का प्रतीक बन चुकी है. यह हमें याद दिलाती है कि हिमालय केवल पर्वत नहीं- यह हमारी संस्कृति, अस्तित्व और भविष्य का आधार है. जब तक उसकी नदियां, जंगल और सीमांत गांव सुरक्षित नहीं होंगे, तब तक हमारी सभ्यता भी अधूरी रहेगी. यह यात्रा इसी संदेश के साथ हर वर्ष नए कदमों को, नई सोच को और नई आशा को जन्म देती है.