देवगोति मेला : सोमेश्वर देवता की छांव में लोक जीवन का उत्सव

Mori Uttarkashi Culture

 

  • नीरज उत्तराखंडी, पुरोला-मोरी, उत्तरकाशी

उत्तराखंड हिमालय का हर गांव अपनी परंपराओं, लोकगीतों और देव-आस्थाओं से बसा-गुंथा है। मोरी ब्लॉक की पंचगाई, अडोर और बडासु पट्टियों के 22 गांवों के लिए हर साल होने वाला देवगोति मेला सिर्फ धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि सांस्कृतिक पुनर्मिलन और सामूहिक उत्सव है। यह मेला आराध्य देव श्री सोमेश्वर देवता की आराधना के साथ शुरू होता है और पूरे क्षेत्र को लोक रंगों से भर देता है।

ढाटमीर से गंगाड तक का सफर

मेले की शुरुआत बडासु पट्टी के ढाटमीर गांव से होती है। यहां 10–11 दिन तक पूजा-अर्चना और रात्रिकालीन सांस्कृतिक आयोजन चलते हैं। इसके बाद गंगाड और ओसला गांवों में यह उत्सव आगे बढ़ता है।
आज, जब गंगाड गांव ने मेले के अंतिम दिवस का साक्षी बना, तो पूरा वातावरण देवधुनों और लोकगीतों से सराबोर था। सोमेश्वर देवता की डोली जब श्रद्धालुओं के बीच थिरकी, तो आस्था और उल्लास का अद्भुत संगम देखने को मिला।

गीत, नृत्य और लोक विधाएं

इस मेले की सबसे बड़ी पहचान है यहाँ की लोक विधाएं। दीप प्रज्वलन के बाद चौपालें सजती हैं, और गूंजते हैं तांदी, रासो, चौपोती और लामण के गीत।

  • तांदी में जीवन का दर्द और विरह छलकता है।
  • रासो में हर्ष और उत्सव की लय मिलती है।
  • चौपोती प्रेम और मिलन की कहानियां बुनती है।
  • लामण तो जैसे पहाड़ की आत्मा का संगीत है।

इन गीतों को गाते और उन पर थिरकते ग्रामीण सिर्फ परंपरा नहीं निभाते, बल्कि आने वाली पीढ़ियों को अपनी पहचान भी सौंपते हैं।

Mori Uttarkashi Culture

आस्था और आजीविका का मेल

स्थानीय निवासी और लोक संस्कृति के जानकार चैन सिंह रावत बताते हैं—
“देवगोति मेला केवल धार्मिक नहीं, बल्कि भेड़पालकों की जीवनचर्या से भी जुड़ा है। इसी समय उनकी भेड़-बकरियां बुग्यालों से लौटकर गांव आती हैं।“
यानी यह पर्व ऋतु परिवर्तन और जीवन-चक्र का प्रतीक भी है।

मेहमाननवाज़ी और पहाड़ी स्वाद

मेले की एक और खूबसूरती है पारंपरिक पहाड़ी व्यंजन। मेहमानों का स्वागत ढोल-बाजे की थाप पर होता है और उन्हें परोसा जाता है—

  • कंडाली का साग,
  • फापरे और ओगले की पोली (पारंपरिक रोटी),
  • मंडुवे की रोटी,
  • और बाड़ी।

ये व्यंजन न सिर्फ स्वाद का अनुभव कराते हैं, बल्कि पहाड़ी जीवन की सादगी और प्राकृतिक संसाधनों से जुड़ेपन की भी झलक देते हैं।

सामूहिकता का पर्व

देवगोति मेला पहाड़ी समाज के लिए आपसी मेलजोल का अवसर भी है। इसमें सियाणे-भंडारी, पुजारी और बाजगी जैसे परंपरागत भूमिकाएं निभाने वाले लोग भी शामिल होते हैं। गंगाड गांव के ग्रामीण—रमेश चौहान, न्याल सिंह, बरु सिंह और कृपा सिंह—इस बार विशेष रूप से सक्रिय रहे। बाहर से आए अतिथियों में चैन सिंह रावत, विद्वान सिंह और लायवर सिंह का स्वागत बड़े सम्मान से हुआ।

देवगोति मेला दरअसल पहाड़ी संस्कृति का जीवंत दस्तावेज़ है, जहाँ आस्था और उत्सव साथ चलते हैं, गीत और भोजन मिलकर रिश्तों को गाढ़ा करते हैं, और पहाड़ का हर गांव अपने आराध्य देव की छांव में एक हो जाता है।

Share this:

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *