- हिमांतर ब्यूरो, देहरादून
हिन्दी के मूर्धन्य कवि स्व0 अश्वघोष की प्रथम पुण्य तिथि दिनांक 26 अक्टूबर, 2025 को ओएनजीसी ऑफिसर्स क्लब, देहरादून में उनके परिवार द्वारा आयोजित ‘अश्वघोष स्मरण काव्यांजलि’ का भव्य आयोजन सम्पन्न हुआ. उक्त कार्यक्रम की अध्यक्षता सुप्रसिद्ध चित्रकार एवं ग़ज़लकार श्री विज्ञान व्रत ने की तथा कार्यक्रम का संयोजन सुप्रसिद्ध गीतकार डॉ. बुद्धिनाथ मिश्र द्वारा किया गया. देश के विभिन्न प्रान्तों एवं नगरों से पधारे साहित्यकारों द्वारा उक्त कार्यक्रम में प्रतिभाग किया गया.
दीप प्रज्ज्वलन से कार्यक्रम का शुभारम्भ हुआ तथा मंचासीन अतिथियों का माल्यार्पण कर स्वागत किया गया. इस अवसर पर डॉ. अश्वघोष के पुराने चल-चित्रों एवं पूर्व रिकाॅर्डिड वीड़ियोज़ को स्क्रीन पर प्रदर्शित कर उनकी स्मृतियों का ताज़ा किया गया तथा डॉ. पीयूष निगम व श्री अरूण भट्ट द्वारा डॉ. अश्वघोष की ग़ज़लों व गीतों का गायन किया गया. डॉ. अश्वघोष की सुपुत्री श्रीमती नमिता सिंह ने अपने पिता की रचनाओं का काव्यपाठ किया.
कार्यक्रम में बुलन्दशहर से प्रकाशित हिन्दी त्रै-मासिक पत्रिका ‘बुलन्दप्रभा’ के ‘डॉ. अश्वघोष श्रद्धांजलि विशेषांक’ का विमोचन हुआ. कार्यक्रम में पधारे साहित्याकारों-श्री विज्ञान व्रत, डॉ. बुद्धिनाथ मिश्र, डॉ. वीरेन्द्र आजम, डॉ. आर0पी0 सारस्वत, डॉ. इन्द्रजीत सिंह, श्री मनोज इष्टवाल, श्री रमेश प्रसून, डॉ. अनूप सिंह, श्री देवेन्द्र देव ‘मिर्जापुरी’ श्री मुकेश निर्विकार, श्री इस्हाक़ अली ‘सुन्दर’ द्वारा डॉ. अश्वघोष के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर प्रकाश डाला गया.

कार्यक्रम अध्यक्ष श्री विज्ञान व्रत ने कहा कि मैंने अश्वघोष जी को बहुत करीब से देखा है. मैंने कभी भी उनको नैराश्य से आच्छादित नहीं देखा. अश्वघोष मूलतः एक जनवादी गीतकार एवं ग़ज़लकार थे. उन्होंने अपनी गजलों में जीवन की विसंगतियों को उकेरा है. उनकी रचनाएं नये रचनाकारों के लिए प्रेरणास्पद हैं. कविता, गजल के क्षेत्र में वह एक प्रकाश-स्तम्भ की भांति हैं.
सुप्रसिद्ध गीतकार एवं कार्यक्रम संयोजक डॉ. बुद्धिनाथ मिश्र ने अश्वघोष को याद करते हुए कहा कि अश्वघोष भाई मुझसे छह साल बड़े थे लेकिन कद्र ऐसी करते थे, जैसे मैं ही उनसे जेठ हूं. काव्य मंचों पर उनके गीतों को श्रोताओं द्वारा बेहद पसंद किया जाता था, विशेषकर ‘अम्मा का खत’ व ‘अबकी हमने आम न खाए’ गीतों की बार-बार मांग होती थी. वह लेखन में भी इतने सक्रिय थे कि हिंदी की लघु पत्रिकाओं से लेकर बड़ी पत्रिकाओं तक उनकी रचनाएं नियमित रूप से छपती थीं. उनके सृजन की सुगंध चारो ओर फैली रहेगी. उन्होने उन्हें याद करते हुए काव्य श्रद्धांजलि देते हुए कहा- ‘तुम क्या गए नखत गीतों के असमय शब्द गए,’ एक एक आखर गीतों के लकुवाग्रस्त हुए.’
‘शीतल वाणी’ के सम्पादक डॉ. वीरेन्द्र आजम ने कहा कि अश्वघोष नवगीतों के पुरोधा एवं अप्रतिम गजलकार थे. गत अप्रैल माह में मेरी उनसे अत्यन्त आत्मीय भेंट हुई थी. शीतलवाणी ने उन पर विशेषांक प्रकाशित किया है. उन्होंने कहा डॉ अश्वघोष गजलों के गाजी रहे. अश्वघोष बड़े रचनाकार होने के साथ साथ ज़मीन से जुड़े लेखक व कवि थे. उन्होंने डॉ अश्वघोष की रचना ‘अम्मा का खत’ नामक कविता का पाठन किया, और खूब तालियां बटोरी.
डॉ. इंद्रजीत सिंह ने डॉ अश्वघोष के बाल साहित्य पर प्रकाश ड़ालते हुए कहा कि डॉ अश्वघोष को सम्मान तो बहुत मिले लेकिन सरकारी स्तर पर उन्हें बड़े पुरस्कार नहीं मिले. निराला जी बड़ा कौन साहित्यकार है उन्हे भी बड़े पुरस्कार नहीं मिले. डॉ अश्वघोष ने खंड काव्य लिखा है, 09 काव्य ग्रंथ है. कुल मिलाकर उन्होंने लगभग 50 किताबो का सृजन किया. बाल साहित्य में उनकी रचना ‘बस्ता मुझसे भारी’ अद्भुत रही है.
प्रसिद्ध पत्रकार और लेखक श्री मनोज इष्टवाल ने बताया उनकी अश्वघोष से मुलाकात कोटद्वार से जुड़ी है, यह बर्ष 1990 की बात है, तब मैं ‘कण्व आश्रम’ पर शोध कार्य कर रहा था. देहरादून में हिंदी भवन, दूरदर्शन, आकाशवाणी में प्रायः उनसे मिलकर हिंदी साहित्य को लेकर गहन चर्चा होती रहती थी. हिंदी भाषा की शब्दावली और व्याकरण पर अश्वघोष का गहरा ज्ञान हमेशा प्रेरित करता रहा. इस अवसर पर मनोज इष्टवाल ने अश्वघोष की तमाम पुस्तकों को काव्य में ढालकर ‘उदघोष करो हे अश्वघोष’ का वाचन किया.

‘बुलन्दप्रभा’ के मुख्य संपादक श्री रमेश प्रसून ने कहा कि अश्वघोष से उनकी अत्यन्त आत्मीय मुलाकात हुई थी. अश्वघोष के बडे़ भाई साहब श्री जगदीश चन्द्र ‘इन्दु’ डी0ए0वी0 इण्टर कॉलेज, बुलन्दशहर में मेरे हिन्दी विषय के शिक्षक हुआ करते थे. अश्वघोष भी बुलन्दप्रभा के लिए हमें अपनी रचनाएं भेजा करते थे तथा उनसे ‘बुलन्दप्रभा’ को अपार संबल मिलता था.
सहारनपुर की साहित्यिक संस्था ‘समन्वय’ के सचिव एवं साहित्यकार डॉ. आर0पी0 सारस्वत ने कहा कि कीर्तिशेष डॉ. अश्वघोष जी का समन्वय संस्था के साथ अत्यन्त आत्मीय जुडाव था तथा वह जब तक जीवित रहे, इस संस्था को अपना योगदान देते रहे. वह अपने अनूठे नवगीतों के साथ ‘समन्वय’ संस्था के अभिन्न सहयात्री थे.
डॉ. अनूप सिंह ने कहा कि वर्ष 2014 में डॉ. अश्वघोष के बुलन्दशहर प्रवास के दौरान मेरी उनसे मुलाकात हुई थी. मैंने उनकी कई काव्य-पुस्तकों के साथ-साथ उनका कहानी संग्रह ‘अपने-अपने हाशिये’ भी पढ़ा है. वह जितने प्रभावशाली गीतकार एवं ग़ज़लकार थे, उतने ही सशक्त कथाकार भी थे. उनकी सभी कहानियां मौलिकता की दृष्टि से खरी और अपने कथ्य का सफल निर्वाह करती हुई रोचक और पठनीय हैं. उनके हृदय में भारतीय संस्कृति वास करती थी. वह मूलतः अंतश्चेतना के कवि थे.
‘बुलन्दप्रभा’ के ‘डॉ. अश्वघोष विशेषांक’ के अतिथि संपादक युवा कवि श्री मुकेश निर्विकार ने कहा कि दद्दा अश्वघोष के साथ उनका अत्यन्त आत्मीय रिश्ता था. वह मेरे लिए कई-कई किरदारों में थे-मित्रवत्, पितृवत्, साहित्यिक मार्ग-दर्शक, एक ज़िन्दादिल बुजुर्ग! दद्दा की स्मृतियां मेरे अंतःकरण में संचित हैं. अश्वघोष के कवि रूप पर प्रकाश डालते हुए उन्होंने कहा कि अश्वघोष एक सम्पूर्ण कवि थे, वह जन्मजात काव्य-चेतना लेकर पैदा हुए थे तथा उनकी चेतना हर समय काव्य-सृजन की टहनी से हिलगी रहती थी. कविता जैसे उनकी आत्मा में व्याप्त थी. कविता के बिना वह अपना या इस संसार का कहीं कोई अस्तित्व नहीं देखते थे. एक तरह से कविता उनके लिए इस संसार को देखने का इकलौता माध्यम थी. ‘डॉ. अश्वघोष श्रद्धांजलि विशेषांक’ के विषय में उन्होंने कहा कि बुलन्दप्रभा का डॉ. अश्वघोष श्रद्धांजलि विशेषांक’ बुलन्दप्रभा परिवार की ओर से यानि डॉ. अश्वघोष के अपने गृह जनपद बुलन्दशहर वासियों की ओर से दद्दा अश्वघोष के व्यक्तित्व एवं कृतित्व को सहेजने की एक आत्मीय कोशिश है.
मुजफ्फरनगर के युवा साहित्यकार श्री परमेन्द्र सिंह ने कहा कि दद्दा अश्वघोष का जाना मेरे लिए व्यक्तिगत क्षति है. मुझे उनके साथ कई वर्षों का साहचर्य मिला. उनके जैसा प्रतिबद्ध कलमकार आज के समय में होना दुर्लभ है. इस अवसर पर सुप्रसिद्ध कवि श्री देवेन्द्र देव ‘मिर्जापुरी’ ने अपने छन्दों के माध्यम से डॉ. अश्वघोष को भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित की.

इस्हाक अली सुन्दर ने कहा कि अश्वघोष ने नवगीतकार एवं गजलकार के रूप में जनपद बुलन्दशहर का नाम रौशन किया. उनकी काव्य-साधना के लिए उनको हमेशा याद किया जाता रहेगा. पियूष निगम द्वारा डॉ अश्वघोष की गजल ‘ बार बार क्यों दोहराते हो, एक बार की भूल को’ को गजल के अंदाज में गाकर सुनाया.
डॉ अश्वघोष की पुत्री नमिता सिंह ने अपने पिता को समर्पित करती हुई अपनी कविता ‘पापा की यादें’ की पंक्तियां शब्दों की उस गहराई में आज भी आपकी छाप है’ सुनाई.
इस अवसर पर अश्वघोष के सुपुत्रों- श्री आशीष वशिष्ठ एवं श्री राहुल वशिष्ठ ने कार्यक्रम में पधारे अतिथियों एवं साहित्य-प्रेमियों का स्वागत एवं आभार व्यक्त किया. राहुल वशिष्ठ “उदघोष” ने अपने पिताजी पर रचित कविता “अश्वघोष” का वाचन कर सबका मन मुग्ध कर दिया.
कार्यक्रम का सफल संचालन डॉ. बसन्ती मठपाल द्वारा किया गया. इस दौरान कार्यक्रम में लेखिका भारती पांडे, श्रीमती कुसुम भट्ट, डॉ मनोज आर्या, मुकेश नौटियाल, हलधर जी, मुकेश अग्रवाल जी, वरिष्ठ पत्रकार सुनील गुप्ता, डॉ मोहन भुलानी, हिमालयन लीफ के निदेशक हरीश सनवाल, हिमांतर के निदेशक शशि मोहन रवांल्टा, अतुल्य उत्तराखंड के सम्पादक अर्जुन रावत ‘तीरअंदाज’, हिन्दू फाउंडेशन के निदेशक इन्द्र सिंह नेगी इत्यादि मौजूद रहे.
