कृषि आधारित विकास मॉडल ही उत्तराखंड की भावी दिशा : डॉ. बी. पी. मैठाणी

Dr B P Maithani

 

हिमालयी संवाद की पहली व्याख्यान श्रृंखला में उत्तराखंड की अर्थव्यवस्था पर गहन मंथन

देहरादून. स्थानीय दून पुस्तकालय एवं शोध केन्द्र के सभागार में सोमवार को ‘हिमालयी संवाद’ नामक नई पहल के अंतर्गत आयोजित प्रथम व्याख्यान में विशेषज्ञों ने कहा कि उत्तराखंड की अर्थव्यवस्था को बचाने के लिए कृषि, जैविक उत्पादन, बागवानी और वनाधारित आजीविका को मजबूत करना होगा. कार्यक्रम का विषय था ‘उत्तराखंड की अर्थव्यवस्था की दशा और दिशा’.

पूर्वमंत्री स्व.मोहन सिंह रावत गांववासी की स्मृति में आयोजित इस व्याख्यान में मुख्य वक्ता ग्रामीण विकास के विशेषज्ञ एवं भारत सरकार के राष्ट्रीय ग्रामीण विकास संस्थान के पूर्व निदेशक डॉ. बी. पी. मैठाणी ने कहा कि उत्तराखंड में विकास तो हुआ, लेकिन कृषि की जगह लगातार कम होती गई. राज्य निर्माण के समय जहाँ कृषि का योगदान 31% था, वहीं आज यह घटकर 8% रह गया है, जो चिंताजनक स्थिति है. उन्होंने कहा कि उत्तराखंड की पलायन समस्या का प्रमुख कारण यही कमजोर होती कृषि-आर्थिकी है. समाधान सुझाते हुए उन्होंने ‘एक गाँव एक जोत’, चकबंदी और कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग को राज्य की आर्थिकी को मजबूत करने के लिए आवश्यक बताया.

कार्यक्रम में बोलते हुए पूर्व आईएएस अधिकारी सुरेंद्र सिंह पांगती ने कहा कि उत्तराखंड की अर्थव्यवस्था को सुदृढ़ करने के लिए ग्राम पंचायतों को अधिक अधिकार और संसाधन दिए जाने चाहिए.

पूर्व मंत्री नारायण सिंह राणा ने कहा कि कृषि के साथ साथ बागवानी आर्थिक हालात को बेहतर कर सकती हैं. उन्होंने कहा कि प्राथमिक शिक्षा की ओर सरकार ध्यान दे. पूर्व मंत्री ने कहा कि पारंपरिक खेती में नवाचार की जरूरत है.

प्रगतिशील किसान और पद्मश्री प्रेम चंद शर्मा ने कहा कि उत्तराखंड को जैविक खेती आर्थिक रूप से सशक्त बना सकती है. राज्य पादप बोर्ड के उपाध्यक्ष प्रताप सिंह पँवार ने कहा कि औषधीय पौधों और बागवानी से उत्तराखंड में रोजगार व मजबूत आर्थिकी संभव हो सकती है. राज्य सैनिक कल्याण बोर्ड के उपाध्यक्ष कर्नल अजय कोठियाल ने कहा कि हिमालय की ताकत कृषि है, लेकिन जंगली जानवरों द्वारा फसल और मानव हानि से आर्थिकी पर संकट बना हुआ है, जिसे गंभीरता से लेना होगा.

विशिष्ट अतिथि रियर एडमिरल (सेनि.) ओ. पी. एस. राणा ने कहा कि उत्तराखंड में वनाधारित कृषि को पुनर्जीवित करना जरूरी है. उन्होंने कहा कि गाँव के लोगों को जंगलों से जोड़कर पारंपरिक आर्थिक संस्कृति को फिर से प्रोत्साहित किया जाना चाहिए. उन्होंने पर्यटन संस्कृति के विकास पर भी बल दिया.

इस अवसर पर व्याख्यान से पूर्व स्व. मोहन सिंह रावत गांववासी को सभी के द्वारा श्रद्धांजलि दी गयी और उनके चित्र पर पुष्पांजलि की गयी.

इससे पूर्व कार्यक्रम संयोजक प्रो. सुभाष चंद्र थलेडी ने हिमालयी मुद्दों पर निरंतर विमर्श की आवश्यकता बताते हुए कहा कि ‘हिमालयी संवाद’ पूरे प्रदेश में व्याख्यान और सेमिनार आयोजित करेगा. कार्यक्रम की अध्यक्षता समाजसेवी दिगम्बर सिंह नेगी ने की. उन्होंने स्व. गाँववासी के विचारों को जनमानस तक पहुँचाने पर जोर दिया और धन्यवाद ज्ञापन किया.

कार्यक्रम का संचालन योगेश अग्रवाल ने किया. इस अवसर पर रुद्रप्रयाग के तिलवाड़ा के महावीर सिंह जंगवाण और उत्तरकाशी के गाजना निवासी द्वारिका प्रसाद सेमवाल को ‘गाँववासी स्मृति सम्मान’ प्रदान किया गया, जो कृषि और बागवानी में नवाचार कर ग्रामीण आर्थिकी को बढ़ा रहे हैं.

इस अवसर पर विधायक किशोर उपाध्याय, पंडित भास्कर डिमरी,भवानी प्रताप सिंह, राजेंद्र कुकसाल, डाॅ. दिनेश बलूनी, तोता राम ढौंडियाल, डाॅ. बंशीधर पोखरियाल, मुन्नी देवी रावत, चंद्र शेखर तिवारी, जगत राम सेमवाल, योगेश बधानी, प्रेम पंचोली, रतन सिंह असवाल, हरिराम नौटियाल, विनोद पैन्यूली, प्रो. मोहन पँवार, बहन हेमलता, मनोज इष्टवाल, संजीव रौथाण, ऋषभ गुसाई, दिनेश रावत, अभिनव नेगी,भास्कर अंथवाल, ए पी सुंदरियाल,सुनील शाह, चौधरी भूपाल सिंह,प्रकाश थपलियाल समेत अनेक शिक्षाविद्, ग्रामीण अर्थव्यवस्था के विशेषज्ञ, शोधकर्ता, पर्यावरण से जुड़े लोग, शिक्षक और समाजसेवी शामिल रहे.

Share this:

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *