
- हिमांतर ब्यूरो, देहरादून
दून पुस्तकालय एवं शोध केंद्र के तत्वाधान में आज इसके सभागार में जौनसार जनजाति क्षेत्र के ख्यातिलब्ध लोक कलाकार डॉ० नंदलाल भारती द्वारा लिखित लोक गीतों की संग्रह पुस्तक आमारे जौनसारी गीत का जन लोकार्पण किया गया. इसके बाद पुस्तक पर बातचीत का सत्र भी हुआ. इसमें लोगों की अनेकजौनसारी शब्दों पर बने संशय को लेखक डॉ. नंदलाल भारती ने स्पष्ट किया.
मुख्यातिथि पूर्व कुलपति उत्तराखंड मुक्त विश्वविद्याल प्रो. ओपीएस नेगी ने कहा कि यह पुस्तक खिले हुए गीतों का एक सुन्दर गुलदस्ता है. गीतों को पढ़कर मालूम होता है कि नंदलाल भारती ने जौनसारी शब्दों और लोक जीवन की प्रक्रिया को सहजता से गीतों में ढाला है.
नंदलाल भारती ने राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय मंचों पर जनजातीय समुदाय की सांस्कृतिक धरोहरों का सफल प्रदर्शन किया है. उनके गीतों में एक तरफ लोक की अनुभूति होती है और दूसरी तरफ समाज में फैली कुरीतियों को समाप्त करने के लिए एक अभियान दिखता है. उन्होंने बालिका शिक्षा, बाल विवाह और भेदभाव जैसी सामाजिक परिस्थितियों पर अपने गीतों के माध्यम से कटाक्ष किया है. इस पुस्तक में संकलित प्रत्येक गीत और प्रत्येक पंक्ति समाज का ताना -बाना बताती है. कई बार उनके लिखे गीतों में जो आम बोलचाल में स्थानीय स्तर पर मुहावरे बोले जाते हैं को उन्होंने इसी एक पंक्ति को लेकर के पूरा गीत रच डाला है. अर्थात श्री भारती ने कभी भी सांस्कृतिक पहलुओ पर अन्यथा दोहन नहीं किया है.
श्री भारती का बिरुड़ लोकगीत को मोरी से मुनस्यारी तक गाया जाता है. बिडरू के मार्फत वे गांव की तमाम संस्कृतियों का दर्शन करवाते हैं. उनके लिखे हुए गीत जौनसारी लोक कलाकारों ने ही नहीं गाये बल्कि पड़ोस के हिमाचल प्रदेश के नामचीन लोक गायको ने भी गाये हैं. पुस्तक की जानकारी देते हुए पत्रकार प्रेम पंचोली ने कहा कि जौनसार की कठिन परिस्थितियों का सामना करते करते नन्दलाल भारती जैसे सख्श दूर टुंगरा गांव से देश-दुनियां में लोक संस्कृति की अलख जगाये हुए है.
जौनसार की हृदयस्थली चकराता के पास टुंगरा गांव में जन्में नन्द लाल भारती के बारे में जितना लिखा जाये वह कम ही होगा. दरअसल नन्द लाल ने देश व दुनिया में लोक संस्कृति के विषयो पर ऐसे प्रदर्शन किए है जिनके बलबूते आज उत्तराखण्ड राज्य नन्द लाल को धरोहर के रूप में देखता है.
सीमांत उत्तराखंड राज्य के देहरादून जनपद अन्तर्गत जौनसारी जनजाति के अत्यंत निर्धन दलित बंधुवा श्रमिक परिवार में जन्मे नन्द लाल भारती ने कई विपरीत परिस्थितियों का सामना किया है. इन्होंने जनजातीय लोक संस्कृति को विश्व पटल पर स्थापित किया है.
जौनसार जनजातिय क्षेत्र के गांव समाज में जनजातिय लोक नृत्य, तीज त्यौहार, पारंपरिक वेशभूषा आदि पर इन्होंने जौनसार बावर के कुछ कलाकारों के साथ मिलकर लोक कला मंच का गठन किया. इससे जौनसार बावर के लोकगीतों में हारूल, झैता, रासो, परात नृत्य, आदि को क्षेत्र, राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर आयोजित अनेको पर्वो में स्थान मिला है.
नन्दलाल भारती को प्रवासी और रहवासीयों के मध्य जौनसारी लोक संस्कृति की प्रस्तुतियां दी शाबासी तो कई बार प्रताड़ना का भी सामना करना पड़ा है.
अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा, भारत के पूर्व राष्ट्रपति महामहिम के॰ आर॰ नारायणन, प्रतिभा देवी सिंह पाटिल, एपीजे अब्दुल कलाम, प्रणव मुखर्जी, रामनाथ कोविंद के समक्ष भी नन्दलाल भारती ने लोक कलामंच के मार्फत जौनसारी लोक संस्कृति पर आधारित कई प्रकार की सफल सांस्कृतिक प्रस्तुतियां दी है.
पिछले 40 वर्षों से इनके द्वारा जौनसारी जनजातिय क्षेत्र की लोक संस्कृति कश्मीर से कन्याकुमारी, गुजरात से सुदूर पूर्वोत्तर तक पहुंचने के बाद देश की सीमाओं के पार भी पंहुंची है.
आकाशवाणी व दूरदर्शन से नन्द लाल भारती के सैकड़ों गीतों का प्रसारण हुआ है. दूरदर्शन उत्तराखण्ड के कई कार्यक्रमो का संचालन नन्द लाल भारती ने कई बार किया है. इसके अलावा श्री भारती लोक कलाकारों के अधिकारों के लिए निरंतर संघर्ष करते रहते हैं. ऐसे कई मामलो में न्यायालय ने भी उनकी मांग को सही बताया है.
नन्द लाल भारती जहां लोक संस्कृतिकर्मी है वहीं वे जौनसार व हिमांचली गीतो के गीतकार भी है. श्री भारती ने अब तक साढे पांच सौ से अधिक जौनसारी गीतों की मौलिक रचना की है. इन गीतों को उत्तराखंड व हिमाचल के शीर्ष गायकों द्वारा गाया गया है.
नन्द लाल के उल्लेखनीय कार्यो को देखते हुए राष्ट्रीय व स्थानीय मंचो पर विभिन्न संस्थाओ द्वारा सम्मानित किया गया है. इन्हें जौनसार रत्न, देवभूमि रत्न, दून रत्न, लोक कला रत्न, उत्तराखंड विभूषण, फोक आर्ट सम्मान, रतन सिंह स्मृति सम्मान, डा॰ मोहन उप्रेती सम्मान, लोक रत्न सम्मान आदि दर्जनो सम्मान से नवाजा गया है. उनके लिखे साढे पांच सौ से अधिक जौनसारी गीतो में से कुछ गीतो को यहां संकलन करने का अवसर प्राप्त हुआ है. आगे भी प्रयास किया जायेगा कि इस तरह के कार्यो को दस्तावेज के रूप में भी पाठको के मध्य पंहुचाया जाये.
नन्दलाल भारती द्वारा लिखे गये गीत जो यहां संकलित है में लोक संस्कृति की खूशबू तो है ही, मगर कई बार उनकी कलम ने समाज को चेताया भी है. खेती किसानी, प्रेम, विवाह, मेले, बिस्सू, नृत्य या अन्य गीत, सभी गीतो में जौनसारी शब्दो का जो ताना बाना नन्दलाल भारती ने बुना है इस पुस्तक में ऐसा कोई गीत नहीं है जिसे अलग अलग लोक गायको ने नहीं गाया होगा. सभी गीत ऑडियो फार्मेट में हैं तो अधिकांश गीत वीडियो फार्मेट में सोशियल मीडिया के अलग अलग मंचो पर मिल जायेंगे.
पुस्तक के लेखक डॉ० नंदलाल भारती ने कहा कि “आमारे जौनसारी गीत” नामक पुस्तक आपके हाथ में है आपके लिए गीत हो सकते है, लेकिन मेरे लिए जौनसारी शब्दों व संदेश की गागर है, मैने यह गीत केवल मनोरंजन के लिये नहीं लिखे गये हैं. बल्कि समाज के अलग-अलग विषय की विशेषताओ तथा अच्छाइयों को आम जनमानस तक पहचाने का प्रयास किया गया है. मैंने विगत 40 वर्षों में 600 से भी अधिक, लोकगीत जन जागरण गीत, जनचेतना गीतआदि लिखे है, जिसको हमने नुक्कड, चौराहे तथा गांव के सामुहिक आगनो एवं सड़कों में गाये है
मैंने अपने जीवन का पहला गीत जो रामा कैसेट दिल्ली से सुधा बड़थ्वाल जी द्वारा गाया गथा था, गीत के बोल थे “”सदा मेरी लाज राखिया, शुणया महासू देवा हो. हाथू जोड़ी माथे टेकी करमा तेरी सेवा हो”.. कैसेट के अन्य सभी को श्री जगतराम वर्मा जी ने गाये थे. यह जौनसार का पहला आडियो कैसेट था जिसका नाम गजु-मोहला था. लोगों ने बहुत पसन्द किया था. भारती ने आगे कहा गीतों के सफर में जिन कलाकारों ने मेरा उत्साह व विश्वास बढ़ाया उसमें सर्वश्री जगतराम वर्मा, महेन्द्र राठौर मेरे जीवन एवं लोक संगीत के सफर में मार्गदर्शक एवं समीक्षक रहे हैं, जीवन के सफर मे जब भी कदम डगमगाये हर बार मुझे निराकरण के साथ सहयोग किया, उन्ही के कारण मेरा यह सफर गतिमान रहा.
कार्यक्रम में चन्द्रशेखर तिवारी ने सभागार में उपस्थित लोगों का स्वागत किया इसके अलावा मंचासीन वकाओं, जन कवि डॉ. अतुल शर्मा, विजेंद्र रावत ने भी अपने विचार प्रस्तुत किये. कार्यक्रम के दौरान लोक कलाकारों ने जौनसारी लोक गीत भी प्रस्तुत किये.
इस दौरान डॉ. लालता प्रसाद, ललित राणा, सुन्दर सिंह विष्ट, जगदीश बावला, कुल भूषण नैथानी, हरि चन्द निमेष सहित जौनसारी समाज से बड़ी संख्या में लोगों, संस्कृति प्रेमी, लेखक व साहित्यकार व युवा पाठक उपस्थित रहे.