
लेख एवं संकलन: जे पी मैठाणी
12 मई 2025 को – मैंने, केशवी, कान्हा और जिया ने मिलकर – खरगौन – मध्य प्रदेश से डॉक्टर पुष्पा पटेल जी ने हमको जो गरुड़ फल के बीज भेजे थे वो एक रूट ट्रेनर में बोये. शायद हमने 50 बीज बोये होंगे लेकिन इसमे से 50% बीज ही जमे – कुछ पौध ख़राब हो गयी हैं. ये कार्य हमने पीपलकोटी में ही किया– ये ट्रे हमने पाली हाउस के भीतर रखी थी आज उसको बाहर निकाला गया.
जनपद चमोली में पहली बार ये प्रयोग सफल रहा है, रूट ट्रेनर में मिटटी, बालू और गोबर की खाद के मिश्रण में सिर्फ आधे इंच नीचे ये बीज बोये गए. ये बीज पाली हाउस के भीतर रख कर ही जम पाए हैं, इसके लिए काफी गर्म जलवायु की आवश्यकता होती है.
बेहद दुर्लभ है गरुड़ फल का पौधा – गरुड़ वृक्ष (Radermachera xylocarpa) मध्यप्रदेश, गुजरात, राजस्थान, हिमाचल एवं तमिलनाडु के पहाड़ी इलाकों के घने जंगलों में कहीं-कहीं पाया जाता हैं. लेकिन उत्तराखंड में इसके पौध उपलब्ध नहीं है भारत ग्रामीण अंचलों के अलावा आदिवासी क्षेत्रों में इसके दुर्लभ उपयोग की वजह इसके पौधों पर बेहद संकट है, इस पौधे का अत्याधिक दोहन होने के कारण यह दुर्लभ श्रेणी में आ गया हैं. समय की मांग है की इस वृक्ष को संरक्षित किया जाए.
कैसे हुई गरुड फल की उत्पत्ति – अमृत की बूंदों से उत्पत्ति के कारण इस पौधे का नाम गरुड़ वृक्ष पड़ा.
इसकी उत्पत्ति के बारे में एक कथा आती है कि गरुड़ जब अपनी माता विनता को अपनी विमाता कुद्रू के दासत्व से मुक्त कराने के लिए जब स्वर्ग से अमृत लेकर वापस आ रहे थे तो उसकी कुछ बूंदें पृथ्वी पर गिर जाने के कारण एक वृक्ष की उत्पत्ति हुई . गरुड़ के नाम पर ही उस वृक्ष का नाम गरुड़ वृक्ष पड़ा . अमृत की बूंदों से उत्पत्ति के कारण इस पौधे का नाम गरुड़ वृक्ष पड़ा.
आखिर क्या है क्या है गरुड वृक्ष – उत्तराखंड के लिए गरुड़ वृक्ष एक नया पौधा है. गरुड़ वृक्ष, एक ऐसा पेड़ हैं जिसके बारे में माना जाता हैं कि यह सांपों को दूर रखता हैं और इसके फल में औषधीय गुण पाये जाते हैं. यह पेड़ भारत के कई राज्यों में पाया जाता हैं, खासकर पहाड़ी इलाकों में. गरुड़ वृक्ष को गरुड़ संजीवनी, खडशिंगी और नागदौन जैसे नामों से भी जाना जाता हैं.
गरुड़ वृक्ष के बारे में कुछ मुख्य बातें:-
- सांपों को दूर भगाता हैं: यह माना जाता हैं कि गरुड़ वृक्ष के आसपास सांप नहीं आते हैं और इसके फल को घर के दरवाजों पर लगाने से सांपों से सुरक्षा मिलती हैं. इसकी लकड़ी में यह विशेषता हैं कि यदि सांप के पास इसे रख दिया जाए, तो सांप सुस्त पड़ जाता हैं.
- सांप के काटने का इलाज : गरुड़ वृक्ष का उपयोग सांप के जहर को निष्क्रिय करने और जहर के प्रभाव को कम करने के लिए किया जाता हैं.
- घाव भरने में मदद : गरुड़ वृक्ष में एंटीसेप्टिक गुण होते हैं जो घाव भरने में मदद करते हैं.
- अन्य बीमारियों का इलाज: गरुड़ वृक्ष के फल और बीज में औषधीय गुण होते हैं, कुछ लोग इसका उपयोग हीट स्ट्रोक, अनियमित मासिक धर्म और पीलिया से राहत पाने के लिए करते हैं.लेकिन कई आयुर्वेदिक कंपनिया इसका उपयोग दर्द निवारक और सर्प दंश के लिए भी प्रयोग करती हैं क्यूंकि लोक परम्परागत ज्ञान में इसका जिक्र है.
इन जगहों पर पाये जाते हैं गरुड़ वृक्ष: उत्तराखंड में गरुड़ वृक्ष ना के बराबर है गरुड़ वृक्ष (Radermachera xylocarpa) मध्यप्रदेश, गुजरात, राजस्थान, हिमाचल एवं तमिलनाडु के पहाड़ी इलाकों के घने जंगलों में कहीं-कहीं पाया जाता हैं. इस पौधे का अत्याधिक दोहन होने के कारण यह दुर्लभ श्रेणी में आ गया हैं. गरुड़ वृक्ष को संरक्षित करने की आवश्यकता हैं क्योंकि यह अब विलुप्त होने की कगार पर हैं.
इंटरनेट से मिली जानकारियों के अनुसार – बताया गया है, कि गरुड़ वृक्ष और उसकी लकड़ी अद्भुत औषधीय गुणों से भरी होती है. जिस प्रकार गरुड़ नागों के शत्रु माने गए हैं, ये वृक्ष भी कुछ वैसा ही है. कहा जाता है कि जिस स्थान पर गरुड़ वृक्ष लगा होता है वहाँ से 100 मीटर की परिधि में कोई नाग अथवा सर्प नहीं आ सकता.
इस वृक्ष की पत्तियां भी वरुणा और बेलपत्र के समान ही तीन-तीन के समूहों में होती हैं. अपनी अद्वितीय औषधीय गुणों के कारण इसका एक नाम गरुड़ संजीवनी भी है. इसके वास्तु और ज्योतिष चमत्कार भी बताये गए हैं. कहते हैं जो कोई भी इसकी फली अपने शयनकक्ष में रखता है उसे सर्पों के ठदुःस्वप्न नहीं आते.
इसे अपने पास रखने से मनुष्य को कालसर्प दोष से भी मुक्ति मिलती है. इसकी फली पर कुमकुम लगा कर अपनी तिजोरी में रखने पर माता लक्ष्मी की सदैव कृपा बनी रहती है.
सर्पदंश में ये फली साक्षात् संजीवनी के समान बताई गयी है. यदि किसी व्यक्ति को किसी सर्प ने काट लिया हो तो उस फली को जल में डुबा कर उस जल को पीड़ित को पिलाने से उसका विष तत्क्षण उतर जाता है. इस जड़ी को पानी में रात भर डुबा कर रखने के बाद यदि उससे किसी व्यक्ति को स्नान करा दिया जाये तो भयंकर से भयंकर विष भी उतर जाता है.
हालाँकि इसके विषय में कुछ भ्रामक जानकारियां भी फैली है जिसे बता कर लोगों को ठगा भी जाता है. ऐसी ही एक भ्रामक जानकारी दी जाती है कि ये फली अपने आप जमीन में गड़े खजाने को ढूंढ लेती है, जो कि सच नहीं है.
इसकी फली की भी एक अद्भुत विशेषता होती है कि ये सदैव पानी की धार के विपरीत दिशा में चलती है. यहाँ तक कि यदि इसके ऊपर आप पानी गिराएंगे तो ये उसकी धार के साथ-साथ ऊपर आ जाएगी. इसके अतिरिक्त शायद ही कोई निर्जीव चीज इस प्रकार पानी की धार के विरुद्ध तैर सके. इसे देखना वाकई किसी चमत्कार से कम नहीं है.
हालाँकि वैज्ञानिक इसे चमत्कार नहीं बल्कि वैज्ञानिक प्रक्रिया मानते हैं. उनके अनुसार चूँकि गरुड़ वृक्ष की डली घुमावदार होती है इसी कारण ये पानी के विपरीत दिशा में तैरती है. किन्तु इस प्रकार की घुमावदार चीजें कई हैं जैसे अन्य लकड़ी, प्लास्टिक इत्यादि, किन्तु इनमें से कोई भी चीज इस प्रकार पानी की धार से विपरीत दिशा में नहीं तैर सकती. इससे इस वृक्ष विशेषता सिद्ध होती है.
वैसे तो शहरों के लिए ये लकड़ी नयी है किन्तु आज भी देश के जंगलों में रहने वाल जनजाति इसका उपयोग करती है. छत्तीसगढ़, झारखण्ड आदि राज्यों के आदिवासी लोग इस जड़ी का आज भी सर्पों से रक्षा के लिए उपयोग करते हैं.
बेल पत्र और वरुणा की तरह गरुड़ फल की पत्तियां त्रिपर्णी होती हैं गरुड़ संजीवनी का वृक्ष मध्यप्रदेश, गुजरात, राजस्थान, हिमाचल, केरल, तमिलनाडु इत्यादि राज्यों में पहाड़ी इलाकों के घने जंगलों में कहीं-कहीं पाया जाता है. यह वृक्ष पर्याप्त ऊँचा होता है, इसका तना कठोर लकड़ी वाला होता है व एक डण्डी पर 3 पत्तियाँ लगी होती हैं जैसे कि बेल पत्र लगे होते हैं.
इसकी फली जो कि फल होती हैं, एक मीटर या उससे कुछ अधिक तक लम्बी होती है. यह सर्प के समान कुछ चपटी होती है. फली को चीरने पर इसमें गांठेदार सफेद हड्डी जैसा गूदा होता है. बीजों के ऊपर एक हल्की पारदर्शक पर्त चढ़ी होती है जो कि सर्प की केचुली के समान होती है. फली का रंग हल्का चाकलेटी होता है. जहाँ-जहाँ भी यह गरुड़ वृक्ष होता है, उसके आसपास सर्प नहीं ठहरता है.
यह वृक्ष 25 से 30 फीट ऊँचा होता है, इसकी लकड़ी बेहद कठोर होती है. डण्डी पर 3 पत्तियाँ लगी होती हैं जैसे कि बेल पत्र लगे होते है. इसकी फली जो कि फल होती हैं, एक मीटर या उससे कुछ अधिक तक लम्बी होती है. यह सर्प के समान कुछ चपटी होती है. फली को चीरने पर इसमें गांठेदार सफेद हड्डी जैसा गूदा होता है. बीजों के ऊपर एक हल्की पारदर्शक पर्त चढ़ी होती है जो कि सर्प की केचुली के समान होती है. फली का रंग हल्का चाकलेटी होता है. जहाँ-जहाँ भी यह गरुड़ वृक्ष होता है, उसके आसपास सर्प नहीं ठहरता है.
ध्यान दें:- यह बात ध्यान देने योग्य है की, गरुड़ वृक्ष के सभी औषधीय लाभों की वैज्ञानिक रूप से पुष्टि नहीं हुई हैं.