जीवन-जगत में हरियाली का प्रतीक है लोकपर्व हरेला

Harela Festival

Prakash Upreti

डॉ. प्रकाश उप्रेती

पहाड़ों का जीवन अपने संसाधनों पर निर्भर होता है. यह जीवन अपने आस-पास के पेड़, पौधे, जंगल, मिट्टी, झाड़ियाँ और फल-फूल आदि से बनता है. इनकी उपस्थिति में ही जीवन का उत्सव मनाया जाता है. पहाड़ के जीवन में प्रकृति अंतर्निहित होती है. दोनों परस्पर एक- दूसरे में घुले- मिले होते हैं. एक के बिना दूसरे की कल्पना भी नहीं की जा सकती है. यह रिश्ता अनादि काल से चला आ रहा है. ‘पर्यावरण’ जैसे शब्द की जब ध्वनि भी नहीं थी तब से प्रकृति पहाड़ की जीवनशैली का अनिवार्य अंग है. वहां जंगल या पेड़, पर्यावरण नहीं बल्कि जीवन का अटूट हिस्सा हैं. इसलिए जीवन के हर भाव, दुःख-सुख, शुभ-अशुभ, में प्रकृति मौजूद रहती है. जीवन के उत्सव में प्रकृति की इसी मौजूदगी का लोकपर्व है, हरेला. हरेला का अर्थ हरियाली से है. यह हरियाली जीवन के सभी रूपों में बनी रहे उसी का द्योतक यह लोक पर्व है. यह पर्व खेती से लेकर जीवन तक में खुशहाली और हरियाली से जुडा हुआ है.

हरेला ऋतुओं के स्वागत का पर्व भी है. नई ऋतु के अगमान के साथ ही यह पर्व भी आता है . इस दिन के लिए कहा जाता है कि अगर पेड़ की कोई टहनी भी मिट्टी में रोप दी जाए तो वो भी जड़ पकड़ लेती है. यह बात भले ही किवदंती के रूप में प्रचलित हो लेकिन इससे इस पर्व का प्रकृति के साथ जो संबंध जुड़ता है, वह भाव तो स्पष्ट हो जाता है. यह एक तरह से प्रकृति को समर्पित पर्व ही है. प्रकृति का पहाड़ से यह संबंध युगों-युगों से चला आ रहा है. इसकी बुनियाद सह-अस्तित्व पर टिकी है. पिछले कुछ वर्षों से इसे पर्यावरण की चेतना को विकसित करने वाले पर्व के तौर पर भी मनाया जाने लगा है. अब इस पर्व के दिन लोग सामूहिक तौर पर वृक्षारोपण भी करते हैं.

Harela Festival

ईजा ने 8 तारीख को हरेला बोया था जिसे आज काट दिया। इस बार हरेला अच्छा हुआ। इसका मतलब है कि खेतों में फसल और बड़-खनो में सब्जी अच्छी होगी। हरेला हरियाली और समृद्धि का प्रतीक है. सावन का महीना आरम्भ होने से 10 दिन पहले हरेला बोया जाता है. इसे बोने की भी एक प्रक्रिया है. जंगल से चौड़े पत्ते (हमारे यहाँ तिमिल के पेड़ के पत्ते) लाए जाते हैं और फिर डलिया वाले सीकों से उनके ‘पुड’ (पात्र) बनाए जाते हैं.

पुड़ भी 3, 5, 7 या 9 मतलब विषम संख्या में बनाए जाते हैं. इनका एक हिसाब घर के सदस्यों की संख्या और एक देवता के लिए से भी लगाया जाता है. जो पुड या पात्र बनाए जाते हैं इनमें साफ़ मिट्टी रखी जाती है. मिट्टी में कोई पत्थर या कंकड़ न हो इसका विशेष ध्यान रखा जाता है. इसके बाद सप्त अनाज (गेहूँ, जौ, धान, मक्का, झुंगर, चौलाई, बाजरा) को एक साथ मिलाकर इनमें बोया जाता है. इस सप्त अनाज में काला अनाज छोडकर कोई भी हो सकता है. ये ही अनाज हों ऐसा कोई नियम नहीं है. वैसे तो हरेला घर-घर में बोया जाता है, लेकिन किसी-किसी गांव में सामूहिक रूप से ग्राम देवता के मंदिर में भी हरेला बोया जाता है. इसे बोने के बाद 10 दिन तक रोज इसमें पानी दिया जाता है और एक लोहे के बने ख़ास यंत्र से इसकी गुड़ाई की जाती है.

Harela Festival

लोहे के उस यंत्र को ‘ताऊ’ बोला जाता है. एक सीधी लोहे की छड जिसे आगे से दोमुंह करवा के लाया जाता है, वही ताऊ कहलाता है. इसी से हरेले की गुड़ाई होती है. धीरे-धीरे अनाज में अंकुर आने लगता है. 10वें दिन तक ठीक-ठाक बालियाँ आ जाती हैं. इन बालियों को ही हरेला बोला जाता है. यह माना जाता है कि जिसके घर में जितना अच्छा हरेला उगा हो उसके खेतों में उतनी अच्छी फसल होगी. उसकी समृद्धि उतनी बढ़ेगी. हरेला उग जाने के बाद 10वें दिन पूजा-प्रतिष्ठा होती है. इसमें तिलक-चन्दन-अक्षत के साथ मन्त्रों का उच्चारण होता है, इसे हरेला पतीसना कहा जाता है. इसके बाद हरेला को काटा जाता है. काटने के बाद सबसे पहले मन्दिर में चढ़ाया जाता है. उसके बाद बाहर जाता है. इस पूरी प्रक्रिया को घर के सयाने लोग ही निभाते हैं.

हरेले जीवन और प्रकृति के प्रति उल्लास का पर्व है. एक तरह से इसमें सबके मंगल की कामना होती है. मनुष्य से लेकर जीव-जंतु, पेड़-पौधे सभी को याद किया जाता है. इसलिए जब घर के बुजुर्ग अपने से छोटों को ‘हरेला लगाते’ हैं तो उनमें उन सभी गुणों की कामना करते हैं जो उनके आस-पास उत्कृष्ट हैं. उनकी उत्कृष्टता प्रकृति से बनती है. यहाँ हरेला लगाने की एक विशेष पद्धति है. घर के बड़े अपने से छोटों को पाँव से सर की तरफ हरेला लगाते हैं. हरेला सबसे पहले पैरों, फिर घुटने, फिर कन्धे और अन्त में सिर में रखा जाता है. परिवार में जो भी नया सदस्य आया हो उसको सभी बड़े इसी तरह से हरेला लगाते हैं. हरेला लगाने की इस पद्धति के तहत आशीर्वाद के तौर पर यह कामना की जाती है-

Harela Festivalलाग हरैला, लाग बग्वाली

जी रया, जागि रया

अगास बराबर उच्च, धरती बराबर चौड है जया

दुब जस हरी है जया, ब्यार जस फई जया

स्यावक जैसी बुद्धि, स्योंक जस प्राण है जो

पुर दुनि म, तुमर नाम है जो

हिमाल म ह्युं छन तक, गंगज्यू म पाणि छन तक

यो दिन, यो मास भेटने रया

जांठि टेक बेर झाड जाया,सिल पिसी भात खाया.

(जीवन में हमेशा हरियाली मिले, जीते रहो, जागृत रहो,आकाश के समान ऊँचे बनो, धरती जैसा विस्तार पाओ, दूब की जड़ की तरह हरे रहो, बेर की बेल जैसा फ़ैल जाओ, सियार की तरह बुद्धि हो, शेर जैसा प्राण हो, पूरी दुनिया में तुम्हारा नाम हो जाए, हिमालय में जबतक बर्फ है और गंगा में पानी तबतक ये दिन और मास तुम्हारे जीवन में आते रहें, आयु तुम्हारी इतनी लंबी हो कि शौच जाने के लिए भी लाठी का उपयोग करो और चावल भी सिल में पीस कर खाने पड़ें.)

इस आशीर्वाद के साथ घर की बुजुर्ग महिलाएँ हरेला लगाती हैं. नई दुल्हन के लिए तो हरेले का विशेष महत्व होता है. उनको तो घर-परिवार की सभी महिलाएँ खासतौर पर हरेला लगाने आती हैं. हरेले का महत्व इस बात से भी समझा जा सकता है कि अगर परिवार का कोई सदस्य घर पर न हो तो उसके लिए हरेला रखा जाता है. वहीं देश-परदेश में रहने वाले परिवार के सदस्यों के लिए बाकायदा डाक द्वारा या किसी व्यक्ति के हाथों हरेला भेजा जाता है. हरेला सब तक पहुंचे यह सुनिश्चित किया जाता है. हरेला पहुँचने का अर्थ जीवन में सुख, समृद्धि और हरियाली का पहुंचना है.

हरेला के इस पर्व को सरकार ने अब पर्यावरण संरक्षण और वृक्षारोपण से जोड़ दिया है. यह एक अच्छी पहल है. इससे संस्कृति के साथ लोगों का जुड़ाव होगा. इस जुड़ाव के साथ यह पर्व धीरे-धीरे पहाड़ों से बाहर भी मनाया जाने लगा है. आज जब पर्यावरण पर गहरा संकट है. मनुष्य का लालच दिनों-दिन प्रकृति का दोहन कर रहा है तो ऐसे में एक पर्व प्रकृति को बचाने और उसकी तरफ लौटने का संदेश देता है तो इससे अच्छी और क्या बात हो सकती है. अच्छा ही है, यदि हम अपनी परंपरा से कुछ ग्रहण करके समाज के लिए उसका सार्थक प्रयोग करते हैं. बाकी आज जिस आधुनिक समाज में हम रह रहे हैं वहां तो पर्यावरण को नष्ट करने के हजारों तरीके और उत्सव ईजाद कर लिए गए हैं और हम उन्हीं के उत्सव में खोए रहते हैं. पर्यावरण दोहन के इस दौर में हरेला जैसा पर्व अँधेरे समय में विचार सरीखे है. जहाँ एक रौशनी की किरण नजर आती है. इस रौशनी में पर्यवारण के साथ -साथ वह सामूहिक चेतना भी नजर आती है जो अब धीरे-धीरे खत्म हो रही है.

आप सभी को हरेले की बहुत-बहुत शुभकामनाएं…

Share this:

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *