हिजाब विवाद का मामला हाई कोर्ट में है, हम इसमें हस्तक्षेप नहीं करेंगे -सुप्रीम कोर्ट

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सुप्रीम कोर्ट (Supreme court) ने हिजाब विवाद से संबंधित याचिकाओं को कर्नाटक उच्च न्यायालय (High Court) से शीर्ष अदालत में तत्काल ट्रांसफर करने की मांग से इनकार कर दिया है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा, उसे इस स्टेज पर हस्तक्षेप क्यों करना चाहिए. जब पहले से ही मामला हाई कोर्ट में है. सुप्रीम कोर्ट ने इसको लेकर कोई तारीख देने  इनकार कर दिया है. बता दें कर्नाटक हिजाब मामले (Karnataka hijab row) को CJI के सामने मेंशन करते हुए वकील कपिल सिब्बल ने CJI से मामले की सुनवाई के लिए आग्रह किया. CJI ने कहा पहले मामले को हाई कोर्ट को तय करने दीजिए. फिलहाल हमारा दखल देना ठीक नहीं होगा.

सिब्बल ने अपनी दलील रखते हुए कहा कि इस मामले को 9 जजेस की बेंच के पास सुनवाई के लिए भेजा जाना चाहिए. कपिल सिब्बल ने कहा इस मामले पर आप कोई आदेश नहीं पारित कर सकते तो कम से कम इसे सुनवाई के लिए लिस्ट कर दें.CJI ने इसके जवाब में कहा कि समस्या यह है कि अगर इस वक्त इस मामले को हम सूचीबद्ध कर लेते हैं तो हाई कोर्ट इस मामले पर सुनवाई नहीं कर सकेगा. सिब्बल ने आगे कहा कि वहां महिलाओं पर हमले हो रहे हैं उन पर पथराव किया जा रहा है.हालांकि CJI ने कहा कि पहले हाई कोर्ट को इस मामले में सुनवाई करने दें इसके बाद हम मामले को देखेंगे.

बुधवार को कर्नाटक हाईकोर्ट की बड़ी बेंच को भेजा गया केस

उधर, कर्नाटक में बुधवार को हिजाब विवाद का केस बड़ी बेंच को रेफर कर दिया गया था, जो आज सुनवाई करेगी. अब मामले की सुनवाई चीफ जस्टिस रितु राज अवस्थी, जस्टिस कृष्णा एस दीक्षित और जस्टिस जेएम खाजी की पीठ के सामने की जाएगी. राज्य के स्कूल और कॉलेज में हिजाब पहनने देने की मांग को लेकर हाईकोर्ट में याचिका दायर की गई है.

हाईकोर्ट में संजय हेगड़े करेंगे हिजाब समर्थक छात्राओं की पैरवी

हिजाब कंट्रोवर्सी में छात्राओं की ओर से वरिष्ठ वकील संजय हेगड़े कर्नाटक हाईकोर्ट में दलीलें देंगे. चार छात्राओं ने सरकार के स्कूल ड्रेस कोड के खिलाफ हाईकोर्ट में याचिका दायर की है. सरकार का पक्ष महाधिवक्ता प्रभुलिंग के नवदगी रखेंगे. बुधवार को भी सुनवाई के दौरान हेगड़े कोर्ट में मौजूद रहे.हिजाब कंट्रोवर्सी पर हाईकोर्ट में बुधवार को एकल पीठ के सामने सुनवाई हुई. सुनवाई के दौरान जज केएस दीक्षित ने टिप्पणी करते हुए कहा कि ये मामले बुनियादी महत्व के कुछ संवैधानिक प्रश्नों को उठाता है. ऐसे में चीफ जस्टिस को यह तय करना चाहिए कि क्या इस पर सुनवाई के लिए बड़ी बेंच का गठन किया जा सकता है.

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