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वर्तमान परिदृश्य पर गांधी जी की आर्थिक दृष्टि

वर्तमान परिदृश्य पर गांधी जी की आर्थिक दृष्टि

समसामयिक
151वीं गांधी जयंती पर विशेष  प्रो. गिरीश्वर मिश्र आज पूरे संसार में एक विकटbecause वैश्विक आपदा के चलते उदयोग और व्यवसाय की दुनिया के सारे कारोबार और समीकरण अस्त-व्यस्त होते जा रहे हैं. विकसित हों या अविकसित सभी तरह के देशों अर्थ व्यवस्था चरमरा रही है और उनकी रफ़्तार ढीली पड़ती जा रही है. ऐसे में यह प्रश्न सहज में उठता है कि आधुनिकता की परियोजना के तहत विश्वास जतलाते हुए प्रगति और विकास की जो राह चुनी गई थी वह किस सीमा तक सही थी या कि उसकी राह पर आगे भी चले चलना कितना ठीक होगा. बड़े पैमाने पर थोक भाव से उत्पादन और स्वचालित यंत्रों की सहायता से मानव श्रम के मूल्य का पुनर्निर्धारण हुआ और सामाजिक ताने बाने की तस्बीर ही बदलती गई . आज वैश्विक आर्थिक संस्थाओं के तंत्र butजाल ने विकास का एक ढांचा, एक मान दंड तय किया और उसी के इर्द-गिर्द और कमोबेश उसी के अनुरूप आगे बढ़ते रहने के लक्ष्य तय ...