
लोक की आवाज – हीरा सिंह राणा
मीना पाण्डेय
आज से कुछ 18-20 साल पहले हीरा सिंह राणा जी से अल्मोड़ा में 'मोहन उप्रेती शोध समिति' के कार्यक्रम के दौरान पहली बार मिलना हुआ. तब उनकी छवि मेरे किशोर मस्तिष्क में 'रंगीली बिंदी' के लोकप्रिय गायक के रूप में रही. उसके बाद दिल्ली आकर कई कार्यक्रमों में लगातार मिलना हुआ. मध्यम कद-काठी पर मटमैला कुर्ता और गहरे रंग के चेहरे को आधा ढ़ापती अर्द्ध-चंद्राकार दाड़ी. चेहरे-मोहरे और वेश भूषा में भी वे लोक के प्रतीक रहे. उनकी कविताओं और गीतों में पहाड़ के परिवेश व संस्कृति के प्रति गहरा लगाव स्पष्ट दिखाई देता है. राणा जी की रचनाओं का वितान बहुत वृहद रहा. वहां श्रृंगार है, जन आंदोलनों को उत्साह से भर देने के गीत हैं, प्रकृति के प्रति अनुराग है और अपनी संस्कृति के प्रति अकाट्य प्रेम भी.
ये दुर्भाग्य ही कहा जा सकता है कि हीरा सिंह राणा जी की लोकगायक के रूप में लोकप्रियता के प्रकाश मे...