Tag: यमुना के बागी बेटे

जन से विरक्ति और धन लोलुपता की परिणिति : तिलाड़ी ढंढक

जन से विरक्ति और धन लोलुपता की परिणिति : तिलाड़ी ढंढक

उत्तरकाशी
तिलाड़ी कांड 30 मई, 1930 पर विशेष ध्यान सिंह रावत ‘ध्यानी’ 1803 से 1815 के मध्य के क्रूर गोरखा शासन के उपरांत महाराजा सुदशर्न शाह ने कंपनी सरकार की मद्द पाकर अपना पैतृक गढ़वाल राज्य वापस ले तो लिया किन्तु बदले में आधा राज्य भी गवांना पड़ा और सन् 1815 में उन्हें एक छोटी सी रियासत टिहरी गढ़वाल राज्य की गद्दी को पाकर ही संतुष्ठ होना पड़ा था। सन् 1824 को रवांई परगना जहां के निवासी स्वछन्द जीवन जीने के अभ्यासी थे उसे भी कम्पनी सरकार ने महाराजा सुदर्शन शाह को सौंप दिया। जनता अपने ऊपर हुए क्रूर अनैतिक आचरण और शोषण के पश्चात अपने महाराजा की खबर से सुकून की सांस लेने लगी थी। महाराजा के सम्मुख चुनौतियों का बड़ा पहाड़ खड़ा था। राज्य का खजाना बिल्कुल भी खाली था। राजस्व में वृद्धि के लिए अनेकों प्रकार के ‘टैक्स’ लगाये गये। किन्तु राज्य की जो सबसे बड़ी सम्पत्ति और आय का एक मात्र स्रोत राज्य के वन ही थे। इन...
जन आंदोलन: मुल्क अपने गिरफ्तार साथियों को छुड़ा लाया

जन आंदोलन: मुल्क अपने गिरफ्तार साथियों को छुड़ा लाया

उत्तरकाशी
तिलाड़ी कांड 30 मई पर विशेष ध्यान सिंह रावत ‘ध्यानी’ तीस मई सन् 1930 को रवांई के किसानों द्वारा अपने हक हकूक के लिए टिहरी रियासत के विरुद्ध लामबद्ध होना एक अविस्मरणीय जन आन्दोलन था. ‘बोलान्दा बदरी’ जैसे भावनात्मक, अविव्यक्ति के शब्दों से अपने महाराजा को सम्बोधित करने वाली जनता का आन्दोलन के लिए उत्तेजित होना कहीं न कहीं तत्कालिक समय में टिहरी रियासत के अविवेकपूर्ण नीति का ही प्रतिफल था जिसका खामियाजा भोले-भाले ग्रामीणों को अपनी जान की कुर्बानी दे कर चुकाना पड़ा. आन्दोलन की मुख्य वजह सन् 1928 को टिहरी राज्य में हुए वनबन्दोबस्त ‘मुनारबन्दी’ थीं जिसमें जनता के हक हकूकों को नजरन्दाज ही नहीं अपितु सख्त कुठाराघात भी किया गया. चरान-चुगान, घास-पत्ती, ‘लाखड़ी-जेखड़ी’ हल-नसेड़ा सभी वन उपजें वन सीमा के अन्तर्गत आ जाने के कारण ग्रामीणों के सम्मुख पहाड़ जैसी विकराल बाधा आन पड़ी थीं. रवांई की जनता ने अपन...
तिलाड़ी के शहीदों को याद करने का मतलब

तिलाड़ी के शहीदों को याद करने का मतलब

इतिहास, उत्तराखंड हलचल
30 मई शहादत दिवस पर विशेष आज 30 मई है. तिलाड़ी के शहीदों को याद करने का दिन. टिहरी राजशाही के दमनकारी चरित्र के चलते इतिहास के उस काले अध्याय का प्रतिकार करने का दिन. उन सभी शहीदों को विनम्र श्रद्धांजलि, जिन्होंने हमें अपने हक-हकूकों के लिये लड़ना सिखाया. चारु तिवारी  अरे ओ जलियां बाग रियासत टिहरी के अभिमान! रवांई के सीने के दाग, तिलाड़ी के खूनी मैदान! जगाई जब तूने विकराल, बगावत के गणों की ज्वाल. उठा तब विप्लव का भूचाल, झुका आकाश, हिला पाताल. मचा तब शोर भयानक शोर, हिला सब ओर, हिले सब छोर. तिड़ातड़ गोली की आवाज, वनों में गूंजी भीषण गाज. रुधिर गंगा में स्नान, लगे करने भूधर हिमवान. निशा की ओट हुई जिस ओर, प्रलय की चोट हुई उस ओर. निशाचर बढ़ आते जिस ओर, उधर तम छा जाता घन-घोर. कहीं से आती थी चीत्कार, सुकोमल बच्चों की सुकुमार. विलखती अबलायें भी हाय! भटकती फिरती थी ...