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डॉ. पीताम्बरदत्त बड़थ्वाल : याद करना हिन्दी शोध के गहन अध्येता को

डॉ. पीताम्बरदत्त बड़थ्वाल : याद करना हिन्दी शोध के गहन अध्येता को

स्मृति-शेष
पुण्यतिथि (24 जुलाई, 1944) पर विशेष चारु तिवारी जब भी पौड़ी जाना होता है एक जगह हमेशा अपनी ओर आकर्षित करती रही है. बताती रही है अपनी थाती. कोटद्वार से ऊपर जाने के बाद एक पट्टी शुरू हो जाती है कोडिया. यहीं एक गांव है पाली. बहुत चर्चित. जाना पहचाना. यहां ग्राम सभा द्वारा निर्मित प्रवेश द्वार बताता है कि आप डॉ. पीताम्बरदत्त बड़थ्वाल के गांव में हैं. पीताम्बरदत्त बड़थ्वाल का मतलब हिन्दी के पहले डी. लिट. हिन्दी की शोध परंपरा का ऐसा नाम जिसने बहुत कम उम्र में गहन अध्ययन, प्रतिबद्धता, निष्ठा और सहजता के साथ हिन्दी की सेवा की. आज उनकी पुण्यतिथि है. हम सब हिन्दी साहित्य के इन महामनीषी को अपनी भावपूर्ण श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं. डॉ. पीताम्बरदत्त बड़थ्वाल का जन्म पौड़ी जनपद के लैंसडाउन से तीन किलोमीटर दूर कोडिया पट्टी के पाली गांव में 13 दिसंबर, 1901 में हुआ था. उनके पिता का नाम पं. गौरीदत्त ब...
जो मजा बनारस में, न पेरिस में, न फारस में…

जो मजा बनारस में, न पेरिस में, न फारस में…

पुस्तक-समीक्षा
कॉलम: किताबें कुछ कहती हैं... प्रकाश उप्रेती इस किताब ने 'भाषा में आदमी होने की तमीज़' के रहस्य को खोल दिया. 'काशी का अस्सी' पढ़ते हुए हाईलाइटर ने दम तोड़ दिया. लाइन- दर- लाइन लाल- पीला करते हुए because कोई पेज खाली नहीं जा रहा था. भांग का दम लगाने के बाद एक खास ज़ोन में पहुँच जाने की अनुभूति से कम इसका सुरूर नहीं है. शुरू में ही एक टोन सेट हो जाता और फिर आप उसी रहस्य, रोमांस, और औघड़पन की दुनिया में चले जाते हैं. यह उस टापू की कथा है जो सबको लौ... पर टांगे रखता है और उसी अंदाज में कहता है- "जो मजा बनारस में, न पेरिस में, न फारस में". ज्योतिष "धक्के देना और धक्के खाना, जलील करना और जलील होना, गालियां देना और गालियां पाना औघड़ संस्कृति है. अस्सी की नागरिकता के मौलिक अधिकार और कर्तव्य. because इसके जनक संत कबीर रहे हैं और संस्थापक औघड़  कीनाराम. चंदौली के गांव से नगर आए एक आप्रवासी संत....
फिर शुरू हुआ जीवन

फिर शुरू हुआ जीवन

संस्मरण
बुदापैश्त डायरी : 6 डॉ. विजया सती नए देश में हम अपने देश को भी नई दृष्टि से देखते हैं. ऐसा ही होता रहा हमारे साथ बुदापैश्त में  ..अपने जाने-पहचाने जीवन की नई-नई छवियाँ खुलती रही हमारे सामने. विभाग में हिन्दी पढ़ने वाले युवा विद्यार्थियों की पहली पसंद होती – भारत जाने पर बनारस की यात्रा! उन्हें राजस्थान के रंगों का भी मोह था. हम भी बनारस को नए सिरे से देखने को ललक उठते, ऐसा क्या है हमारे बनारस में जो अब तक हम न देख पाए? क्षमा कीजिएगा... बनारस नहीं, उनकी वाराणसी ! बहुत जागरुक और चौकन्ना होना होता है हमें अपने देश के लिए परदेश में. ... भारतीय भोजन को लेकर तरह-तरह के भ्रम थे - उन्हें मिटाना था. रोजमर्रा का वह जीवन जब दिल्ली जैसे शहर में सड़कों पर हमारे साथ-साथ गाय भी चले, इस पर उनसे क्या कहना हुआ, यह सोचना था. सबसे बढ़कर भारत में स्त्री. कितने-कितने सवाल - असुरक्षित है उनका जीवन...