Tag: बचपन

बचपन की संप्रभुता की वकालत करती पुस्तकें

बचपन की संप्रभुता की वकालत करती पुस्तकें

पुस्तक-समीक्षा
अरुण कुकसाल ‘बचपन से पलायन’ जॉन होल्ट की बहुचर्चित पुस्तक ‘एस्केप फ्राम चाइल्ड हुड' बच्चों और वयस्कों के आपसी वैचारिक और व्यवहारिक विरोधों को उद्घाटित करती है. यह पुस्तक बच्चों को वो सब करने का अधिकार देने की बात करती है जो कानूनन और सामाजिक रूप से एक व्यस्क को प्राप्त हैं. किताब के लेखक और शिक्षाविद जॉन होल्ट का जन्म न्यूयॉर्क सिटी में सन् 1923 में हुआ था. एक शिक्षाविद के रूप में जॉन होल्ट ‘होम-स्कूलिंग मूवमैंट’ के अग्रणी सर्मथक रहे. अपने बच्चों को घर पर ही शिक्षा देने के विचार पर केन्द्रित पत्रिका ‘ग्रोइंग विदाऊट स्कूलिंग’ के वे प्रकाशक और सम्पादक रहे थे. शिक्षा पर लिखी उनकी पुस्तकें दुनिया की अनेकों भाषाओं में लोकप्रिय रही हैं. हाऊ चिल्ड्रन लर्न, हाऊ चिल्ड्रन फेल, फ्रीडम एण्ड बियाॅन्ड, एस्केप फ्राॅम चाइल्डहुड, द अंडर अचीविंग स्कूल, नेवर टू लेट, टीच याॅर ओन उनकी चर्चित पुस्तकें हैं. स...
हम बच्चे ‘हक्के-बक्के’ जैसे किसी ने अचानक ‘इस्टैचू’ बोल दिया हो

हम बच्चे ‘हक्के-बक्के’ जैसे किसी ने अचानक ‘इस्टैचू’ बोल दिया हो

संस्मरण
चलो, बचपन से मिल आयें भाग—1 डॉ. अरुण कुकसाल बचपन में हम बच्चों की एक तमन्ना बलवान रहती थी कि गांव की बारात में हम भी किसी तरह बाराती बनकर घुस जायं. हमें मालूम रहता था कि बडे हमको बारात में ले नहीं जायेगें. पर बच्चे भी ‘उस्तादों के उस्ताद’ बनने की कोशिश करते थे. गांव से बारात चलने को हुई नहीं कि आगे जाने वाले 2 मील के रास्ते तक पहुंच कर गांव की बारात का आने का इंतजार कर रहे होते थे. नैल गांव जाने वाली बारात की याद है. हम बच्चे अपने गांव की पल्ली धार में किसी ऊंचे पत्थर पर बैठ कर सामने आती बारात में बाराती बनने को उत्सुक हो रहे थे. बारात जैसे-जैसे हमारे पास आ रही थी, हमारा डर भी बड़ रहा था. हमें मालूम था पिटाई तो होगी परन्तु मार खाकर बाराती बनना हमें मंजूर था. वैसे भी रोज की पिटाई के हम अभ्यस्थ थे. शाम होने को थी. बड़े लोग वापस हमको घर भेज भी नहीं सकते थे. क्या करते ? नतीजन, बुजुर्गो...
पितरों की घर-कुड़ी आबाद रहे

पितरों की घर-कुड़ी आबाद रहे

संस्मरण
मेरे हिस्से और पहाड़ के किस्से भाग—8 प्रकाश उप्रेती ये हमारी ‘कुड़ी’ (घर)  है. घर को हम कुड़ी बोलते हैं. इसका निर्माण पत्थर, लकड़ी, मिट्टी और गोबर से हुआ है. पहले गाँव पूरी तरह से प्रकृति पे ही आश्रित होते थे इसीलिए संरक्षण के लिए योजनाओं की जरूरत नहीं थी. जिसपर इंसान आश्रित हो उसे तो बचाता ही है. पहाड़ों में परम्परागत रूप से एक घर दो हिस्सों में बंटा रहता है. एक को गोठ कहते हैं और दूसरे को भतेर. गोठ नीचे का और भतेर ऊपर का हिस्सा  होता है. इन दो हिस्सों को भी फिर दो भागों में बांट दिया जाता है: तल्खन और मल्खन . तल्खन बाहर का हिस्सा और मल्खन अंदर का हिस्सा कहलाता है. अक्सर भतेर में तल्खन बैठने के लिए इस्तेमाल किया जाता है तो वहीं मल्खन में सामान रखा जाता है. गोठ में खाना बनता है. मल्खन में चूल्हा लगा रहता और खाना बनता है. तल्खन में लोग बैठकर खाना खाते हैं. हम मल्खन से सारी चीजें च...