फूलों का उत्सव: सांझा चूल्हा और ग्वाल पुजै 

फूलों का उत्सव: सांझा चूल्हा और ग्वाल पुजै 

मंजू दिल से… भाग-28 मंजू काला फूल से मासूम बच्चे, ताजे फूलों सी उनकी मुस्कराहट, पहाड़ी  झरने सी उनकी चाल,  दूर  पहाड़ी में बजती मंदिर की घंटियां मासूम नन्हें—नन्हें हाथों में सजी खूबसूरत रिंगाल की छोटी-छोटी टोकरियां और प्यारे से उत्तराखंड का प्यारा सा उत्सव “फूलदेई” जी हां, दुनिया में शायद उत्तराखंड के पहाड़ों में […]

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 प्रकृति व संस्कृति के समन्वित उल्लास का पर्व है फूल संगरांद

प्रकृति व संस्कृति के समन्वित उल्लास का पर्व है फूल संगरांद

बीना बेंजवाल, साहित्यकार चैत्र संक्रांति का पर्व प्रकृति व संस्कृति के समन्वित उल्लास से मन को अनुप्राणित कर देता है. बचपन की दहलीज से उठते हुए मांगलिक स्वर बुरांशों से लकदक जंगलों से होते हुए जब उत्तुंग हिमशिखरों को छूने लगते हैं तो मन को आवेष्टित किए हुए क्षुद्रताओं एवं संकीर्णताओं के कलुष वलय छंटने […]

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 ‘फूल संगराँद’ से शुरु होकर ‘अर्द्ध’ से होते हुए ‘साकुल्या संगराँद’ तक चलता रहता है उत्सव

‘फूल संगराँद’ से शुरु होकर ‘अर्द्ध’ से होते हुए ‘साकुल्या संगराँद’ तक चलता रहता है उत्सव

सदंर्भ : फूलदेई दिनेश रावत वसुंधरा के गर्भ से प्रस्फुटित एक—एक नवांकुर चैत मास आते—आते पुष्प—कली बन प्रकृति के श्रृंगार को मानो आतुर हो उठते हैं. खेतों में लहलहाती गेहूँ—सरसों की because फसलों के साथ ही गाँव—घरों के आस—पास पयां, आड़ू, चूल्लू, सिरौल, पुलम, खुमानी के श्वेत—नीले—बैंगनी, खेत—खलिहानों के मुंडैरों से मुस्कान बिखेरती प्यारी—सी फ्योंली […]

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 प्रकृति का लोकपर्व फूलदेई

प्रकृति का लोकपर्व फूलदेई

चन्द्रशेखर तिवारी मनुष्य का जीवन प्रकृति के साथ अत्यंत निकटता से जुड़ा है। पहाड़ के उच्च शिखर, पेड़-पौंधे, फूल-पत्तियां, नदी-नाले और जंगल में रहने वाले सभी जीव-जन्तुओं के साथ because मनुष्य के सम्बन्धों की रीति उसके पैदा होने से ही चलती आयी है। समय-समय पर मानव ने प्रकृति के साथ अपने इस अप्रतिम साहचर्य को […]

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 वक्त के साथ ‘फूलदेई’ भी बदल गई

वक्त के साथ ‘फूलदेई’ भी बदल गई

ललित फुलारा टोकरी और भकार- दोनों ही छूट गया. बुरांश और फ्योली भी आंखों से ओझल हो गई. बस स्मृतियां हैं जिन्हें ईजा, आंखों के आगे उकेर देती है. देहरी पर सुबह ही फूल रख दिए गए हैं. ईजा के साथ-साथ हम because भी बचपन में लौट चले हैं. तीनों भाई-बहन के हाथों में टोकरी […]

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 दैंणी द्वार भरे भकार

दैंणी द्वार भरे भकार

मेरे हिस्से और पहाड़ के किस्से भाग—7 प्रकाश उप्रेती मिट्टी और गोबर से लीपा, लकड़ी के फट्टों से बना ये- ‘भकार’ है. भकार (कोठार) के अंदर अमूमन मोटा अनाज रखा जाता था. इसमें तकरीबन 200 से 300 किलो अनाज आ जाता था. गाँव में अनाज का भंडारण, भकार में ही किया जाता था. साथ ही […]

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