पाप और पुण्य
रवांई के एक कृषक की ईमानदारी का फल
ध्यान सिंह रावत ‘ध्यानी’
मुझे आरम्भ से ही बुजुर्गों के पास उठना-बैठना बहुत भाता रहा है. अपने दादा जी के पास बैठकर मैं अनेकों किस्से-कहानियाँ बड़े ही चाव से सुना करता था. एक दिन घर पर हमारे निकट के करीबी रिश्तेदार का आना हुआ जो तब करीब बयासी (82) वर्ष के थे अब इस दुनिया में नहीं हैं. स्व. सब्बल सिंह रावत. रात्रि को भोजन के उपरांत जब मैंने उनके लिए बिस्तर लगाया तो सोने से पूर्व उन्होंने तेल मांगा और अपनी कमीज उतार कर दाहिने हाथ की बाजू में मालिश करने लगे. मेरी नज़र उनके उस हाथ पर पड़ी तो मुझे लगा सम्भवतः इन्हें कभी इस हाथ में बहुत गहरी चोट लगी होगी. मुझ से रहा नहीं गया और मैं ने पूछ ही लिया-‘‘नाना जी आपके इस हाथ में क्या कभी कोई चोट लगी थी?’’
मेरी जिज्ञासा और उत्सुकता को भांपते हुए उन्होंने मुझे अपने पास बैठने को कहा. उसी रजाई का एक छोर निकाल कर मैं ...