सामर्थ्य के विमर्श में मातृभाषा का स्थान
प्रो. गिरीश्वर मिश्र
मनुष्य इस अर्थ में भाषाजीवी कहा जा सकता है कि उसका सारा जीवन व्यापार भाषा के माध्यम से ही होता है. उसका मानस भाषा में ही बसता है और उसी से रचा जाता है. because दुनिया के साथ हमारा रिश्ता भाषा की मध्यस्थता के बिना अकल्पनीय है. इसलिए भाषा सामाजिक सशक्तीकरण के विमर्श में प्रमुख किरदार है फिर भी अक्सर उसकी भूमिका की अनदेखी की जाती है. भारत के राजनैतिक-सामाजिक जीवन में ग़रीबों, किसानों, महिलाओं, जनजातियों यानि हाशिए के लोगों को सशक्त बनाने के उपाय को हर सरकार की विषय सूची में दुहराया जाता रहा है.
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ज्योतिष
वर्तमान सरकार पूरे देश को आत्मनिर्भर बनाने के लिए कृतसंकल्प है. आत्म-निर्भरता के लिए ज़रूरी है कि अपने स्रोतों और संसाधनों का उपयोग को पर्याप्त बनाया जाए ताकि कभी दूसरों का मुँह न जोहना पड़े. इस दृष्टि से ‘स्वदेशी’ का नार...