जोशीमठ की ग्रामीण महिलाओ का गुलाब की खेती का स्टार्टअप

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गोपेश्वर (चमोली)। चमोली जिले के सीमांत जोशीमठ विकासखंड में महिलाएं गुलाब की खेती कर घर-परिवार की आर्थिकी संवार रही हैं। यहां 50 से अधिक महिलाएं स्वयं सहायता समूहों के माध्यम से गुलाब की खेती से जुड़ी हैं। बीते 10 साल में जोशीमठ क्षेत्र की 200 से अधिक महिलाएं इस अभियान का हिस्सा बन चुकी हैं।

खेती में शुरू किए नए प्रयोग

जोशीमठ क्षेत्र में जंगली जानवरों के आतंक से परेशान किसानों ने लगभग 12 वर्ष पूर्व खेती में नए प्रयोग करने शुरू किए। वर्ष 2010 में जोशीमठ के पास गणेशपुर गांव की बेलमती देवी ने खेतों की मेड़ पर गुलाब के पौधे लगाए। इससे एक ओर खेतों की मेड़बंदी हुई, वहीं फसलों का सुरक्षा घेरा भी तैयार हो गया।

मंदिरों में बेचना शुरू किया गुलाब

गुलाब खिलने लगे तो कुछ ग्रामीणों ने यात्रा मार्ग के मंदिरों में उन्हें बेचना शुरू कर दिया। इससे अन्य ग्रामीण भी प्रेरित हुए और एक साल के भीतर मेरग, परसारी गणेशपुर आदि गांवों की 50 से अधिक महिलाएं गुलाब की खेती से जुड़ गई। वो मंदिरों में फूल बेचने के साथ ही गुलाब जल का कारोबार भी कर रही हैं। हिमाचल प्रदेश के पालमपुर में डेमेस्क रोज को विकसित कर उसकी कलम जोशीमठ में लगाई गई हैं। यह गुलाब तीन साल में फूल देने लगता है।

दिल्ली हाट में बेचा 60 लीटर गुलाब जल

गणेशपुर की बेलमति देवी कहती हैं कि पहली बार यह गुलाब स्थानीय बाजार में कम दाम पर बेचा गया था। लेकिन, फिर जड़ी-बूटी शोध संस्थान सेलाकुई (देहरादून) की ओर से यहां गुलाब के फूलों से जल निकालने को मशीन उपलब्ध कराकर तकनीकी सहयोग भी दिया गया। इसके बाद पहली बार ग्रामीण महिलाओं ने 50 किलो फूलों से 60 लीटर गुलाब जल निकालकर उसे दिल्ली हाट में बेचा।

200 रुपये प्रति लीटर बिकता गुलाब जल

बताया कि गुलाब जल 200 रुपये प्रति लीटर के हिसाब से बिक जाता है। आज स्थिति यह है कि घर बैठे दिल्ली, मुंबई समेत अन्य स्थानों के खरीदार यहां पहुंचकर गुलाब जल ले जा रहे हैं। वर्तमान में महिलाएं चार हजार लीटर से अधिक गुलाब जल तैयार कर रही हैं।

गुलाब के पौधों को जानवर नहीं पहुंचाते नुकसान

ग्रामीण जय बदरी विशाल समूह से जुड़ी माहेश्वरी देवी कहती हैं कि कांटे होने के कारण गुलाब के पौधों को जानवर नुकसान नहीं पहुंचाते। इसे सेब के बाग में खाली पड़ी मेड़ों पर आसानी से उगाया जा सकता है। गणेशपुर गांव की जानकी देवी कहती हैं कि कम मेहनत में बेहतर पैदावार के साथ गुलाब की खेती नगदी फसल का स्वरूप ले चुकी है।

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