
अहमदाबाद : कई सौ साल पुराना और प्राचीन मंदिर होने के बावजूद किसी खास कारण की वजह से सदियों से पावागढ़ के महाकाली मंदिर पर नहीं लहराई थी ध्वजा , लेकिन अब सदियों के बाद मंदिर पर ध्वजा लहराएगी वह भी 41 फीट की , मंदिर के शिखर पर ध्वजा लहराने में जो विध्न था वह दूर हो गया है सदियों बाद पावागढ़ का ऐतिहासिक प्राचीन महाकाली मंदिर अपने पूर्ण स्वरूप को प्राप्त हुआ है और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी खुद 18 जून को महाकाली का आशीर्वाद लेने के लिए उनके दरबार में हाजिरी लगाने जा रहे हैं, खास बात यह भी है कि 18 जून को ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की माता हीराबा का 100 वां जन्मदिन है ऐसे में प्रधानमंत्री अपनी जन्म देने वाली माता हीराबा का आशीर्वाद लेकर उन्हें जन्मदिन की बधाई देकर महाकाली माता के दरबार में हाजिरी लगाकर उनका आशीर्वाद लेंगे।
आप सोच रहे होंगे कि भला सदियों बाद पावागढ़ के प्राचीन और ऐतिहासिक मंदिर पर ध्वजा क्यों लहराई जा रही है !आपके मन में यह सवाल भी उठ रहा होगा क्या अब तक महाकाली मंदिर पर ध्वजा नहीं लहराई जा रही थी जिसका जवाब अगर हां है तो क्यों अब तक हर मन्दिर की तरह महाकाली माता का मंदिर ध्वजा विहीन था ! इस सवाल का जवाब जानने के लिए आपको इतिहास के कुछ पन्ने खंगालने होंगे।
पावागढ़ के शिखर पर स्थित महाकाली मंदिर पर जाने के लिए आपको तीन पड़ाव से होकर गुजरना पड़ता है पहला पड़ाव है सड़क। एक जमाने में पावागढ़ तक जाने का रास्ता बहुत ही दुर्गम और कठिन हुआ करता था लेकिन अब प्रशासन के प्रयासों से पावागढ़ जाना बहुत ही आसान हो गया ह। पावागढ़ पर्वत पर चढ़ाई के लिए करीबन 5 किलोमीटर तक बहुत ही सुंदर सड़क बनाई गई है , सड़क खत्म होने के बाद आपको मंदिर तक ले जाने के लिए दो रास्ते मौजूद है एक सीढ़ी का और दूसरा उड़न खटोले का यह मंदिर तक पहुंचने का दूसरा पड़ाव है
रोप वे बनने से पहले लोग करीबन ढ़ाई हजार सीढ़ियां चढ़कर ही दुर्गम रास्ते से होते हुए पावागढ़ के शिखर पर मौजूद महाकाली माता के दर्शन के लिए पहुंचते लेकिन रूप वे के शुरू होने के बाद महाकाली मंदिर जाने का रास्ता बहुत ही आसान हो गया है जिसका किराया भी महज ₹170 ह। रोप वे से महाकाली मंदिर का सफर न सिर्फ आसान बन जाता है बल्कि रोप वे के सफर के दौरान आप पावागढ़ की आसपास बिखरी कुदरत की सुंदरता को भी बहुत अच्छे से निहार सकते हैं। रोपवे से करीबन 800 मीटर का सफर 6 से 8 मिनट में तय हो जाता है और उसके बाद आप पहुंच जाते हैं महाकाली मंदिर जाने के तीसरे और आखिरी पड़ाव पर जहां से आपको करीबन 300 सीढ़ियां चढ़कर ही महाकाली के मंदिर तक पहुंचना होता है यहां पर पिट्ठू भी मौजूद होते हैं जो उन लोगों को मंदिर तक लाद कर ले जाते हैं जिन्हें चलने में दिक्कत होती है।