
नई दिल्ली : चिकित्सा जगत का भविष्य नैनो पार्टिकल्स में छिपा है। मीटर के अरबवें हिस्से को नैनोमीटर कहा जाता है और 1,000 नैनोमीटर से छोटे सूक्ष्म कणों को नैनो पार्टिकल्स कहते हैं। पिछली सदी के आठवें दशक में नैनो टेक्नोलाजी की अवधारणा सामने आ गई थी। तब से अब तक कई क्षेत्रों में इन सूक्ष्म कणों का प्रयोग किया जाने लगा है। पिछले कई वर्षों से चिकित्सा के क्षेत्र में इस टेक्नोलाजी के प्रयोग को लेकर कई शोध हुए हैं।
हाल में कोविड महामारी से बचाव के लिए बायोएनटेक और माडर्ना ने एमआरएनए आधारित जो टीके बनाए हैं, उनमें भी नैनो टेक्नोलाजी का प्रयोग किया गया है। अमेरिका की यूनिवर्सिटी आफ मिशिगन के प्रोफेसर डक्सिन सन ने नैनो टेक्नोलाजी की संभावनाओं पर विस्तृत जानकारी दी है।
नैनो मेडिसिन में अपार संभावनाएं
नैनो पार्टिकल्स से बनी दवाएं यानी नैनो मेडिसिन के क्षेत्र में अपार संभावनाएं हैं। यह टेक्नोलाजी विशेषरूप से ऐसी दवाओं के मामले में बहुत कारगर है, जिनके साइड इफेक्ट ज्यादा होते हैं। नैनो टेक्नोलाजी की मदद से दवा की बहुत कम मात्र शरीर में ठीक उस जगह पहुंचाई जा सकती है, जहां उसकी जरूरत है। इससे शरीर के बाकी हिस्से उस दवा के दुष्प्रभाव से बचे रह पाते हैं।
कैंसर के इलाज में रामबाण हो सकती है नैनो टेक्नोलाजी
कैंसर की दवाओं के साइड इफेक्ट को देखते हुए इस क्षेत्र में नैनो मेडिसिन से बहुत उम्मीदें हैं। नैनो मेडिसिन किसी बायोलाजिकल मिसाइल की तरह काम कर सकती है, जो सीधे ट्यूमर को नष्ट करेगी और आसपास के अंगों पर कोई दुष्प्रभाव नहीं पड़ेगा। नैनो टेक्नोलाजी पर आधारित दवाएं प्रयोग में चूहों पर कारगर पाई गई हैं। हालांकि अभी व्यापक शोध की गुंजाइश है। वैसे नैनो टेक्नोलाजी पर आधारित टीकों की सफलता ने भविष्य में कैंसर का टीका विकसित करने की उम्मीद भी बढ़ाई है।