तमिलनाडु पुलिस ने मद्रास हाई कोर्ट के वकील आर डी संथानाकृष्णन के खिलाफ मामला दर्ज किया है, जो एक ऑनलाइन अदालती कार्यवाही के दौरान एक महिला के साथ छेड़छाड़ करते हुए पकड़ा गया था.न्यायमूर्ति पीएन प्रकाश और न्यायमूर्ति आर हेमलता की पीठ ने 21 दिसंबर को मामले का स्वत: संज्ञान लेते हुए कहा था कि उनका एक पुरुष साथी महिला के साथ अभद्र व्यवहार कर रहा था.
दरअसल वीडियो में कथित तौर पर वकील को एक महिला के साथ अंतरंग मुद्रा में दिखाया गया है, जबकि इसी दौरान वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग पर एक मामले की सुनवाई चल रही थी. इस घटना का वीडियो मंगलवार को सोशल मीडिया पर वायरल हो गया था. पीठ ने कहा कि अदालत की कार्यवाही के बीच जब सार्वजनिक रूप से इस तरह की हरकत हो तो अदालत मूकदर्शक बनी हुई नहीं रह सकती है. अदालत ने शहर के पुलिस आयुक्त तो इस विवादित वीडियो को सोशल मीडिया से हटाने का भी निर्देश दिया.
सोशल मीडिया से वीडियो को हटाने का दिया गया निर्देश
पुलिस ने विभिन्न सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म जैसे कि फेसबुक, इंस्टाग्राम, व्हाट्सएप, ट्विटर और गूगल को आपत्तिजनक वीडियो क्लिपिंग के प्रसार को रोकने के लिए संचार भेजा है और पुलिस संबंधित नोडल अधिकारियों के साथ मामले की जांच कर रही है.चेन्नई में सीबी-सीआईडी के साइबर अपराध एजेंसी ने भी 22 दिसंबर को एक रिपोर्ट दर्ज की है, जिसमें वीडियो में दिख रहे व्यक्ति की पहचान अधिवक्ता संथानाकृष्णन के रूप में की गई है और वीडियो क्लिपिंग में महिला के नाम का पता लगाया जाना बाकी है. उन पर धारा 228 (न्यायिक कार्यवाही में बैठे लोक सेवक का जानबूझकर अपमान या रुकावट), 292 (2) (ए) (अश्लील सामग्री प्रसारित करने के लिए) और 294 (ए) आईपीसी और सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम की धारा 67-ए के तहत मामला दर्ज किया गया है.
विवादित सीडी को सीलबंद लिफाफे में रखे जाने का आदेश
तमिलनाडु और पुडुचेरी की बार काउंसिल की एक प्रेस विज्ञप्ति में कहा गया है कि अधिवक्ता आर.डी. संतन कृष्णन के सभी अदालतों, अधिकरणों और भारत में अन्य प्राधिकारों में वकालत करने पर तब तक के लिए रोक लगा दी गई है, जब तक कि कथित अश्लील व्यवहार को लेकर उनके खिलाफ लंबित अनुशासनात्मक कार्यवाही का निस्तारण नहीं हो जाता.
अदालत ने उन्हें एक वैधानिक नोटिस जारी किया है और मामले को 20 जनवरी के लिए बढ़ा दिया है.आईटी- विभाग के रजिस्ट्रार ने अदालत को एक सीडी में विवादित वीडियो की एक कॉपी दी है, जिसे अदालत ने कहा है कि इसे सीलबंद लिफाफे में रखा जाना चाहिए और सुनवाई की तारीखों पर पीठ के सामने रखा जाना चाहिए.