
धारचूला ( पिथौरागढ़) : उच्च हिमालय के पर्यावरण संरक्षण के लिए सेना के हरित पहल अभियान के तहत चीन सीमा से लगे तीन गांवों में अखरोट उत्पादन की नींव पडऩे लगी है। जलवायु के अनुरूप ग्रामीणों की आजीविका सुधारने के लिए सेना ने गुंजी, नाबी और रोंगकोंग में अखरोट के बगीचे तैयार करने का निर्णय लिया है।
सेना के जवान ही इन रोपे गए अखरोट के पौधों की सुरक्षा भी करेंगे। तीनों गांवों के ग्रामीणों को जागरूक कर पौधों का रोपण प्रारंभ कर दिया गया है। इससे आगामी तीन-चार साल बाद उत्तराखंड के उच्च हिमालय में उत्पादित अखरोट कश्मीर की तरह लोगों की पंसद बनेगा।
11 हजार फीट से अधिक ऊंचाई पर स्थित चीन सीमा से लगे तीन गांवों में अब व्यापक रूप से अखरोट पैदा होगा। सेना की कुमाऊं स्काउट की पहल पर सेना और ग्रामीण अखरोट के पौधे रोप रहे हैं। भारतीय सेना के अनुसार उच्च हिमालय के हालात और जलवायु अखरोट के लिए अनुकूल हैं। सेना के हरित पहल के तहत ग्लोबल वार्मिंग से निपटने के लिए यह सब किया जा रहा है। आगामी पीढ़ी को बेहतर पर्यावरण देने के लिए उच्च हिमालयी गांवों में अखरोट की खेती को बढ़ावा दिया जा रहा है।
आने वाले तीन साल बाद तीनों गांव अखरोट उत्पादन करने वाले गांव होंगे। अखरोट के अनुकूल जलवायु होने से यहां पर अखरोट का व्यापक उत्पादन होने के आसार हैं। व्यास घाटी का अखरोट कश्मीरी अखरोट की तरह बाजार में छाएगा जिससे सीमा पर रहने वाले ग्रामीणो की आजीविका में सुधार होगा।
इस मौके पर सेना के अधिकारियों ने ग्रामीणों को इसके बारे में बताया। महिलाओं, युवाओं और ग्रामीणों ने सेना की हरित पहल को सफल बनाते हुए इसे आगे बढ़ाने का संकल्प लिया है। भारतीय सेना पर्यावरण संरक्षण के लिए बीते वर्षो से प्रयासरत है, जिसका असर भी सीमा क्षेत्र में नजर आने लगा है।