गढ़वाल में राजपूत जातियों का इतिहास

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  • नवीन नौटियाल

उत्तराखंड के गढ़वाल और कुमाऊं में विभिन्न जातियों का वास है। गढ़वाल की जातियों का इतिहास भाग-2 में गढ़वाल में निवास कर रही क्षत्रिय/राजपूत जातियों के बारे में बता रहे हैं नवीन नौटियाल

क्षत्रिय/राजपूत : गढ़वाल में राजपूतों के मध्य निम्नलिखित विभाजन देखने को मिलते हैं-
1. परमार (पँवार) :- परमार/पँवार जाति के लोग गढ़वाल में धार गुजरात से संवत 945 में आए। इनका प्रथम निवास गढ़वाल राजवंश में हुआ।
2. कुंवर : इन्हें पँवार वंश की ही उपशाखा माना जाता है। ये भी गढ़वाल में धार गुजरात से संवत 945 में आए। इनका प्रथम निवास भी गढ़वाल राजवंश में हुआ ।
3. रौतेला : रौतेला जाति को भी पंवार वंश की उपशाखा माना जाता है।
4. असवाल : असवाल जाति के लोगों का सम्बंध नागवंश से माना जाता है। ये दिल्ली के समीप रणथम्भौर से संवत 945 में यहाँ आए। कुछ विद्वान इनको चह्वान कहते हैं। अश्वारोही होने से ये असवाल कहलाए वैसे इन्हें गढ़वाल में थोकदार माना जाता है।
5. बर्त्वाल : बर्त्वाल जाति के लोगों को पंवार वंश का वंशज माना जाता है। ये संवत 945 में उज्जैन/धारा से गढ़वाल आए और बड़ेत गाँव में बस गए।
6. मंद्रवाल (मनुराल) : ये कत्यूरी वंश के राजपूत हैं। ये संवत 1711 में कुमाऊँ से गढ़वाल में आकर बसे। इनको कुमाऊँ के कैंत्यूरा जाति के राजाओं की सन्तति माना जाता है।
7. रजवार : कत्यूरी वंश के वंशज रजवार जाति के लोग संवत 1711 में कुमाऊँ से गढ़वाल आए थे।
8. चन्द : ये सम्वत 1613 में गढ़वाल आए। ये कुमाऊँ के चन्द राजाओं की संतानों में से एक मणि जाती हैं।
9. रमोला : ये चह्वान वंश के वंशज हैं जो संवत 254 में मैनपुरी, उत्तर प्रदेश से गढ़वाल में आए और रमोली गाँव में रहने के कारण ये रमोला कहलाए। इन्हें पुरानी ठाकुरी सरदारों की संतान माना जाता है।
10. चह्वान : ये चह्वान वंश क्व वंशज मैनपुरी से यहाँ आए। इनका गढ़ ऊप्पूगढ़ माना जाता था।
11. मियाँ : ये सुकेत और जम्मू से गढ़वाल में आए। ये यहाँ के मूल निवासी नहीं थे लेकिन ये गढ़वाल के साथ नातेदारी होने के कारण गढ़वाल में आए। गढ़वाल में राजपूत जातियों में बिष्ट, रावत, भण्डारी, नेगी, गुसाईं आदि प्रमुख समूह हैं, जिनके अंतर्गत कई जातियाँ समाहित हैं।

रावत जाति के राजपूत :- गढ़वाल में रावत जाति राजपूतों की एक प्रमुख जाति मानी जाती है। इसके अतर्गत कई जातियाँ समाहित हैं। ये सभी रावत जातियाँ अलग-अलग स्थानों से आकर गढ़वाल में बसी हैं।
12. दिकोला रावत : दिकोला रावत की पूर्व जाति (वंश) मरहठा है। ये महाराष्ट्र से संवत 415 में गढ़वाल में आए और दिकोली गाँव को अपना बनाया।
13. गोर्ला रावत : गोर्ला रावत पँवार वंश के वंशज हैं जो गुजरात से संवत 817 में गढ़वाल आए। गोर्ला रावत का प्रथम गाँव गुराड़ माना जाता है।
14. रिंगवाड़ा रावत : इन्हें कैंत्यूरा वंश का वंशज माना जाता है। जो कुमाऊँ से संवत 1411 में गढ़वाल आए। इनका प्रथम गढ़ रिंगवाड़ी गाँव माना जाता था।
15. बंगारी रावत : बंगारी रावत बाँगर से संवत 1662 में गढ़वाल आए। बाँगरी का अपभ्रंश बंगारी माना जाता है।
16. बुटोला रावत : ये तंअर वंश के वंशज हैं। ये दिल्ली से संवत 800 में गढ़वाल आए। इनके मूलपुरुष बूटा सिंह माने जाते हैं ।
17. बरवाणी रावत : ये तंअर वंश के वंशज मासीगढ़ से संवत 1479 में आए। इनका गढ़वाल में प्रथम निवास नैर्भणा क्षत्रिय था।
18. जयाड़ा रावत: ये दिल्ली के समीप किसी अज्ञात स्थान से गढ़वाल में आए। गढ़वाल में इनका प्रथम गढ़ जयाड़गढ़ माना जाता था।
19. मन्यारी रावत :- इनके मूल स्थान के बारे में विस्तृत जानकारी उपलब्ध नहीं है। ये लोग गढ़वाल की मन्यार स्यूँ पट्टी में बसने के कारण मन्यारी रावत कहलाए।
20. जवाड़ी रावत : इनका प्रथम गाँव जवाड़ी गाँव माना जाता है।
21. परसारा रावत : ये चह्वान वंश के वंशज हैं जो संवत 1102 में ज्वालापुर से आकर सर्वप्रथम गढ़वाल के परसारी गाँव में आकर बसे।
22. फरस्वाण रावत : मथुरा के समीप किसी स्थान से ये संवत 432 में गढ़वाल आए। इनका प्रथम गाँव गढ़वाल का फरासू गाँव माना जाता है।
23. मौंदाड़ा रावत : ये पँवार वंश के वंशज हैं जो संवत 1405 में गढ़वाल में आकर बसे। इनका प्रथम गाँव मौंदाड़ी गाँव माना जाता है।
24. कयाड़ा रावत : इन्हें पँवार वंश का वंशज माना जाता है। ये संवत 1453 में गढ़वाल आए।
25. गविणा रावत : इन्हें भी पँवार वंश का वंशज माना जाता है। गवनीगढ़ इनका प्रथम गढ़ था।
26. लुतड़ा रावत : ये चैहान वंश के वंशज हैं जो संवत 838 में लोहा चाँदपुर से गढ़वाल आए। इनमें पुराने राजपूत ठाकुर आशा रावत और बाशा रावत थोकदार कहलाते थे।
27. कठेला रावत : कठेला रावत राजपूत जाति के बारे में रतूड़ी जी लिखते हैं कि “इनका मूल वंश कठौच/कटौच और गोत्र काश्यप है और ये काँगड़ा से गढ़वाल में आकर बसे हैं। ऐसा माना जाता है कि इनका गढ़वाल राजवंश से रक्त सम्बंध रहा है। इनकी थात की पट्टी गढ़वाल में कठूलस्यूँ मानी जाती है। कुमाऊँ के कठेला थोकदारों के गाँव देवाइल में भी ‘कठेलागढ़’ था।”
28. तेरला रावत : ये गुजदू पट्टी के थोकदार माने जाते हैं।
29. मवाल रावत : गढ़वाल में इनकी थात की पट्टी मवालस्यूँ मानी जाती है।इनका माओल निवास नेपाल तथा ये कुंवर वंश के माने जाते हैं।
30. दूधाधारी रावत : ये बिनोली गाँव, चाँदपुर के निवासी माने जाते हैं।
31. मसोल्या रावत : पँवार पूर्व जाति के वंशज मसोल्या रावत धार के मूल निवासी हैं जो गढ़वाल में बसे हैं।

इसके अलावा जेठा रावत, तोदड़ा रावत, कड़वाल रावत, तुलसा रावत, मौरोड़ा रावत, गुराडी रावत, कोल्ला रावत, घंडियाली रावत, फर्सुड़ा रावत, झिंक्वाण रावत, मनेसा रावत, कफोला रावत जातियों के बारे में अभी जानकारी प्राप्त नहीं हो सकी है।

बिष्ट जाति के राजपूत : गढ़वाल में बिष्ट जाति राजपूतों में गिनी जाती है, इसके अंतर्गत कई अन्य उपजातियाँ/उपसमूह आते हैं जो यह प्रदर्शित करते हैं कि बिष्ट जाति किसी एक समूह से नहीं बल्कि कई अन्य जातियों से मिलकर बनी है। ये सभी जातियाँ कई वर्ष पूर्व अलग-अलग स्थानों से आयी और गढ़वाल में बस गयी।
32. बगड़वाल बिष्ट : बगड़वाल बिष्ट जाति के लोग सिरमौर, हिमाचल से संवत 1519 में गढ़वाल आए और तत्पश्चात यहीं के निवासी हो गए। इनका प्रथम गढ़ बगोडी/बगोड़ी गाँव माना जाता है।
33. कफोला बिष्ट : ये लोग यदुवंशी लोगों के वंशज माने जाते हैं, जो इतिहास में कम्पीला नामक स्थान से गढ़वाल में आए और फिर यहीं के मूल निवासी हो गए। इनकी थात पौड़ी गढ़वाल जिले की कफोलस्यूँ पट्टी मानी जाती है।
34. चमोला बिष्ट : पंवार वंशी चमोला बिष्ट जाति के लोग उज्जैन से संवत 1443 में गढ़वाल में आए। गढ़वाल के चमोली क्षेत्र में बसने के कारण ये चमोला बिष्ट कहलाए।
35. इड़वाल बिष्ट : इन्हें परिहार वंशी माना जाता हैं। ये कि दिल्ली के नजदीक किसी अज्ञात स्थान से संवत 913 में गढ़वाल में आए और ईड़ गाँव के निवासी होने के कारण इस नाम से प्रसिद्द हुए।
36. संगेला/संगला बिष्ट : संगेला/संगला बिष्ट जाति के लोग गुजरात क्षेत्र से संवत 1400 में गढ़वाल में आए।
37. मुलाणी बिष्ट : मुलाणी बिष्ट लोगों को कैंत्यूरा वंश का वंशज माना जाता है। ये कुमाऊँ क्षेत्र से संवत 1403 में गढ़वाल आए और मुलाणी गाँव में बस गए।
38. धम्मादा बिष्ट : ये चह्वान वंश से सम्बंधित हैं। ये दिल्ली के मूल निवासी थे जो कि गढ़वाल में बस गए।
39. पडियार बिष्ट : ये परिहार वंश के वंशज माने जाते हैं। ये धार क्षेत्र से संवत 1300 में गढ़वाल में आए।
40. साबलिया बिष्ट : ये सूर्यवंशी वंश के वंशज और उपमन्यु गोत्र के लोग हैं कत्यूरियों की संतान माने जाते हैं। ये पहले उज्जैन से गढ़वाल की साबली पट्टी में आये और उसके बाद कुमाऊँ गए। इसके अलावा तिल्ला बिष्ट, बछवाण बिष्ट, भरेला बिष्ट, हीत बिष्ट, सीला बिष्ट के बारे में जानकारी उपलब्ध नहीं हो सकी है।

भण्डारी जाति के राजपूत : भण्डारी जाति के लोगों को राजपूत जाति के अधीन रखा जाता है।
41. काला भंडारी : ये काली कुमाऊँ के मूल निवासी माने जाते हैं।
42. पुंडीर भंडारी : पुण्डीर वंशीय भण्डारी जाति के लोग मायापुर के मूल निवासी थे जो संवत 1700 में गढ़वाल आए। इसके अतिरिक्त तेल भंडारी और सोन भंडारी के बारे में कोई जानकारी नहीं मिली है।

नेगी जाति के राजपूत :
43. पुण्डीर नेगी : पुण्डीर नेगी संवत 1722 में सहारनपुर से आकर गढ़वाल में बसे। रतूड़ी जी के अनुसार, पृथ्वीराज रासो में ये दिल्ली के समीप के होने कहे गए हैं।
44. बगलाणा नेगी : बगलाणा नेगी बागल क्षेत्र से संवत 1703 में गढ़वालआए। इनका मुख्य गाँव शूला माना जाता है।
45. खूँटी नेगी : ये संवत 1113 में नगरकोट-काँगड़ा, हिमाचल से आकर गढ़वाल में बसे। गढ़वाल में इनका प्रथम गाँव खूँटी गाँव है।
46. सिपाही नेगी : सिपाही नेगी संवत 1743 में नगरकोट-काँगड़ा, हिमाचल से गढ़वाल में आए। सिपाहियों में भारती होने से इनका नाम सिपाही नेगी पड़ा।
47. संगेला नेगी : ये जाट राजपूत जाति के वंशज हैं। ये संवत1769 में सहारनपुर से आकर गढ़वाल में बसे। संगीन रखने से ये संगेला नेगी कहलाए।
48. खड़खोला नेगी : ये कैंत्यूरा जाति के वंशज मने जाते हैं। ये कुमाऊँ से संवत 1169 में गढ़वाल आए यहाँ के खड़खोली नामक गाँव में कलवाड़ी के थोकदार रहे। इसीलिए खड़खोली नाम से प्रचलित हुए।
49. सौंद नेगी : इनकी पूर्व जाति (वंश) राणा है। ये गढ़वाल में कैलाखुरी से आए और गढ़वाल के सौंदाड़ी गाँव में बसने के कारण सौंद नेगी के नाम से जाने गए।
50. भोटिया नेगी : ये हूण राजपूत जाति के वंशज हैं जो हूण देश से आकर गढ़वाल में बसे।
51. पटूड़ा नेगी : पटूड़ी गाँव में बसने के कारण ये पटूड़ा नेगी कहलाए ।
52. महरा/म्वारा/महर नेगी :  इनकी पूर्व जाति (वंश) गुर्जर राजपूत है। ये लंढौरा स्थान से आकर गढ़वाल में बसे।
53. बागड़ी/बागुड़ी नेगी : ये संवत 1417 में मायापुर स्थान से आकर गढ़वाल में बसे। बागड़ नामक स्थान से आने के कारण ये बागड़ी/बागुड़ी नेगी कहलाए।
54. सिंह नेगी : बेदी पूर्व जाति से सम्बद्ध सिंह नेगी संवत 1700 में पंजाब से आकर गढ़वाल में बसे।
55. जम्बाल नेगी : ये जम्मू से आकर गढ़वाल में बसे हैं।
56. रिखल्या/रिखोला नेगी : रिखल्या/रिखोला राजपूत नेगी डोटी, नेपाल के रीखली गर्खा से आए और छंदों के आश्रय में रहे। रीखली गर्खा से आने के कारण ही इनका नाम रिखल्या/रिखोला नेगी पड़ा।
57. पडियार नेगी : ये परिहार वंश के वंशज है। जो संवत 1860 में दिल्ली के समीप से गढ़वाल में आए।
58. लोहवान नेगी : इनकी पूर्व जाति (वंश) चह्वान है। ये संवत 1035 में दिल्ली से आकर गढ़वाल के लोहबा परगने में बसे और यहीं के निवासी हो गए।
59. गगवाड़ी नेगी : गगवाड़ी नेगी जाति के लोग संवत 1476 में मथुरा के समीप के क्षेत्र से आकर गढ़वाल के गगवाड़ी गाँव में बसे।
60. चोपड़िया नेगी : ये लोग संवत 1442 में हस्तिनापुर से आकर गढ़वाल के चोपड़ा गाँव में बसे।
61. सरवाल नेगी : सरवाल नेगी जाति के लोग संवत 1600 में पंजाब से आकर गढ़वाल में बसे।
62. घरकण्डयाल नेगी : ये पांग, घुड़दौड़स्यूँ के निवासी माने जाते हैं।
63. कुमयाँ नेगी : ये कुमैं, काण्डा आदि गाँवों में निवास करते हैं।
64. भाणा नेगी : ये पटना के मूल निवासी हैं।
65. कोल्या नेगी : ये जाति कुमाऊँ से आकर गढ़वाल के कोल्ली गाँव में बस गयी।
66. सौत्याल नेगी : ये जाति डोटी, नेपाल से आकर गढ़वाल के सौती गाँव में बस गयी।
67. चिन्तोला नेगी : ये चिंतोलगढ़ के मूल निवासी हैं।
68. खडक्काड़ी नेगी : ये मायापुर से आकर गढ़वाल में आकर बसे हैं।
69. बुलसाडा नेगी : कैंत्यूरा पूर्व जाति के वंशज बुलसाडा नेगी कुमाऊँ के मूल निवासी हैं।
इसके अतिरिक्त नीलकंठी नेगी, नेकी नेगी, जरदारी नेगी, हाथी नेगी, खत्री नेगी, मोंडा नेगी, आदि के बारे में जानकारी उपलब्ध नहीं हो सकी है।

गुसाईं जाति के राजपूत
70. कंडारी गुसाईं : कंडारी गुसाईं जाति के लोग मथुरा के समीप किसी स्थान से संवत 428 में गढ़वाल आए। इन्हें कंडारीगढ़ के ठाकुरी राजाओं के वंश की जाति माना जाता है।
71. घुरदुड़ा गुसाईं :  घुरदुड़ा गुसाईं जाति के बारे में रतूड़ी जी लिखते हैं कि “ये लोग स्वयं को लगभग नवीं शताब्दी में गुजरात के मेहसाणा से आया हुआ मानते हैं। इनके मूलपुरुष का नाम चंद्रदेव घुरदेव बताया जाता है। गढ़वाल में एक पूरी पट्टी इनकी ठकुराई पट्टी है। कुमाऊँ में ये लोग गढ़वाल से ही गए हैं।”
72. पटवाल गुसाईं : पटवाल गुसाईं जाति के बारे में माना जाता है कि ये प्रयाग से संवत 1212 में गढ़वाल में आए। गढ़वाल के पाटा गाँव में बसने से इनके नाम से ही गढ़वाल के एक पट्टी का नाम पटवाल स्यूँ पड़ा।
73. रौथाण गुसाईं : ये संवत 945 में रथभौं दिल्ली के समीप किसी अज्ञात स्थान से आकर गढ़वाल में बसे।
74. खाती गुसाईं : पौड़ी गढ़वाल में खातस्यूँ खाती गुसाईं जाति की थात की पट्टी मानी जाती है।

ठाकुर जाति के राजपूत
75. सजवाण ठाकुर : महाराष्ट्र से आए मरहट्टा वंश के सजवाण ठाकुर जाति के लोग गढ़वाल में आए और यहीं के निवासी हो गए। ये प्राचीन ठाकुरी राजाओं की संतानें मानी जाती हैं।
76. मखलोगा ठाकुर : पुण्डीर वंशीय मख्लोगा ठाकुर संवत 1403 में मायापुर से गढ़वाल के मखलोगी नामक गाँव में आकर बसे और तत्पश्चात वहीं के निवासी हो गए।
77. तड्याल ठाकुर : इनका प्रथम गाँव तड़ी गाँव बताया जाता है।
78. पयाल ठाकुर : ये कुरुवंशी वंश से सम्बद्ध हैं। ये हस्तिनापुर से आकर गढ़वाल के पयाल गाँव में बसे।
79. राणा ठाकुर : ये सूर्यवंशी वंश वंशज हैं जो कि संवत 1405 में चितौड़ से गढ़वाल में आकर बसे।

अन्य राजपूत
80. राणा : नागवंशी वंश से सम्बंधित राणा राजपूत जाति के लोग हूणदेश से आकर गढ़वाल में बसे। इन्हें गढ़वाल के प्राचीन निवासियों में से एक माना जाता है।
81. कठैत : कटोच वंश के वंशज कठैत जाति के लोग काँगड़ा, हिमाचल से आकर गढ़वाल में बस गए।
82. वेदी खत्री : ये खत्री वंश के वंशज हैं जो संवत 1700 में नेपाल से गढ़वाल आए।
83. पजाई : पजाई राजपूतों को कुमाऊँ का मूल निवासी माना जाता है।
84. राँगड़़ : ये राँगड़़ वंश के वंशज हैं जो सहारनुपर से गढ़वाल में आकर बस गए ।
85. कैंत्यूरा : ये कैंत्यूरा वंश के हैं जो कुमाऊँ से गढ़वाल में आए।
86. नकोटी : ये नगरकोटी वंश के वंशज हैं जो नगरकोट, काँगड़ा से गढ़वाल में आए। गढ़वाल के नकोट गाँव में बसने के कारण ये नकोटी कहलाए।
87. कमीण : इनके बारे में पर्याप्त जानकारी उपलब्ध नहीं है।
88. कुरमणी : इनके मूलपुरुष का नाम कुर्म था संभवत: उनके नाम से ही ये कुरमणी कहलाए।
89. धमादा : इन्हें पुराने गढ़ाधीश की संतानें माना जाता हैं।
90. कंडियाल : इनका प्रथम गाँव काँडी था इसीलिए ये कंडियाल कहलाए।
91. बैडोगा : बैडोगा जाति के लोगों का प्रथम गाँव गढ़वाल का बैडोगी गाँव माना जाता है।
92. मुखमाल : इनका प्रथम गाँव मुखवा या मुखेम गाँव माना जाता है।
93. थपल्याल : ये थापली गाँव,चाँदपुर में बसने के कारण थ्पल्याल कहलाए।
94. डंगवाल : डंगवाल जाति के राजपूत गढ़वाल के डांग गाँव के निवासी हैं।
95. मेहता : यह जाति दरअसल वैश्य है जो कि संवत 1590 में पानीपत से गढ़वाल आयी।
96. रणौत : इसे सिसोदियों की एक शाखा माना जाता है जो कि राजपुताना से गढ़वाल में आयी।
97. रौछेला : ये जाति दिल्ली से गढ़वाल में आयी।
98. जस्कोटी : ये जाति सहारनपुर, उ.प्र. से आकर गढ़वाल के जसकोट नामक गाँव में आकर बस गयी।
99. दोरयाल : ये द्वाराहाट, कुमाऊँ के निवासी माने जाते हैं।
100. मयाल : ये कुमाऊँ के मूल निवासी माने जाते हैं।

सन्दर्भ :-

1. गढ़वाल का इतिहास – प. हरिकृष्ण रतूड़ी, संपा. – डॉ. यशवंत सिंह कठोच
2. गढ़वाली भाषा और उसका लोकसाहित्य – डॉ. जनार्दन प्रसाद काला
3. गढ़वाल हिमालय : इतिहास, संस्कृति, यात्रा एवं पर्यटन – रमाकांत बेंजवाल

(लेखक उत्तराखंड के पौड़ी गढ़वाल, पट्टी- सितोन स्यूँ, कोट— ब्लॉक, गाँव-रखूण के निवासी हैं तथा वर्तमान में जामिया मिल्लिया इस्लामिया विवि, नई दिल्ली में शोधार्थी हैं)

Email: naveenchandra2527@gmail.com

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